डॉक्टर पूछता है अपने मालिक का नाम बताओ, वो कहती है मैं मोबाइल, घड़ी या लैपटॉप नहीं! जो मेरा मालिक हो, मैं लड़की हूँ।

न्यूज़ डॉन के रेग्युलर सेग्मेंट "कलम किताब और कहानियाँ" में हम आपके लिए कला एवं साहित्यिक सरोकारों से जुड़ी किताबों की समीक्षा लिखते हैं। प्रस्तुत है "यह कलम यह अक्षर यह किताब" से कुछ अंश, इसकी समीक्षा हमारी संवाददाता ज़ीनत ने लिखी है।

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लखनऊ / दिल्ली । ये सच है कि लड़की की पाकीज़गी का ताल्लुक, समाज ने कभी भी लड़की के मन की अवस्था से नहीं पहचाना बल्कि हमेशा उसके तन से जोड़ दिया। इसी दर्द को लेकर  ‘एरियल’ नावल की किरदार ऐनी के अलफाज़ हैं, मुहब्बत और वफा ऐसी चीज़ें नहीं है, जो किसी बेगाना बदन के छूते ही खत्म हो जाएं। हो सकता है पराये बदन से गुज़र कर वह और मज़बूत हो जाएं जिस तरह इन्सान मुश्किलों से गुज़र कर और मज़बूत हो जाता हैं।

लड़की और लड़के का रिश्ता और क्या हो सकता था, मैं इसी बात को कहना चाहती थी कि एक कहानी लिखी, ‘मलिका’। मलिका जब बीमार होती है तो सरकारी अस्पताल में जाती है वहां कागज़ी कार्रवाई पूरी करने के लिए डाक्टर पूछता है, तुम्हारी उम्र क्या होगी ? मलिका कहती है,  वही! जब इन्सान हर चीज के बारे में सोचना शुरू करता है और फिर सोचता ही चला जाता है।  डाक्टर पूछता है, तुम्हारे मालिक का नाम ? मलिका कहती है, मैं मोबाइल घड़ी या लैपटॉप नहीं, जो मेरा मालिक हो, मैं लड़की हूँ।

डाक्टर घबराकर कहता है, ‘‘मेरा मतलब है तुम्हारे पति का नाम ?’’ मलिका जवाब देती है, मैं बेरोज़गार हूँ डाक्टर हैरान सा कहता है,  भई, मैं नौकरी के बारे में नहीं पूछ रहा  तो मलिका जवाब देती है, वही तो कह रही हूँ साहब । मेरा मतलब है किसी की बीवी नहीं लगी हुई, और कहती है, ‘‘हर इन्सान किसी-न-किसी काम पर लगा हुआ होता है, जैसे आप डाक्टर लगे हुए हैं, यह पास खड़ी हुई बीबी नर्स लगी हुई है। आपके दरवाजे के बाहर खड़ा हुआ आदमी चपरासी लगा हुआ है।

इसी तरह लोग जब ब्याह करते हैं तो लड़का पति लग जाता है और लडकियां बीवियां लग जाती हैं। समाज की व्यवस्था में किस तरह इन्सान का वजूद खोता जाता है मैं यही कहना चाहती थी, जिसके लिए मलिका का किरदार पेश किया। जड़ हो चुके रिश्तों की बात करते हुए, मलिका कहती है, क्यों डाक्टर साहब, यह ठीक नहीं ? कितने ही पेशे हैं कि लोग तरक्की करते हैं, जैसे आज जो मेजर है कल को कर्नल बन जाता है फिर ब्रिगेडियर, और फिर जनरल। लेकिन इस शादी-ब्याह के पेशे में कभी तरक्की नहीं होती। पत्नियां जिंदगी भर पत्नियां लगी रहती है, और पति ज़िंदगी भर पति लगे रहते हैं।

उस वक्त डाक्टर पूछता है, इसकी तरक्की हो तो क्या तरक्की हो ? तब मलिका जवाब देती है, डाक्टर साहब हो तो सकती है पर मैंने कभी होते हुए देखी नहीं। यही कि आज जो इन्सान पति लगा हुआ है, वह कल को महबूब हो जाए, और कल जो महबूब बने वह परसों खुदा हो जाए।

इसी तरह-समाज, मजहब और रियासत को लेकर वक्त के सवालात बढ़ते गए, तो  नावल में लिखा, यह सच है’ इस नावल के किरदार का कोई नाम नहीं, वह इन्सान के चिन्तन का प्रतीक है, इसलिए वह अपने वर्तमान को पहचानने की कोशिश करता है, और इसी कोशिश में वह हज़ारों साल पीछे जाकर—इतिहास की कितनी ही घटनाओं में खुद को पहचानने का यत्न करता है।

उसे पुरानी घटना याद आई, जब वह पांच पांडवों में से एक था, और वे सब द्रौपदी को साथ लेकर वनों में विचर रहे थे। बहुत प्यास लगी तो युधिष्ठीर ने कहा था, जाओ नकुल पानी का स्रोत तलाश करो, जब उसने पानी का स्रोत खोज लिया था, तो किनारे पर उगे हुए पेड़ से आवाज़ आई थी, हे नकुल ! मेरे प्रश्नों का उत्तर दिए बिना पानी मत पीना, नहीं तो तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी लेकिन उसने आवाज़ की तरफ ध्यान नहीं दिया, और जैसे ही सूखे हुए हलक से पानी की ओक लगाई, वह मूर्च्छित होकर वहीं गिर गया था।

और मेरे नावल का किरदार, जैसे ही पानी का गिलास पीना चाहती है, यह आवाज़ उसके मस्तक से टकरा जाती है, हे आज के इन्सान ! मेरे प्रश्नों का उत्तर दिए बिना गिलास का पानी मत पीना। और उसे लगता है वह जन्म-जन्म से नकुल है, और उसे मूर्च्छित होने का शाप लगा हुआ है वह कभी भी तो वक्त के सवालों का जवाब नहीं दे पाया।

ये अंश ‘ यह कलम यह अक्षर यह किताब’ से लिया गया है यह नॉवल लड़कियों को देखने का परिवार और परंपराओं से हट कर एक अलग नजरिया पेश करता है लेखक ने इस नॉवल के जरिये लड़कियों के एक स्वतंत्र वजूद की वकालत की है जो किसी पर निर्भर न हो कर आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हो।

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