सांसदी छोड़ेंगे विधायकी रखेंगे

अखिलेश यादव से कार्यकर्ताओं ने कहा कि आप करहल विधानसभा सीट ना छोड़े और यहीं से विधायक रहें, ताकि इस इलाके को मजबूती मिल सके। अखिलेश यादव ने कार्यकर्ताओं की सिलसिलेवार बात तो सुनी, लेकिन कहा कि यह निर्णय पार्टी हाईकमान करेगी। आप लोगों ने जो सुझाव दिए हैं, उस सिलसिले में आजमगढ़ के लोगों से भी बातचीत की जाएगी।

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लखनऊ / दिल्ली । समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और आजम खान ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। अखिलेश अब करहल और आजम रामपुर सीट से विधायक बने रहेंगे। विधानसभा चुनाव में सपा को मिली हार के बाद कयास लगाए जा रहे थे अखिलेश सांसद पद पर बने रहेंगे, जबकि मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट छोड़ देंगे। यही कयास आजम को लेकर भी लगाए जा रहे थे। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ।

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने यूपी की करहल विधानसभा सीट से विधायकी कायम रखने के लिए सांसद का पद त्याग दिया। वो 2019 लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ से सांसद चुने गए थे और बीते 10 मार्च को आए चुनाव परिणाम में करहल विधानसभा से एमएलए भी बन गए। उन्हें इनमें किसी एक पद को त्यागना ही था।

समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने लोकसभा सदस्यता छोड़ दी है। वो उत्तर प्रदेश की करहल विधानसभा सीट से विधायक हैं। स्वाभाविक है कि उत्तर प्रदेश विधासभा में वही विपक्ष के नेता बनेंगे। अब तक अटकलें लग रही थीं कि यूपी के मुख्यमंत्री की कुर्सी से योगी आदित्यनाथ को उतारकर खुद बैठने में असफल रहे अखिलेश विधायकी भी छोड़ देंगे और सांसद ही बने रहेंगे। हालांकि, आज उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को अपना इस्तीफा सौंपकर अटकलों पर विराम लगा दिया। वो आजमगढ़ से सांसद थे।

अब यह कहा जाने लगा है कि अखिलेश ने सांसदी पर विधायकी को तवज्जो देकर बड़ी रणनीति की तरफ इशारा कर दिया है। आखिर क्या है वो रणनीति? अखिलेश ने अपेक्षाकृत कमजोर ओहदे को क्यों चुना? आइए इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं।

इस बार के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी 111 सीटों तक सिमट गई, वो भी तब जब उसका राष्ट्रीय लोकदल (RLD) से गठबंधन था जिसके खाते में सिर्फ आठ सीटें आई हैं। इतना ही नहीं, अखिलेश चुनाव से ठीक पहले योगी सरकार के तीन कैबिनेट मंत्रियों- ओम प्रकाश राजभर, दारा सिंह चौहान और स्वामी प्रसाद मौर्य को तोड़कर सपा के पक्ष में जबर्दस्त माहौल बनाने में कामयाब रहे थे। बावजूद इसके इनमें सबसे बड़बोले स्वामी प्रसाद मौर्य अपना ही चुनाव नहीं जीत सके।

अखिलेश ने आरएलडी के जयंत चौधरी का साथ लिया और कुलांचे भरने लगे कि किसान आंदोलन के कारण बीजेपी से नाराज जाट समुदाय के मतदाताओं के बड़े हिस्से को अपनी तरफ कर लेंगे। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं और जाट बेल्ट माने जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 126 विधानसभा सीटों में बीजेपी को 67% यानी 85 सीटें मिल गईं। हैरानी की बात तो यह है कि जिस लखीमपुर खीरी में किसानों के एक दल को केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता अजय मिश्रा टेनी के पुत्र आशीष मिश्रा के इशारे पर गाड़ियों से रौंदने का आरोप लगा, वहां की सभी आठ सीटें बीजेपी की झोली में गिर गईं। अखिलेश इन संकेतों को अच्छे से समझ चुके है।

बतौर सांसद अखिलेश यादव ज्यादातर समय दिल्ली में गुजारते थे। इसके चलते उनपर यूपी से दूरी बनाने का कई बार आरोप भी लगता रहा है। इस बार मिली हार के बाद अखिलेश ने अपनी रणनीति बदली है। अब वह दिल्ली की राजनीति करने की बजाय यूपी की राजनीति पर ही फोकस करना चाहते हैं।

अखिलेश यादव अभी तक आजमगढ़ से लोकसभा के सदस्य थे। अब उनके इस्तीफे के बाद यहां उप-चुनाव होंगे। अखिलेश को भरोसा है कि यह सीट दोबारा समाजवादी पार्टी जीत लेगी। उनका यह भरोसा हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम को देखते हुए बना है। सपा ने आजमगढ़ की सभी 10 सीटों पर जीत हासिल की है। वहीं, रामपुर में भी पांच में तीन विधानसभा सीटों पर सपा को जीत मिली थी। ऐसे में पार्टी को यहां भी लोकसभा उपचुनाव में जीत की उम्मीद है।

लोकसभा से इस्तीफा देने से साफ है कि अब 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों की तैयारी में जुट गए हैं। यूपी में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें हैं। अखिलेश अब कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। यही कारण है कि अब उनका फोकस सिर्फ और सिर्फ यूपी पर रहेगा।

2017 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद अखिलेश यादव वापस दिल्ली की राजनीति में कूद पड़े थे। इसके चलते यूपी में विपक्ष काफी कमजोर हो गया था। इसका नतीजा था कि 2019 और फिर 2022 में भाजपा के आगे विपक्ष पस्त हो गया। अब अखिलेश अपनी पुरानी गलती नहीं दोहराना चाहते हैं।

अखिलेश यादव से कार्यकर्ताओं ने कहा कि आप करहल विधानसभा सीट ना छोड़े और यहीं से विधायक रहें, ताकि इस इलाके को मजबूती मिल सके। अखिलेश यादव ने कार्यकर्ताओं की सिलसिलेवार बात तो सुनी, लेकिन कहा कि यह निर्णय पार्टी हाईकमान करेगी। आप लोगों ने जो सुझाव दिए हैं, उस सिलसिले में आजमगढ़ के लोगों से भी बातचीत की जाएगी। पार्टी के बीच में बैठकर इस बाबत निर्णय लिया जाएगा। जो फैसला होगा, उसमें सब का मन रखा जाएगा।

बैठक में 350 बूथ अध्यक्ष, जिला पंचायत सदस्य, ब्लाक प्रमुख, सेक्टर प्रभारी, प्रधान बुलाए गए थे । मालूम हो कि 10 मार्च को विधानसभा चुनाव के निर्णय आने के बाद से इस बात की चर्चाएं लगातार चल रहीं हैं कि अखिलेश यादव विधायक रहना पसंद करेंगे या फिर सांसद। इसको लेकर राजनीतिक हलकों में काफी चर्चाएं चल रही हैं। बैठक में पूर्व सांसद तेज प्रताप सिंह यादव, पूर्व विधायक सोबरन सिंह यादव, पूर्व राज्य मंत्री सुभाष चंद्र यादव, किशनी विधायक बृजेश कठेरिया, पूर्व विधायक अनिल यादव, पूर्व चेयरमैन नईम, ब्लॉक प्रमुख नीरज यादव, सपा जिलाध्यक्ष मैनपुरी देवेंद्र यादव, संतोष शाक्य पूर्व प्रधान, सोनू प्रधान आदि मौजूद रहे।

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