मोदी जी ने कहा कि बादलों में रडार काम नहीं करते है , जो पूर्णतः गलत है। लेकिन बात सिर्फ रडार कि नहीं है , बात यह है कि मोदी जी इतने आत्मविश्वास के साथ झूठ कैसे बोल लेते हैं? एक मित्र ने मुझसे बहुत साल पहले एक बात कही थी कि गुरु जी इस देश में बहुत से लोगों को सिर्फ सवाल पता है ,उनके जवाब नहीं ! इसलिए आप गलत ही क्यों ना बोलिए पर आपके उत्तर में आत्मविश्वास होना चाहिए ! दुनिया आप पर आंख मूंदकर यकीन कर लेगी । बरसात और बादल का रडार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता वरन ब्रिटेन ने जर्मनी से अपनी जंग रडार के बदौलत ही जीती थी। ब्रिटेन ने अपने समुद्री तट पर जगह-जगह रडार फिट कर दिए थे , जो जर्मनी के जहाजों के बारे में पहले से ही बता देता था। स्कॉटलैंड के वैज्ञानिक रॉबर्ट वॉटसन वॉट ने डीवैंटरी नामक शक्तिशाली लघु तरंग रेडियो ट्रांसमीटर केंद्र से एक प्रयोग किया। जिसकी मदद से आकाश में जहाज की गूंज से धरती पर हजारों मील की दूरी से ही रेडियो तरंगों द्वारा जहाज का पता लगाया गया। जिसे बाद में सुव्यवस्थित करके रडार सिस्टम के नाम से जाना गया।
रडार की तकनीक चमगादड़ों पर आधारित है। चमगादड़ अंधेरे में भी बिना किसी वस्तु से टकराए उड़ सकते हैं। अंधेरे में बिना किसी वस्तु से टकराए उड़ने के लिए चमगादड़ रेडियो तरंगें या विद्युत चुम्बकीय तरंगों प्रयोग करते हैं। वे उड़ते हुए ध्वनि तरंगें (रेडियो तरंगें या विद्युत चुम्बकीय तरंगें) प्रसारित करते रहते हैं और दूसरी वस्तुओं से टकरा कर वापस लौटती आवाज (ध्वनि तरंगों) की मदद से चीजों का पता लगा लेते हैं। दरअसल वॉटसन मौसम विभाग में काम करते थे और उस वक्त हवाई जहाजों का विकास हो रहा था ,तो आए दिन हवाई दुर्घटनाएं होती थीं । जिससे व्यथित होकर वॉटसन ने रडार तकनीकी बनायी ताकि बर्फ, धुंध बादल या वर्षा में भी हवाई जहाजों के दिशा , गति , दूरी और उंचाई जैसी इत्यादि मानकों का पता लगाया जा सके और आज वायु सेना एवं थल सेना में राडार सिस्टम पूरे संसार में कारगर है।
मोदी जी को पता हो या ना हो पर उनसे हाथ जोड़कर विनती है कि शिक्षा व्यवस्था पर यथाशीघ्र ध्यान दें वरना नवपुल्कित चौकिदार रडार तो दूर लाईट में निप्पो और एवररेड्डी लगाते वक्त धनावेश और ऋणावेश का भी पहचान नहीं कर पाएंगे।