लखनऊ / दिल्ली । पुकारने वाला नाम पुकारता है। नाम सुनकर सवा सौ साल (125) का युवा आगे बढ़ता है. प्रधानमंत्री मोदी के सामने साष्टांग प्रणाम करता है। मोदी कुर्सी से उठते हैं. जितना झुक सकते हैं, भरसक झुककर उस शख़्स को प्रणाम करते हैं। शख़्स आगे बढ़ता है. राष्ट्रपति से कुछ क़दम दूर रेड कार्पेट पर आगे बढ़ने से पहले एक बार फिर लगभग लेटने की मुद्रा में प्रणाम करता है। युवा उठता है. राष्ट्रपति तक पहुंचने के लिए तेज़ क़दमों से लपकते हुए चलता है. तीन ज़ीने हैं युवा पहला ज़ीना चढ़ता है दूसरा ज़ीना चढ़ता है और राष्ट्रपति को ठीक पीएम वाली मुद्रा में प्रमाण करता है. राष्ट्रपति अपनी कुर्सी से खड़े होते हैं. उस 126 साल के युवा को उठाते हैं. और उसे पद्मश्री से सम्मानित करते हैं।
यह शख़्स हैं काशी के स्वामी शिवानंद. इन्हें योग के लिए पद्मश्री दिया गया है। इन तस्वीरों में लोकतंत्र है। झुकना, लोकतंत्र(मानव) का सबसे बड़ा गुण, जो उसे और ऊंचा उठा देता है। लोकतंत्र को झुकना पड़ता है. उसे झुकना ही चाहििये उसे झुककर जनता को ऊपर उठाना आना चाहिए।
मोदी सरकार की हम लाख आलोचना करें लेकिन पद्म पुरस्कारों के चयन में तंत्र अब लोक को प्राथमिकता देता नजर आने लगा है। पद्म पुरस्कार बहुत चुनकर, ज़मीनी व्यक्तियों को दिए जाने लगे हैं लोकतंत्र के पुरस्कार ज़मीन और जनता तक पहुंचाने का काम सरकार बख़ूबी कर रही है। सरकार, समाज, लोक और तंत्र को बहुत बधाई।