तालाब का पानी बदल दो अब कमल कुम्हलाने लगे हैं

भाजपा में इलेक्शन होते थे मगर अब वहां भी वक्त बदल रहा है। मण्डल से जिले तक सिलेक्शन होना तय हो गया है। संगठन में लोकतंत्र की नाक इसलिए दबाई जा रही है कि वह सांस लेते समय खर्राटे (गुटबाज़ी )ज़्यादा मारती है अर्थात उसके नेताओ की आरामतलबी में खलल पैदा करती है इसलिये संगठन में निर्वाचन के बजाय मनोनयन की नीति को सिस्टम पर थोपा जा रहा है

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भोपाल। हम पहले से ही कहते और मानते आए है लोकतंत्र में जो कुछ घटित हो रहा है उसके चलते सियासत – सत्ता  (मंत्री- अफसर समेत ), संगठन और इसका स्वयं भू स्तम्भ मीडिया कसौटी पर हैं। मगर इस समय लगता है सबके दिन बुरे चल रहे हैं। ढोल तो पीटा था अच्छे दिन आने वाले हैं और दूसरों ने दावा किया था बदलाव है बदलाव का… जो हो रहा है वह अंधे को भी दिख रहा है और बहरे को भी सुनाई दे रहा है। न अच्छे दिन आते दिख रहे हैं और न ही वक्त बदलता।

भाजपा में इलेक्शन होते थे मगर अब वहां भी वक्त बदल रहा है। मण्डल से जिले तक सिलेक्शन होना तय हो गया है। संगठन में लोकतंत्र की नाक इसलिए दबाई जा रही है कि वह सांस लेते समय खर्राटे (गुटबाज़ी )ज़्यादा मारती है अर्थात उसके नेताओ की आरामतलबी में खलल पैदा करती है इसलिये संगठन में निर्वाचन के बजाय मनोनयन की नीति को सिस्टम पर थोपा जा रहा है।प्रदेश भाजपा में अध्यक्ष का चुनाव आखरी बार शिवराज सिंह चौहान और विक्रम वर्मा के बीच हुआ था।इसके वाद अठारह साल बीत गए और इस अवधि में आम सहमती या मनोनयन से प्रदेश अध्यक्ष का चयन किया जा रहा है।पहले यह स्तिथि मंडल और जिलों में अध्यक्ष चयन में नही थी।वहाँ कार्यकर्ता अध्यक्ष और प्रदेश प्रतिनिधि का चुनाव करते थे।अब मंडल और जिलों में अध्यक्ष के लिए चालीस और पैतालीस की आयु सीमा तय कर दी है।कई अनुभवी और वफादार इसके चलते चुनाव से बाहर हो गए है।

तीस नवम्बर तक प्रदेश भाजपा को अपने छप्पन जिला अध्यक्क्ष का चुनाव करना था लेकिन नहीं हो सका।जिलो में चुनाव की बजाए रायशुमारी कर दावेदारों जे पैनल बुलवा लिए गए है।अब इनपर चर्चा कर मनपसंद अध्यक्षों की घोषणा कर दी जाएगी।इस तरह निर्वाचन के जरिये जो एक हज़ार से अधिक मंडल अध्यक्क्ष और छप्पन जिला अध्यक्ष चुने जाते थे वे सब अब निर्वाचन के बजाय मनोनियमित किये जायेंगे।इस नई प्रक्रिया से भाजपा में काम करने वाले कमल को मिलाते नज़र आएंगे।इसके लिए मशहूर शायर दुष्यंत त्यागी का एक शेर याद आ रहा है जो उन्होंने सड़ती गलती व्यवस्था को लेकर लिखा था।

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो

यहां के कमल कुम्हलाने लगे हैं

इसके अलावा प्रदेश भाजपा के चुनाव को छोड़ दें तो कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष को लेकर कोई खास चिंता नहीं है। वहां अभी नए अध्यक्ष की आवश्यकता भी नहीं लगती क्योंकि कोई बड़े चुनाव नहीं होने वाले हैं। सिर्फ नगरीय निकाय के चुनाव सामने हैं। कांग्रेस इसमें कोई न कोई रास्ता निकाल लेगी। वैसे भी अब चुनाव सीधे नही होने है सो किसी के भी पार्षद जीतें जिसमे “दम” होगी उसका मेयर जीतेगा।

बड़े अफसर ने की थी आत्महत्या की कोशिश

मध्यप्रदेश में बदलाव का वक्त ऐसा आ रहा है कि पूरी की पूरी सियासत हनी से ट्रेप होती दिख रही है। पत्थर उछालो तो लगता है किसी नेता या अफसर के सिर लगेगा। यह बहुत संजीदा मसला है और जो कुछ हो रहा है वह देशव्यापी चर्चा के हालात बना रहा है। ऐसा लगता है आने वाला वक्त उस पर विस्तार से चर्चा करने को विवश करेगा। इस फिलहाल चौकाने वाली बात यह है कि एक बड़े अफसर ने हनी के चक्कर मे सोसाइड करने की कोशिश की थी।

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