यहूदी VS मुसलमान : क्यों होता है घमसान

इजरायल और फिलीस्तीन के बीच मनमुटाव की कहानी आज की नहीं है। इसके तार उनके सदियों पुरानी प्रथाओं से जुड़े हुए हैं जिसके कारण अक्सर ही दोनों देशों के बीच झड़प होती रहती है। इस 'होली वॉ'र की कहानी बहुत ही पुरानी है। जिसमें उनका उस जगह से जुड़े धर्म पर विश्वास सबसे बड़ा कारण हैं। 

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लखनऊ । यूं तो दुनिया में शांति की वैसे ही बहुत कमी है, पर क्या महसूस होता होगा, किस तरह जिंदगी के अगले पल की उम्मीद की जाती होगी जब हमें यह पता हो कि किसी भी छण हम पर हवाई हमला हो सकता है, किसी भी पल हमारी जान जा सकती है। हम किसी भी छण अपनों से दूर हो सकते हैं। इसी डर का एहसास करती दो देशों के बीच फंसी एक पवित्र जमीन जो तीन धर्मों के लिए एक पवित्र स्थान है, जिसे हम सब येरूसलेम कहते हैं।

बीते दिन 10 मई को हमास द्वारा इजरायल के कई हिस्सों पर 150 से भी अधिक रॉकेट दागने के कारण दोनों देशों के बीच फिर से हॉली वॉर शुरू हो गया है। बता दें कि हमास को फिलीस्तीन का एक चरमपंथी गुट माना जाता है जो कि फिलीस्तीन के आधे हिस्से गाजा को हैंडल करता है। अटैक के जवाबी कार्यवाई में इजरायल ने भी 11 मई की सुबह तक फिलीस्तीन के कई इलाकों में करीब 130 एयर स्ट्राइक किए। सूत्रों के मुताबिक इस हमले में 23 लोगों की जान गई जिसमें 9 बच्चे भी शामिल थे। इस हमले में लगभग 100 से भी ज्यादा लोग घायल हुए।

हवाई हमले का यह सिलसिला येरूसलेम के टेम्पल माउंट में हुई झड़प से शुरू हुआ। 10 मई को टेम्पल माउंट में दोनों पक्षों में हुए झड़प में दोनों ही पक्ष अपना-अपना तर्क दे रहे। फिलीस्तीनियों का कहना है कि इजारयली फोर्सेज़ जबरदस्ती मंदिर परिसर में घुस आई और उन पर ग्रेनेड और रबड़ बुलेट्स दागे। वहीं दूसरी तरफ इजरायली फोर्सेज़ का कहना है कि वो मंदिर के पास वाले रास्ते पर थे जब फिलीस्तीनियों नें उन पर पत्थरबाजी करना शुरू किया।

इस घटना के बाद ही हमास ने इजारयली सेना को टेम्पल माउंट से अपने सैनिक वापस लेने को कहा था। उनके मुताबिक यदि वो ऐसा नहीं करते हैं तो हमास इजरायल पर रॉकेट दागेगा। 

दोनों देश के बीच अक्सर ही संघर्ष होता रहता है और संघर्ष भी ऐसी जमीन के लिए जो दोनों ही देशों के लिए एक पवित्र स्थान माना जाता है। येरूसलेम वो ही जगह है जहां पर फिलीस्तीन और इजरायल अपने-अपने हक का दावा करते हैं। येरूसलेम में 35 एकड़ में फैली एक ऐसी जगह जिसे यहूदी ‘हर हवाईयत’ यानी ‘टेम्पल माउन्ट’ और मुस्लिम ‘हरम-अल-शरीफ’ कहते हैं, ही झगड़े की असली वजह है।

1948 में इजरायल देश का गठन होने के बाद इजरायल येरूसलेम को ही अपनी राजधानी बनाना चाहता था, मुस्लिम समुदाय जो कि पहले से ही इजरायल गठन का विरोध कर रहा था वो इस बात के लिए राजी नहीं था।

