हाल ए बंगाल : मोदी का हाल बेहाल, ममता ने किया कमाल

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बार फिर प्रचंड बहुमत से सूबे की सत्ता अपने पास रखी है ममता ने हाई वोल्टेज चुनाव में मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी को करारी शिकस्त दी है।

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लखनऊ / कोलकाता। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने तीसरी बार बहुमत हासिल करते हुए जीत दर्ज की। सारे विपक्षी पार्टियों के पुरजोर कोशिशों के बाद भी ममता बनर्जी अपनी सत्ता बचाने में सफल रहीं। ममता बनर्जी ने चुनाव प्रचार के शुरूआत में ही ‘खेला होबे’ नारे के साथ चुनावी बिगुल फूंका था। वहीं विपक्षी पार्टी बीजेपी के पूरी ताकत लगाने के बाद भी वो दहाई का आंकडा पार नहीं कर पाए और 77 सीटों पर ही सिमट कर रह गए। हालांकि पश्चिम बंगाल में 77 सीटें मिलना भी बीजेपी के लिए बड़ी उपलब्धि है।

बीजेपी ने ममता बनर्जी के खेला होबे के तर्ज पर ‘विकास होबे’ को अपना चुनावी बुनियाद बनाते हुए चुनाव प्रचार की शुरूआत की। तीन महीने तक बीजेपी के कई मंत्रियों ने पश्चिम बंगाल में लगातार सभाएं और रैलियां की, जिनमें केंद्र के कई मंत्री और राज्य के मुख्यमंत्रियों ने भी चुनाव प्रचार किया। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुद ड़ेढ़ दर्जन से अधिक चुनावी सभाएं की। एक भी दिन ऐसा नहीं गया होगा जिस दिन बीजेपी नें पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार ना किया हो। लगातार रोड शो और रैलियां करने और अपने हिंदुत्ववाद की भावना को आगे करने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी को बंगाल में दीदी उप-राष्ट्रवाद नीति से करारी सिकस्त मिली।

3 सीटों से 77 सीटों तक पहुंचना बीजेपी के लिए बड़ी उपलब्धि

हालांकि बीजेपी ने पश्चिम बंगाल के विधानसभा के पिछले चुनाव की तुलना में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। बीजेपी का तीन सीटों से 77 सीटों तक पहुंचना अपने आप में एक बड़ी जीत माना जा रहा है। परन्तु बीजेपी ममता के बेड़े में सेंध नहीं लगा पाई। बीजेपी को इतनी सीटों के मिलने से बंगाल में कांग्रेस का पूरी तरह सफाया हो गया। बीजेपी के राष्ट्रवाद नीति पर ममता का उपराष्ट्र वाद की नीति का पलड़ा भारी पड़ गया।

बीजेपी के हिंदुत्वाद तोड़ के लिए ममता ने किया चंड़ीपाठ

बीजेपी के ममता बनर्जी पर भाई-भतीजावाद औऱ अल्पसंख्यक के तुष्टीकरण का, और जातिगत राजनीति करने का आरोप लगाने के बाद भी इन तबगो का वोट ममता की झोली में ही अधिक गया। जहां पर बीजेपी ने हिन्दुवाद की राजनीति की तो ममता ने खुद को ब्राह्मण की बेटी बताया और चंडीपाठ किया, जिससे हिन्दु वोटरों के साथ-साथ अल्पसंख्यक वोटरों का भी समर्थन दीदी को मिला।

औरतों की अस्मिता को ममता ने बनाया अहम मुद्दा

ममता बनर्जी ने औरतों की अस्मिता को भी अपना एक मुद्दा बनाया, ‘कन्याश्री’ और ‘रूपश्री’ की जिक्र करते हुए बंगाल की महिलाओं को लुभाने का प्रयत्न किया जिसमें वो काफी हद तक सफल भी रहीं। ममता ने बीजेपी को हमेशा बाहर वाला कह कर ही जनता के सामने संबोधित किया जिसका फायदा चुनाव नतीजों में देखा जा सकता है। दीदी की ओर अधिक वोटरों के झुकाव का एक कारण यह भी माना जा रहा है कि पैर में चोट और व्हील चेयर पर होने के बाद भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव प्रचार को नहीं रोका और लोगों के बीच जाती रहीं।

बीजेपी के केन्द्रीय मंत्रियों और कई नेताओं की लाख कोशिशों और ताम-झाम के बाद भी वो बंगाल की महिला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की जड़ को छू भी नहीं पाए और अगले पांच सालों के लिए दीदी ने अपना रास्ता साफ कर लिया है।

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