सावरकर अगर बीजेपी के रत्न! तो आईये जान लेते हैं ओवैसी के अनमोल रतन

"आखिर, ये कहां तक सही है कि हैदराबाद रियासत के 20 फीसदी मुसलमान बाकी 80 फीसदी हिंदुओं पर राज करें?" इस सवाल पर घमंडी कासिम रिज़वी ने कहा कि - “हैदराबाद में हम मुसलमान भले ही सिर्फ बीस फीसदी हैं लेकिन हमारे निजाम ने यहां 200 साल राज किया है तो इसका एक ही मतलब है कि हम मुसलमान सिर्फ राज करने के लिए ही बने हैं और देखना एक दिन ऐसा भी आएगा, जब मुसलमान इस पूरे देश पर राज करेंगे”

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वीर सावरकर को भारत रत्न देने की चर्चा हुई और सबसे पहले बुरा लगा ओवैसी टाइप लोगों को। ओवैसी का बयान आया कि – सावरकर भारत रत्न नहीं हैं, वो तो सिर्फ बीजेपी और हिंदुत्व के अनमोल रत्न हो सकते हैं… ठीक है ओवैसी साहब मान लेते हैं… लेकिन ऐसे में ये जानना भी ज़रूरी हो जाता है की आपकी पार्टी AIMIM के ‘अनमोल रत्न’ कौन थे ???? ज़रा उनका परिचय भी तो आवाम तक पहुंचना चाहिए… ओवैसी और उनके ‘अनमोल रत्न’ की इस कड़वी सच्चाई को जानने के लिए थोड़ा इतिहास के झरोखे में झांकना होगा… ये वो खिड़कियां हैं जिन्हे अक्सर आम हिंदुस्तानियों के लिए बंद ही रखा गया है… तो आइए इतिहास की खिड़की खोलते हैं और जानते हैं ओवैसी का ‘अनमोल रत्न’ वाला काला सच… तो भाइयों ओवैसी साहब की पार्टी और उनके बाप-दादाओं के अनमोल रत्न थे कासिम रिजवी!

बात 1927 की है… हैदराबाद में निज़ाम की सलाह पर एक दल बनाया गया जिसका नाम रखा गया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुसलमीन यानि MIM (आज ओवैसी इसी MIM की कोख से निकली AIMIM के अध्यक्ष हैं)… आखिर इस MIM का मकसद क्या था??? दरअसल हैदराबाद रियासत का पूरी तरह से इस्लामीकरण करने के लिए कट्टरपंथी MIM का गठन हुआ था। जिन्ना की मुस्लिम लीग के साथ मिलकर MIM ने हैदराबाद में पाकिस्तान के विचार को इतना खाद-पानी दिया कि ये एक दिन ये आज़ाद भारत की सबसे बड़ी समस्या बन गया… ये तो हुई MIM की पाकिस्तान परस्त विचारधारा की बात लेकिन इसकी खूनी करतूतों की कहानी शुरु होती है 1944 में जब इस MIM की कमान कासिम रिज़वी (ओवैसी के ‘अनमोल रत्न’) के हाथों में आ गई।

MIM की कमान लेते ही कासिम रिज़वी भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में सबसे कट्टरपंथी खूनी नेता के तौर पर दर्ज हो गया… सबसे पहले उसने MIM में अपने रजाकारों को भरना शुरु किया… रजाकार यानि हथियारबंद मुसलमानों की वो सेना जो हैदराबाद को आज़ाद मुल्क बनाये रखने या फिर पाकिस्तान में मिलाये जाने के लिए भयंकर हिंसा का सहारा लेती थी। करीब डेढ़ लाख रजाकारों की सेना जिसमें ज्यादातर MIM के कार्यकर्ता थे इन्होने हैदराबाद रियासत में हज़ारों-हज़ार हिंदुओं की हत्या की… ये एक लंबी कहानी है।

