17 वीं लोकसभा 17 करोड़ मुसलमान.. 77 साल के बुज़ुर्ग का ख़त 47 साल के बच्चे के नाम

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पार्ट 2…..

राहुल गाँधी जी अगर हम 1962पर निगाह डाले तो हमें ये दिखाई देगा की मुल्क में साम्प्रदायिक दंगो की शुरुआत जबलपुर (जहा बीड़ी बनाने का काम होता है ) से हुई | उसके बाद देश के हर उस शहर और कस्बो में हुए जहा पर मुसलमानों ने मुल्क के बटवारे के पुरआशोब दौर के गुजरने के बाद अपनी दस्तकारी के हुनर के ज़रिये छोटे छोटे उद्योग कायम कर लिये थे | कम पढ़े लिखे मुसलमान उन उद्योगों में काम करने लगे थे लेकिन पढ़ा लिखा मुसलमान नौकरी हासिल नही कर पा रहा था क्योकि 1950 में कांग्रेस की केन्द्रीय सरकार ने एक गश्ती (सर्कुलर) जारी करके सभी राज्य सरकारों को अवगत करवा दिया था की सरकारी नौकरियो में मुसलमानों की तादाद 35 प्रतिशत है अब मुसलमानों को और नौकरियों में ना रखा जाए | वो गश्ती आज तक अपना असर दिखा रही है जिस की वजह से सरकारी नौकरियों में मुसलमान एक से चार प्रतिशत ही नौकरिया हासिल कर पा रहा है | 1962 से दंगो के ज़रिये मुसलमानों के छोटे बड़े सभी कारखानों और उघोग तबाह और बर्बाद किये जा रहे थे , ये सिलसिला लगभग 20 हज़ार दंगो के बाद जब 1977 में जनता पार्टी केंद में आयी तब जाकर फसादात का सिलसिला रुका | क्योकि आरएसएस , भारतीय जनसंघ और हिन्दू महासभा , जनता पार्टी में शामिल थी इस लिये फसादात नही हुए यही तमाम पार्टिया 1962 से फसादात में शामिल थी | कांग्रेस पार्टी ने इन पार्टियों को छुट दे रखी थी | इसकी मिसाल हम यहाँ यू दे सकते है की 1969 में महाराष्ट्र के शहर भिवंडी में जो की पावरलूम का शहर भी कहलाता है जहा हर घर में 8-10 पावरलूम लगे हुए थे जहां पर लाखों मीटर कपड़ा रोज़ तैयार होता है वहां पर दंगो का सिलसिला शुरू हुआ देखते ही देखते पूरा भिवंडी शहर आग की लपेट में आ गया | चंद दिनों में ही पूरा भिवंडी शहर तबाह व बर्बाद हो गया | 

दंगों के निशां

इस फसाद की जाँच के लिये जस्टिस मादान की सरबराही (अध्यक्षता) में एक कमेटी बनायी गयी जिस ने रिपोर्ट के आखरी पैरा में लिखा है की इन दंगो के कुसूरवार वो लोग है जो खाकी वर्दी पहने हुए थे | लेकिन आज तक किसी एक कुसूरवार को सजा नही मिली क्योकि कांग्रेस की नियत में खोट था , इसी तरह बाबरी मस्जिद की शहादत में भी कांग्रेस पार्टी बराबर की शरीक थी क्योकि 22 दिसम्बर 1949 की रात बाबरी मस्जिद में मूर्तिया रखवाने , 1986 में मस्जिद का ताला खुलवाकर पूजापाठ की इजाज़त देना , 1989 में शिलान्यास कराना ,1992 में बाबरी मस्जिद शहीद करवाकर मस्जिद की जगह पर 48 घंटो में चबूतरा तैयार कराकर उस पर मूर्तिया स्थापित कराना , मस्जिद की शहादत के बाद फसादात का सिलसिला शुरू हो जाना और मुसलमानों को फसादात का कुसूरवार ठहराकर उन्हें जेलों में डाल देना यह सब वह हाकायक (सच्चाई) है जिनको कांग्रेस पार्टी झुठला नही सकती है क्योकि ये सब वारदात कांग्रेस की ही हुकूमत में हुए | कांग्रेस पार्टी इन सच्चाईयो से भाग नही सकती |

