पेट! पिटाई! पढाई! और मियाँ भाई

एक ही समय में ये दोनों घटनाएँ तत्कालीन प्रधानमंत्री पंंडित नेहरू की भूल हैं लेकिन हमारे तथाकथित रहबर न जाने सरकार के कानों में जाकर क्या बोलते हैं।

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23 दिसंबर 1949 की सर्द रात को अयोध्या के बाबरी मस्जिद में रहस्यमयी ढंग से राम लला की मूर्तियां प्रकट हुई इस क्रिया की प्रतिक्रिया  में ही 18 अगस्त 1950 को धारा 341 पर  धार्मिक प्रतिबंध लगाया गया था। बाबरी मस्जिद के अन्दर मौजूद रामलला दर्शन पर रोक(ताला) के आड़ में धारा 341पर बंदिश लगवाई गई। ये एक ख़ुफ़िया समझौता था जिसने उस समय के इतने हाई वोल्टेज इश्यू को हफ़्ते-दस दिन में ठंडा कर दिया क्यों कि 26 जनवरी1950 को संविधान को देश के हवाले भी तो करना था । 

23 दिसमबर1949को जिनके भाग्य से मूर्ति पाईं गईं वे भी किस्मत वाले निकले और जिन्होंने ने दलित मुस्लिम के काज़ पर समझौता कर अच्छे माहौल में पहला गणतंत्र दिवस मनाया और लम्बे अरसे तक हुकूमत चलाई वे भी किस्मत के धनी निकले। पिट गया बीच में दलित मुस्लिम समाज जबकि मस्जिद को भी लम्बे अरसे तक किसी ने हाथ नहीं लगाया और न मूर्ति ही वहां से हटीं। इस बीच शाह बानो केस के एवज़ में बाबरी मस्जिद का ताला1986में खुला लेकिन ग़रीब मुसलमानों के अधिकारों पर ताला लगा रहा है। 1992में मस्जिद को अल्लाह ने उठा लिया और सरकार ने 341में बौद्ध धर्म को शामिल कर लिया लेकिन दलित मुस्लिम के लिए किसी के मुंह से एक शब्द नहीं निकला। हमारे तथाकथित राजनीतिक और धार्मिक नेताओं ने बाबरी मस्जिद की आड़ में शोहरत और दौलत ख़ूब कमाया जबकि इस बीच मुस्लिमों की बड़ी आबादी दलित-ट्राइबल से भी बद्तर ज़िन्दगी गुज़ारने को मजबूर होती गई। 

उधर वो दीन बचाते रहे इधर हम दीन हीन होते रहे 
कभी शरियत बचाव, कभी दीन बचाव करते रहे लेकिन कभी 341 में सुधार की बात नहीं की जबकि ये मुस्लिम समाज के पेट, पढ़ाई और पिटाई ( तहफ़फुज़) से जुड़ा हुआ है। सरकार ने 370 में सुधार किया लेकिन इनके मुंह से ये नहीं निकला कि 370 की तरह 341में भी सुधार हो एक ही समय में ये दोनों घटनाएँ तत्कालीन प्रधानमंत्री पंंडित नेहरू की भूल हैं लेकिन हमारे तथाकथित रहबर न जाने सरकार के कानों में जाकर ये बोलते हैं। अभी अयोध्या को लेकर दे -दो, दे-दो करने लगे हैं लेकिन अयोध्या कांड के असल पीड़ित दलित मुस्लिम को उनका 1950 से छीना हुआ अधिकार दिलाने की कोई सुगबुगाहट भी नहीं होती।

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