खैर, जब सरदार पटेल ने देखा कि MIM और रजाकारों के सरगना कासिम रिज़वी की वजह से हैदराबाद हाथ से निकल सकता है तो उन्होने सितंबर 1948 में हैदराबाद पर हमला बोल दिया और ऑपरेशन पोलो के तहत के रज़ाकारों की सेना महज 5 दिन में ढेर हो गई। इसके तत्काल बाद कासिम रिज़वी को गिरफ्तार कर लिया गया और उसी साल MIM पर प्रतिबंध लगा दिया गया। कासिम रिज़वी के “पाकिस्तानी सपने” और उसका घमंड एक झटके में फना हो गया। ओवैसी के ‘अनमोल रत्न’ कासिम रिज़वी को अपने मुसलमान होने का कितना अभिमान था इसका उल्लेख एक किताब “October Coup – A Memoir of the Struggle for Hyderabad” में मिलता है। इस किताब के लेखक मोहम्मद हैदर ने लिखा है कि जब उन्होने कासिम रिज़वी से पूछा कि – “आखिर, ये कहां तक सही है कि हैदराबाद रियासत के 20 फीसदी मुसलमान बाकी 80 फीसदी हिंदुओं पर राज करें?” इस सवाल पर घमंडी कासिम रिज़वी ने कहा कि – “हैदराबाद में हम मुसलमान भले ही सिर्फ बीस फीसदी हैं लेकिन हमारे निजाम ने यहां 200 साल राज किया है तो इसका एक ही मतलब है कि हम मुसलमान सिर्फ राज करने के लिए ही बने हैं और देखना एक दिन ऐसा भी आएगा, जब मुसलमान इस पूरे देश पर राज करेंगे”। वहीं पी वी काटे अपनी किताब Marathwada Under the Nizams के पेज नंबर 75 पर लिखते हैं कि – ” कासिम रिज़वी की एक ही सोच थी कि मुसलमान हिंदुओं को गुलाम बना कर रखें”…. तो ऐसी थी ओवैसी के ‘अनमोल रत्न’ की सोच।

अब चलिए 10 साल और आगे। 1957 में नेहरू सरकार ने गद्दार कासिम रिज़वी को रिहा कर दिया… कासिम रिज़वी का भारत में अब कोई रहनुमा नहीं बचा था, उसने अपने आकाओं के ज़रिए पाकिस्तान में शरण मांगी जो उसे मिल गई… पाकिस्तान जाने से एक दिन पहले उसने MIM की बैठक बुलाई और अपने पाकिस्तान जाने के फैसले के बार में अपने साथियों को बताया इसी बैठक मे सवाल उठा की अब मजलिस यानि MIM की कमान किसे सौंपी जाए तो कासिम रिज़वी ने अपने एक साथी युवा वकील का नाम सुझाया जिसका नाम था अब्दुल वाहिद ओवैसी। जी हां वही अब्दुल वाहिद ओवैसी जो आज के ओवैसी साहब के दादाजान थे।

अब्दुल वहीद ओवैसी ने MIM की कमान लेने के बाद सिर्फ एक बदलाव किया… MIM के आगे ऑल इंडिया लगा दिया और इस तरह बनी “ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुसलमीन” यानि AIMIM… लेकिन नाम बदलने से क्या होता है ??? MIM की कोख से AIMIM का जन्म हुआ, आखिर उसका डीएनए कैसे बदलता… ठीक वैसे ही अब्दुल वहीद ओवैसी के डीएनए उनके पोते असदुद्दीन ओवैसी की रगों में दौड़ रहे हैं… इसीलिए ओवैसी साहब अगली बार कौन ‘अनमोल रत्न’ है और कौन नहीं। ये बताने से पहले ये पता करना कि तुम्हारे मरहूम दादाजान और तुम्हारी पार्टी MIM ने हिस्सेदारी में क्या मांगा था??? लड़कर लेंगे पाकिस्तान, मरकर लेंगे पाकिस्तान!

आप के मन में सवाल उठता होगा कि आखिर असदुद्दीन ओवैसी और उनके छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी को को इतने भड़काऊ भाषण देने की ट्रेनिंग कहां से मिली तो इसका जवाब हैं इनका डीएनए… इन दोनों भाईयों के दादा अब्दुल वाहिद ओवैसी (‘अनमोल रत्न’ कासिम रिज़वी के चेले) को भी जहरीले भाषण के आरोप में 14 मार्च 1958 को हैदराबाद पुलिस ने गिरफ्तार किया था… दादा ओवैसी पर भडकाऊ भाषण, दंगा फैलाने, गैर-मुस्लिमों (हिंदुओ) के प्रति घृणा फैलाने के तहत मुकदमा चला और उन्हे 11 महीने तक आंध्रप्रदेश की चंचलगुडा जेल में कैद रहना पड़ा था।

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