इसे किसी की आस्था पर व्यंग न समझा जाए लेकिन निसंदेह यह भारतीय मुस्लिम समाज को आईना दिखाने के लिए लिखा गया है।
मुस्लिम समाज के कुछ दाढ़ी टोपी वाले मोहतरम हजरात जिन्हे अक्सर टीवी पर जलील होते हुए देखा जाता है यदि कोई समाज उन पर अपने समाज या धर्म का प्रतिनिधि न होने का दबाव नहीं बना सकता तो बेशक वो समुदाय कमजोर ही कहलाएगा।
क्या किसी टीवी डिबेट में कभी किसी सिख ग्रन्थि या साधारण सिख को भी अपने धर्म अथवा समाज के विरूद्ध बहस करते देखा है ?
क्या किसी एंकर की आजतक हिम्मत हुई है जो सिख समुदाय के बारे में कुछ बोल सके ?
नफ़रत पैदा करने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से तेल पेट्रोल यही मौलाना लोग उपलब्ध कराते हैं बेशक केले की ठेली खड़ी करके उधार की टोपी पहन कर किसी तंजीम के अलम्बरदार बताए जा रहे हो।