लखनऊ / दिल्ली । भाला फेंक कर मुड़ कर ना देखना आत्मविश्वास की पराकाष्ठा थी। वह जानता था के जिस स्टांस से भाला फेंका गया है और जिस एलिवेशन से भाला फेंका गया है उसे 85 मीटर पार जाना तो निश्चित है। इसलिये मुड़ कर थ्रो की ओर देखा भी नहीं।
इससे पहले यह आत्मविश्वास महाभारत में दिखा था जब अर्जुन ने मछली की आँख भेद कर उसकी ओर देखा भी नहीं था। कुछ समय के लिये पदकों को एक किनारे रख दीजिये।
एक कन्या का आत्मविश्वास देखिये जो आस्ट्रेलिया जैसी विश्वस्तरीय टीम के विरुद्ध गोल पर खड़ी एक के बाद एक पेनल्टी स्ट्रोक का सामना करती रही परंतु एक बार भी बॉल को गोलपोस्ट के पार ना होने दिया। उस पहलवान का आत्मविश्वास देखिये जिसने कुश्ती में अंकों से पिछड़ने के पश्चात निर्णय किया के कुश्ती जीतने के लिये विपक्षी पहलवान को चित्त कर दिया जाये….. एक दांव लगाया और विपक्षी पहलवान को चित्त कर कुश्ती जीत ली।
उस बॉक्सर का आत्मविश्वास देखिये जो चेहरे पर टांके लगवाये राष्ट्र की शान में बॉक्सिंग रिंग में अपने प्रतिद्वंद्वी से भिड़ गया। उस महिला गोल्फर का आत्मविश्वास देखिये जो विश्व में 200 वीं रैंक होने के बावजूद भी विश्व की शीर्ष रैंकिंग गोल्फर्स से भिड़ गयी और लगभग मेडल जीतने की कगार पर पहुंच गई। एक आध मैच को छोड़ दें तो सिंधु का आत्मविश्वास देखने लायक था। सिंधु के हाव भाव, बॉडी लैंग्वेज इतनी सशस्क्त थी के विपक्षी खेल से पहले ही हथियार डाल रहे थे।
आज बजरंग क्या गज्जब कांफिडेंस से लड़ा। वाकई देख कर लगा के कोई विश्वस्तरीय पहलवान अखाड़े में उतरा है। बदलते भारत के इन चेहरों को बारम्बार देखना दिलोदिमाग को नवउर्जा से भर देता है। मन की ताकत देखने लायक है। संकल्प की शक्ति देखने लायक है भाला फेंक कर जो मुड़ के ना देखे वह जानता है के स्वर्ण पदक पक्का हो गया है। अगला मुकाम पैरिस ओलंपिक है और अब नीरज की तरह हमें भी मुड़ कर नहीं देखना है।