इसके बाद 1966 में दोनों देशों के बीच चले 6 दिन युद्ध के बाद टेम्पल माउंट पर इजरायल ने कब्जा कर लिया। टेम्पल माउंट पर कब्जा करने के बाद उस वक्त के इजरायली रक्षा मंत्री मोसे डायन और मुस्लिम नेताओं के बीच समझौता हुआ, और टेम्पल माउंट के देख-रेख की जिम्मेदारी जॉर्डन को दे दी गई। इससे पहले यह जिम्मेदारी इस्लामिक ट्रस्ट ‘वक्फ’ के पास थी।

इस समझौते में यह तय किया गया कि यहूदी इस स्थान पर पर्यटक के तौर पर जा सकते हें परन्तु पूजा नहीं कर सकते हैं। इस समझौते का दोनों ही पक्षों के कट्टरपंथियों ने विरोध किया। नतीजन 1982 में फिर दोनों ही पक्षों के बीच संघर्ष हुआ। 2014 में यहूदी कट्टरपंथी को जान से मारने की कोशिश करने वाले फिलीस्तिनी की इजरायली फोर्स द्वारा हत्या करने के बाद से इजरायल ने टेम्पल माउंट में मुस्लिमों पर पाबंदी लगा दी, जिसे फिलीस्तिनी नेताओं ने युद्ध का ऐलान मान लिया।

इस वक्त दोनों देशों के बीच झगड़े का मुख्य कारण येरूसलेम के पूर्वी हिस्से में शेख जर्राह नामक स्थान पर रह रहे 6 फिलीस्तीनियों को घर खाली करवाना माना जा रहा है। यहूदियों के मुताबिक इस हिस्से पर उनका मालिकाना हक़ है जबकि फिलीस्तीनियों का कहना है कि वो उनका पुस्तैनी इलाका है और वो हमेशा वहीं पर रहते आए हैं। इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में 10 मई को होने वाली थी, और उसी दिन इजरायल 1966 में येरूसलेम पर जीत की खुशी में येरूसलेम डे मनाने वाला था। 

इजरायल और फिलीस्तीन के बीच मनमुटाव की कहानी आज की नहीं है। इसके तार उनके सदियों पुरानी प्रथाओं से जुड़े हुए हैं जिसके कारण अक्सर ही दोनों देशों के बीच झड़प होती रहती है। इस ‘होली वॉ’र की कहानी बहुत ही पुरानी है। जिसमें उनका उस जगह से जुड़े धर्म पर विश्वास सबसे बड़ा कारण हैं। 

यहूदियों के मुताबिक इसी जगह पर ईश्वर ने उस व्यक्ति का सृजन किया जिससे आगे चलकर पूरी मानव जाति का निर्माण हुआ। यहूदियों का यह भी मानना है कि अब्राह्म द्वारा अपने ही बेटे का बलिदान देने वाली घटना भी इसी जगह पर हुई थी जिसमें ईश्वर ने अब्राह्म की भक्ति से खुश होकर यह वरदान दिया था कि उसके वंशज उस जगह पर राज करेंगे। इस जगह पर यहूदियों द्वारा बनवाए गए मंदिर में सारे यहूदियों को जाने की इजाजत नहीं थी, वहां पर केवल पुजारी ही पूजा करने के लिए जा सकता था। उस जगह को ‘होली ऑफ होलीज़’ यानि ‘पवित्र से भी पवित्र स्थान’ कहा जाता है।

वहीं मुस्लिम समुदाय के मुताबिक मक्का और मदीना के बाद तीसरा सबसे पवित्र स्थान यही है। उनके मुताबिक पैगम्बर मुहम्मद इसी जगह से जन्नत गए थे और इसी जगह पर वो जन्नत से वापस आए थे जिसे ‘डोम ऑफ द रॉक’ कहा जाता है। इसी जगह पर मुस्लिमों का कब्जा होने पर उन्होनें एक भव्य मस्जिद का निर्माण किया जिसे अल अक्स़ नाम दिया गया।

35 एकड़ में फैले इस स्थान पर इसाई भी अपना अधिकार मानते हैं। उनके मुताबिक ईसा मसीह ने यहीं पर उपदेश दिया, यहीं पर वो शूली पर चढ़ाए गए और फिर यहीं पर उन्होनें पुनर्जन्म भी लिया। इसाईयों के मुताबिक ईसा मसीह फिर से जन्म लेंगे और उसमें जेरूसल्म का अहम किरदार होगा। 

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