लखनऊ / दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल कोविड-19 की विभीषिका का सामना करने के लिए देशवासियों को “जान है तो जहान है” का मंत्र दिया था जब महामारी पर थोड़ा काबू पाया जाने लगा तो एक और मंत्र दिया “जान भी जहान भी” तब मोदी सरकार के आलोचकों ने लॉकडाउन की आलोचना करते हुए कहा था कि देश की अर्थव्यवस्था रसातल मे चली गई है और प्रधानमंत्री सिर्फ जुमलेेबाजी कर रहे हैं।
इस साल जब कोरोना महामारी की दूसरी लहर के चलते देश के विभिन्न राज्यों में हाहाकार मचा हुआ है तब केंंद्र सरकार ने लॉकडाउन जैसे उपाय लागू करने की जिम्मेदारी संबंधित राज्य सरकारों के विवेक पर छोड़ दिया है।
पूरे देश में कोरोना की भयावह स्थिति है क्या भाजपा सरकारें क्या विपक्ष की सरकारें, चारों तरफ मरीजों एवं उनके तीमारदारों की चीत्कार सुनाई दे रही है और सरकारों और सिस्टम की लापरवाही को चीख चीख कर बयान कर रही हैं ऐसे दौर में राज्य सरकारों के पास फिर से एक ही रामबाण दिखाई दे रहा है कि देश को बंद (लॉकडाउन) कर दिया जाये।
राज्य सरकारों ने आंशिक तौर पर लॉकडाउन करके “जान भी जहान भी” के मंत्र को अपनाने की कोशिश की है जिससे कोरोना के मामले में कुछ कमी आई है लेकिन साथ ही साथ अर्थव्यवस्था में भी कमी देखी जा रही है।
अर्थशास्त्रियों की मानें तो लॉकडाउन एक दोधारी तलवार है जिसमें एक तरफ तो कोरोना के मामले में कमी आती है वहीं दूसरी तरफ बेरोजगारी और मंहगाई में वृद्धि होती जाती है।
सीएमआई की रिपोर्ट के मुतबिक देश की अर्थव्यवस्था संकट में है रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन की परिस्थितियों में सरकार पर्याप्त रोजगार सृजित नहीं कर सकती ऐसे में लोगों का जीवन संकट में आना लाजमी है।
लॉकडाउन की वजह से भारी संख्या में लोगों का कृषि क्षेत्र की ओर पलायन हो रहा है क्योंकि शहरों में रोजगार देने वाले सेक्टर पर तालाबंदी है जिससे बड़ी संख्या में लोगों का रोजगार छिन गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल में देश की बेरोजगारी की दर 8% दर्ज की गई है रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि कोरोना की दूसरी लहर में बेरोजगारी बढ़ने का जितना अनुमान लगाया जा रहा है यह उससे कहीं अधिक है आपको बताते चलें कि मार्च में देश की बेरोज़गारी दर 6.5% थी।
अर्थव्यवस्था पर पैनी नजर रखने वाली संस्था थिंक टैंक CMIE (Center for Monitoring Indian Economy) की रिपोर्ट के मुताबिक मार्च में रोजगार की दर 37.6% से गिरकर अप्रैल में 36.8% पर आ गई है।
आशंका जताई जा रही है कि अर्थव्यवस्था की स्थिति अगर ऐसी ही बरकार रही तो देश के लोगों को दो जून की रोटी के लिए जीवन और भी ज्यादा संघर्ष करना पड़ेगा।
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