कुदरत का अपना फैसला होता है इस फैसले के तहत कांग्रेस पार्टी बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद उभर नही पा रही है , आधे से ज्यादा राज्य उसके हाथ से निकल चुके है | 2004 में कुदरत ने एक मौका केंद्र सरकार बनाकर दिया था | लेकिन आप (राहुल गाँधी ) के कथनानुसार कांग्रेस पार्टी घमंड का शिकार हो गई थी जिसकी वजह से वह पूरी तरह से हारी और संसद में विपक्ष की सीट भी गंवा बैठी |

इन्दिरा गाँधी ने डॉ फरीदी को लाने के लिए चार्टर्ड प्लेन भेजा 

राहुल गांधी जी आपको ऐसे व्यक्ति का परिचय कराना चाहता हूं जिनको आपकी दादी प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने 1971 के चुनाव से पहले अपने एक भरोसेमंद मंत्री  वाई०बी०चावन को स्पेशल चार्टर जहांज़ से लखनऊ भेज कर दिल्ली  बुलवाया था वह शख्सियत मुस्लिम मजलिस मुशाविरत उत्तर प्रदेश  के अध्यक्ष  और ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस के अध्यक्ष डॉक्टर अब्दुल जलील फरीदी की थी ।

डॉ अब्दुल जलील फ़रीदी

दिल्ली बुलाकर श्रीमती इंदिरा गांधी ने डॉक्टर साहब से मुसलमानों की समस्याओं पर विचार-विमर्श  गुफ़्तगू की फिर उन्होंने चुनावी घोषणापत्र में डॉक्टर साहब से ही मुसलमानों से संबंधित वादे दर्ज कराएं श्रीमती इंदिरा गांधी  जी ये समझती थी कि अगर मुसलमानों का वोट मिल गया तो हमारी कामयाबी पक्की है क्योंकि उस समय इंडिकेट औऱ सिंडिकेट के मध्य चुनाव होना था ।  इस समझौते से पूरी इंडिकेट  पार्टी में खुशी की लहर दौड़ गई , चुनावी युद्ध में इंदिरा गांधी जीत गयी ।

डॉ फ़रीदी अपने समर्थकों के बीच, साथ असलम अंसारी भी मौजूद

कांग्रेस ने डॉक्टर साहब से जो वादे किए थे अभी तक उसमे से एक भी वादा पूरा होना तो दरकिनार 1972 में संसद में एक बिल लाकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा  समाप्त कर दिया गया । जब मुसलमानों की तरफ से इसके खिलाफ 16 जून 1972 को बाज़ुओ पर काली पट्टी बांधकर विरोध किया गया तो उस वक्त उत्तर प्रदेश की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने उसका विरोध करते हुए पी०ए०सी० बटालियन से गोली चलवा दी जिसमें अलीगढ़ फिरोजाबाद और बनारस में बहुत से लोग मारे गए एक जगह तो मस्जिद में इमाम को चटाई में बांधकर आग के हवाले कर दिया गया | उसके बाद डॉक्टर फरीदी साहब ने 5 मई 1973 को लखनऊ में विधानसभा के सामने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा बहाल कराने के लिए जेल भरो तहरीक चलायी जिसकी कयादत डॉक्टर फरीदी और राजनारायण जी ने की थी । जिसमें तकरीबन 350 लोगों ने अपनी गिरफ्तारी दी । तकरीबन एक माह तक जेल में गुजारे । डाक्टर फरीदी साहब अपने वक़्त के टी०बी०के मर्ज़ के हिन्दुस्तान के चंद डाक्टरों में से एक थे | डॉक्टर फरीदी साहब के पास 5 मुल्कों की डिग्रियां थी वह इतने गरीब परवर( गरीबों का भला करने वाले )  थे कि अपने मतब (क्लीनिक)    में सुबह के वक्त 100 मरीज बगैर फीस के देखते थे । सिर्फ शाम के वक्त वक्त 20 मरीज़  फीस लेकर देखते थे । जब डॉक्टर साहब तकरीबन एक माह तक जेल में रहे तो उनके गरीब मरीज बहुत परेशान हुए । यह वही डाक्टर फरीदी साहब है जिन्होंने नेशनल इंटीग्रेशन काउंसिल दिल्ली में 3 और 4 नवंबर 1969 को फिरकावाराना फ़सादात के मुतालिक अपनी अपनी तकरीर अंग्रेजी में की थी तो तकरीबन 90 मिनट तक चली । इस तकरीर का एक पैरा मुल्क के हालात को देखते हुए यहाँ दर्ज कर रहा हूँ । इस जलसे की सदारत (अध्यक्षता) प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी कर रही थी , दीगर मेम्बराने कौसिल जो मुल्क भर से आये थे वो मौजूद थे |

तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी

मोहतरमा…. मैं जानता हूं कि आपके लिए यह फैसला करना बड़ा मुश्किल है कि कौन मुसलमानों की नुमाइंदगी करता है । क्योंकि इस मुल्क में हर शख्स लीडर है । लेकिन आपके हाथो में मुल्क की नब्ज़ हैं । और आप आसानी से फैसला कर सकती हैं की किसी मख़सूस (विशेष) फिरके का सबसे ज्यादा एतमाद  और एहतराम किन को हासिल है इस वक़्त हमारे सामने मौजू-ऐ-बहस यह है  कि “फिरकावाराना तशद्दुद ” का मुकाबला कैसे किया जाय । मेरा ख्याल है कि इस मुसीबत के पुश्त पर जो जस्बा काम कर रहा है उसकी नैवईयत (प्रकार) मजहबी कम और इक्तिदार (कुर्सी) की हवस और इक्तिसादी (आर्थिक) लालच ज्यादा है | मैं यकीन से नही कह सकता की फिरकावारियत  की तारीफ क्या है । लोग मुझे फिरकापरस्त व कदामत पसंद कहते हैं और यह कि मैं कौमी धारे से नहीं बह रहा हूं | मै नॉरमल इंसान , एक आम हिंदुस्तानी , और एक मामूली दर्जे का मुसलमान जैसे इस मुल्क में करोड़ों मुसलमान है समझता हूं | मैं आपसे दरख्वास्त करता हूं कि उन उमूर (विषयों) से आगाह करें जिनके बिना पर मुझे फिरकापरस्त या कदामत पसंद समझा जाता है | मै साइंस की दुनिया से वाबस्ता हूं और मुबहम (गोलमोल) बातों का कायल नहीं हूं | मैं अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में फिरकावारीयत की वाज़ह (स्पष्ट) मिसाले चाहता हूं जिनको मुझसे ज्यादा आप जानती होंगी अगर आप चाहती हैं कि मैं अपना मजहब तर्क कर दू , तो मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा , अगर आप चाहती हैं कि मैं अपना नाम बदल दूं तो मैं यह भी नहीं करूंगा , अगर आप चाहती हैं कि अपनी पोशाक तब्दील कर दू तो मैं ऐसा नहीं करूंगा , अगर आप मेरे खाने की आदतें बदलना चाहे और मुझसे सब्जीखोर बनाना चाहती है तो मैं ऐसा भी नहीं करूंगा , बराये करम (कृपया) मुझे कौमी जिंदगी के धारे की तरफ ले चलिए मोहतरमा जैसा कि आप ने खुद पूछा है कि वह धारा कहां है मैं भी उसको जानना चाहता हूं 

राहुल गांधी जी मैंने ये वाकियात इसलिए लिखे हैं ताकि आप समझ सके कि कांग्रेस कयादत से कहां-कहां गलतियां हुई है |राहुल जी हम आपको इसका कुसूरवार नहीं मानते हैं आप इसके जिम्मेदार नहीं हैं | क्योकि आपकी उस वक्त उम्र बहुत कम थी , लेकिन आज हम आपको इस तहरीर (लेख) के जरिए यह बावर (स्प्ष्ट) कराना चाहते हैं कि आप सब के साथ इंसाफ करें चाहे वह किसी भी धर्म का मानने वाला हो क्योकि हिंदुस्तान एक गुलदस्ता है जिस में किस्म-किस्म (विभिन्न) प्रकार के फूल होते हैं | आप नवजवान है , आप सेक्युलर सोच को मुल्क में परवान चढ़ाने के लिए मैदान अमल में कदम आगे बढ़ा रहे हैं । इस मुल्क की बुनियाद  ही सेक्युलरिज़्म पर रखी गई , मुल्क सेक्युलर सोच से ही परवान चढ़ेगा | हमारे मुल्क का दस्तूर ही सेक्युलरिज़्म पर मुबनी (आधारित) है |

क़लमकार मुहम्मद असलम अंसारी

…. जारी

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