अनमोल लस्सी.. शुक्रिया अम्मां

सिगरेट बियर पान मसाला से कुछ पल की आत्म मुग्धता तो मिल सकती है लेकिन आत्मिक संतुष्टि तो आत्मीयता में ही है

0
707

अपने शहर की एक  दूकान पर लस्सी का ऑर्डर देकर हम  दोस्त-यार तफरीह और हंसी-मजाक में लगे ही थे कि एक लगभग 70-75 साल की एक बुजुर्ग अम्मा पैसे मांगते हुए मेरे सामने हाथ फैलाकर खड़ी हो गई।

उनकी कमर झुकी हुई थी, चेहरे की झुर्रियों में भूख तैर रही थी। नेत्र भीतर को धंसे हुए किन्तु सजल थे। उनको देखकर मन मे न जाने क्या आया कि मैने जेब मे सिक्के निकालने के लिए डाला हुआ हाथ वापस खींचते हुए उनसे पूछ लिया I

“अम्मा लस्सी पियोगी ?”

मेरी इस बात पर अम्मा तो कम अचंभित हुईं, हॉ मेरे मित्र अधिक। क्योंकि वो पैसों के अंकगणित जोड़ रहे थे और मैं अपने मनोविज्ञान को पढ़ रहा था ‘अगर मैं उनको पैसे देता तो बस 5 या 10 रुपए ही देता लेकिन लस्सी तो 25 रुपए की एक है’ इसलिए लस्सी पिलाने से मेरे गरीब हो जाने की और उस बेसहारा अम्मा के द्वारा मुझे ठग कर अमीर हो जाने की संभावना बहुत अधिक बढ़ गई थी।

अम्मा ने सकुचाते हुए हामी भरी और अपने पास जो मांग कर जमा किए हुए 6-7 रुपए थे वो अपने कांपते हाथों से मेरी ओर बढ़ाए। मुझे कुछ समझ नही आया तो मैने उनसे पूछा,

“ये किस लिए?”

इनको मिलाकर मेरी लस्सी के पैसे चुका देना बाबूजी !

भावुक तो मैं उनको देखकर ही हो गया था… रही बची कसर उनकी इस बात ने पूरी कर दी।

एकाएक मेरी आंखें छलछला आईं और भरभराए हुए गले से मैने दुकान वाले से एक लस्सी बढ़ाने को कहा… उन्होने अपने पैसे वापस मुट्ठी मे बंद कर लिए और पास ही जमीन पर बैठ गई।

अब मुझे अपनी लाचारी का अनुभव हुआ क्योंकि मैं वहां पर मौजूद दुकानदार, अपने दोस्तों और कई अन्य ग्राहकों की वजह से उनको कुर्सी पर बैठने के लिए नहीं कह सका।

डर था कि कहीं कोई टोक ना दे…..कहीं किसी को एक भीख मांगने वाली बूढ़ी महिला के उनके बराबर में बिठाए जाने पर आपत्ति न हो जाये… लेकिन वो कुर्सी जिसपर मैं बैठा था मुझे काट रही थी…..!

लस्सी कुल्लड़ों मे भरकर हम सब मित्रों और अम्मा के हाथों मे आते ही मैं अपना कुल्लड़ पकड़कर उन्हीं के पास जमीन पर बैठ गया क्योंकि ऐसा करने के लिए तो मैं स्वतंत्र था  इससे किसी को आपत्ति नही हो सकती थी  हां! मेरे दोस्तों ने मुझे एक पल को घूरा… लेकिन वो कुछ कहते उससे पहले ही दुकान के मालिक ने आगे बढ़कर अम्मा को उठाकर कुर्सी पर बैठा दिया और मेरी ओर मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कहा,

ऊपर बैठ जाइए साहब! मेरे यहां ग्राहक तो बहुत आते हैं किन्तु इंसान कभी-कभार ही आता है।

डॉ आकाश वेद(दायें) अपने स्टूडेंट के साथ

अब सबके हाथों मे लस्सी के कुल्लड़ और होठों पर सहज मुस्कुराहट थी, बस एक वो अम्मा ही थीं जिनकी आंखों मे तृप्ति के आंसू, होंठों पर मलाई के कुछ अंश और दिल में सैकड़ों दुआएं थीं।

LEAVE A REPLY