लखनऊ / बक्सर /गाजीपुर। वैसे तो देश की तमाम सरकारें गंगा को स्वच्छ रखने के लिए दशकों से कई अभियान चलाती आ रही हैं, जिसमें अब तक अरबों रूपए खर्च भी हो चुके हैं पर यदि हम गंगा नदी की तुलना पहले के समय से करें तो हालात और भी बदतर होते नजर आ रहे हैं। दिन-प्रतिदिन गंगा नदी और भी गंदी होती जा रही है।
प्रदुषित गंगा को स्वच्छ करने का सफाई अभियान अभी चल ही रहा था कि अब एक नयी परेशानी सामने आ खड़ी हुई है। इस कोराना काल के समय में जहां पर भारत का प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी परेशानी का सामना कर रहा है वहीं अब गाजीपुर और बक्सर में गंगा नदी में कई तैरती लाशों के मिलने से सनसनी मचा हुआ है। कहा जा रहा है कि नदी में जो भी लाशें मिली हैं उन सबकी मृत्यु कोविड-19 वायरस की वजह से हुई हैं।
प्रदेश सरकारों का कहना है यह लाशें उनके प्रदेश की नहीं हैं
एक तरफ हर कोई इस बात से परेशान है कि इतनी ज्यादा संख्या में लाशें कहां से आईं, वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश और बिहार प्रशासन इस बात को मानने से इनकार कर रहा है कि यह लाशें उनके प्रदेश की हैं। गंगा नदी में मिली लाशों पर कई स्वास्थ्य जानकारों और विशेषज्ञों ने अपनी राय और सुझाव दिए।
डॉक्टर बलराम भार्गव के मुताबिक मृत शरीरों से संक्रमण का कम खतरा नहीं है गंगा नदी में लाशें मिलने से लोगों में खौफ पनपने लगा है कि सामान्य लोगों में संक्रमित होने का खतरा अब और भी बढ़ गया है। इस पर कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि कोरोना वायरस फैलने की अशंका तब तक बहुत कम रहती है जब तक कि उसे शरीर में कोई भी होस्ट नहीं मिल जाता। डॉक्टर बलराम भार्गव जो कि आईसीएमआर के चेयरमैन हैं उन्होनें बताया कि वायरस को फैलने के लिए जीवित मानव शरीर की जरूरत पड़ती है, मृत शरीर से वायरस के फैलने का खतरा कम ही रहता है। लेकिन हमें फिर भी पूरी सावधानी बरतनी चाहिए।
वहीं दूसरी तरफ बीएचयू के प्रोफेसर ने बाताया कि पानी में कोरोना वायरस पैदा नहीं होता है बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के जीन विज्ञान के प्रोफेसर ने अपनी राय रखते हुए कहा कि अभी तक जो भी रिसर्च कोरोना वायरस पर किया गया है उसमें यह कहीं भी नहीं बताया गया है कि कोविड-19 वायरस पानी में जन्म लेता है इसलिए इसका मानव जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। अगर हम देखें तो न जाने कितने ही सीवर गंगा में रोज बहाए जाते हैं।
पूर्व चिकित्सा अधीक्षक डॉकेटर ओपी उपाध्याय ने कहा इससे हमारा वातारवरण प्रदुषित होगा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के ही पूर्व चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर ओपी उपाध्याय ने मृत शरीरों को इस तरह गंगा में फेकने को समाज के साथ जघन्य अपराध करने जैसा बताया। उन्होनें सबसे निवेदन किया कि कोई भी व्यक्ति इस तरह का कार्य ना करे, क्योंकि इससे वायरस के फैलने का खतरा शायद हो ही साथ ही इससे हमारा पर्यावरण भी प्रदूषित होगा। नदी मे लाशें सड़ेंगी जिससे कई प्रकार के कीटाणु पानी में जन्म लेंगे, दुर्गंध फैलेगी और पानी भी साफ नहीं रह जाएगा। गंगा नदी के पानी को जानवर भी पीते हैं इससे उनकी जान को भी खतरा होगा।
महामना मालवीय रिसर्च सेंटर के प्रो बीडी त्रिपाठी ने कहा कि शवों कों नदी में फेकना दुर्भाग्यपूर्ण है बीएचयू के महामना मालवीय गंगा रिसर्च सेंटर के चेयरमैन प्रो बीडी त्रिपाठी ने कहा कि ऐसा सुनने में आया था कि नदियों के किनारे कई लाशें मिली हैं। उन्होनें बताया कि लोगों का कहना है कि परिजनों के पास शवों को जलाने के पैसे ना होने के कारण उन्होनें शव को नदी में फेक दिया जिससे कि मृत शरीर को मोक्ष मिल सके। उन्होनें कहा कि इस तरह से लाशों को गंगा में प्रवाहित करना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।
भारत के वैज्ञानिक सलाहकार डॉक्टर विजन राघवन ने कहा डरने की कोई जरूरत नहीं है गंगा नदी में मिली लाशों पर बात करते हुए भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार डॉक्टर विजय राघवन ने आजतक को बताया कि संक्रमित लाशों से खतरा रूके हुए पानी में अधिक होता है, यदि पानी बहाव में है तो प्राकृतिक क्रियाओं के कारण वायरस का संपर्क किसी भी क्रिया से टूट जाता है और संक्रमण का खतरा नही रहता है।
आपको बता दें कि गंगा नदी के तट पर 30-40 लाशें मिली हैं, जिससे अन्दाजा लगाया जा रहा है कि गंगा की धारा में और भी कई लाशें बह रही होंगी। इस तरह से लाशों का मिलना सबके लिए चिंता और जिज्ञासा का विषय बना हुआ है। समझने वाली यह बात है कि जिस गंगा नदी के पानी को हम सबसे शुद्ध मानते हैं और जिसके जल से हम अपना कोई भी कार्य करना शुभ समझते हैं आज उस गंगा नदी की स्थिती ऐसी हो गई है कि उसका पानी जानवरों के पीने लायक भी नहीं रहा। प्रतिदिन यह स्थिती और भी भयावह होती जा रही है।