कृत्रिम मानव अंगों के उत्पादन में इंडस्ट्री के साथ मिलकर कार्य कर सकते हैं एकेटीयू के छात्र-छात्राएं

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लखनऊ| डॉ एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विवि में सोमवार को ‘न्यू पैराडाइम्स इन डिज़ाइन इंजीनियरिंगपर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा में डिज़ाइन इंजीनियरिंग के उद्योग एवं अकादमिक दोनों के विशेषज्ञ उपस्थित रहे। बीडेस पाठ्यक्रम के छात्र-छात्राओं के उद्यमिता विकास  एवं  डिज़ाइन इंजीनियरिंग में शोध कार्यों को बढ़ावा देने के लिए विवि स्थित इनोवेशन, इन्क्यूबेशन एवं स्टार्ट-अप सेंटर से जोड़ने पर विचार हुआ। इंडस्ट्री एवं एकेडमिक कोलैबरेशन के जरिए बीडेस पाठ्यक्रम के छात्र-छात्राओं के ट्रेनिंग और प्लेसमेंट को बेहतर बनाने पर भी चर्चा हुई। इंडस्ट्री से पधारी डर्टी हैंड्स स्टूडियो की मैनेजिंग डायरेक्टर जसजीत जोहल ने कहा कि वर्तमान में चिकित्सा शिक्षा एवं पुनर्वास से सम्बंधित प्रोडक्ट्स डिजाइनिंग में स्टार्टअप्स के लिए बड़ा स्कोप है।

उन्होंने बताया कि मेडिकल एजुकेशन के विद्यार्थियों को सिखाने के लिए कृत्रिम मानव शरीर या कृत्रिम अंग अधिकांशतः आज भी विदेशों से महंगी कीमत में आते हैं और वह भी 15 से 20 बार प्रयोग के बाद बेकार हो जाते हैं। हमारे संस्थान के डिज़ाइनर सिलिकॉन पॉलीमर के जरिए इस तरह के प्रोडक्ट्स बना सकते हैं। साथ ही दिव्यांग जनों के पुनर्वास के लिए लगभग असली जैसे दिखने वाले कृत्रिम अंगों का भी उत्पादन सकते हैं, जिन्हें रोबोटिक्स की सहायता से दैनिक कार्यों में मानव द्वारा असली अंगों की तरह प्रयोग किया जा सकता है। परिचर्चा में इंडस्ट्री से आये विशेषज्ञ राजीव सुब्बा ने असली जैसे दिखने वाले सिलिकॉन पॉलीमर से बने कृत्रिम अंगों से संबंधित एक प्रस्तुतिकरण दिया। यूपीआईडी नोयडा के सहायक आचार्य दीपक सिंह ने बताया कि आज का नवाचार डिज़ाइन पर आधारित है। ऐसे में डिज़ाइन और टेक्नोलॉजी के कोलैबरेशन से ही एक अच्छा और सोशल इम्पैक्ट वाला प्रोडक्ट बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि डिज़ाइन इंजीनियरिंग के क्षेत्र में  इंटरडिसिप्लिनरी एप्रोच वाले इंक्यूबेटर्स की आवश्यकता है, जो इस विवि के इन्क्यूबेशन सेंटर में आसानी से उपलब्ध हो सकते हैं।

इस दौरान विवि के प्रति-कुलपति प्रो कैलाश नारायण ने डिज़ाइन इंजीनियरिंग के क्षेत्र में इंडस्ट्री और एकेडमिक कोलैबरेशन को बढ़ावा के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की। इस अवसर पर यूपीआईडी के निदेशक प्रो वीरेंद्र पाठक, फैकल्टी ऑफ आर्किटेक्चर की डीन प्रो वंदना सहगल, कैस के निदेशक मनीष गौड़, डीन पीजी प्रो केवी आर्य उपस्थित रहे और अपने सुझाव दिए। परिचर्चा का संचालन डीन यूजी प्रो विनीत कंसल ने किया।

 

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