9 बजे 9 मिनट!”मुसलमानों ने दीये नहीं जलाये और मुसलमानों ने भी दीये जलाये” के बीच बहस में मुसलमान

सुबह फेसबुक ट्विटर इंस्टाग्राम व्हाट्सऐप वगैरह होते हुए जब मैं वास्तविक दुनिया में आया तो क्या देखता हूँ कि मेरी इनबाक्स बीती रात की तस्वीरों और वीडियो से अटी पड़ी है और कैप्शन तकरीबन सबके मिलते जुलते हैं "मुसलमानों ने #भी दीया जलाया"

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अरे लाइट चली गई क्या? नहीं नहीं लाइट तो आ रही है, फिर ये अंथेरा क्यों? अंसारी के घर के पास वाले खंभे पर लाइट क्यों नहीं जल रही? दो महिलायें आपस में ये बातें कर ही रही थी कि सामने वाले मकान की बत्तियां भी बुझ गई, ये लो, अब तो आसिफ भाई ने भी अपने घर की बत्तियां बुझा दीं।

ये क्या ये सारे लोग अपने मोबाइल की फ्लैश लाइट्स क्यों जला रहे हैं, वो देखो.. वो छोटे छोटे बच्चे.. सारा, अब्दुल्ला, मरियम, हाना वो भी छत पर दौड़ते भागते दिख रहे हैं।

पापा मैं भी दीया जलाऊंगा, ये लो मोबाइल.. इसकी फ्लैश लाइट्स जला लो, 

नहीं, मुझे दीया जलाना है और कोरोना को हराना है 13 साल के नाविद ने अपने पापा से जिद करते हुए कहा।

अच्छा ठीक, ये कह कर उसके पापा पास वाली परचून की दुकान पर कैंडल लेने चल दिये । मैंने अपने मोबाइल फोन की घड़ी में देखा, रात के 8 बज कर 57 मिनट हो रहे थे और ये आंखों देखा हाल एक मुस्लिम बाहुल्य मुहल्ले का था।

सुबह फेसबुक ट्विटर इंस्टाग्राम व्हाट्सऐप वगैरह होते हुए जब मैं वास्तविक दुनिया में आया तो क्या देखता हूँ कि मेरी इनबाक्स बीती रात की तस्वीरों और वीडियो से अटी पड़ी है और कैप्शन तकरीबन सबके मिलते जुलते हैं

“मुसलमानों ने #भी दीया जलाया”

शायद आपको ये जानना जरूरी हो कि मेरे पास जितनी भी तस्वीरें या वीडियो आये उनमें से ज्यादातर किसी ना किसी पॉलिटिकल विचारधारा के सक्रिय सदस्य या मनोवैज्ञानिक रूप से उनके समर्थक हैं लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने जो तस्वीरें और वीडियो भेजे उसके साथ ये सवाल भी पूछा कि, क्या इस तरह की नौटंकी से कोरोना भाग जायेगा? क्या ये वक्त पॉलिटिकल इवेंट मैनेजमेंट का है? क्या हमारा नेतृत्व ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें करके हमें दुनिया में मूर्ख साबित नहीं कर रहा?

इन सवालों को पढ़ कर मैं कुछ सोच रहा था कि मेरे एक मीडिया #विधर्मी मित्र का फोन आया उनके न्यूज रुम में यही बहस छिड़ी थी कि

“मुसलमानों ने दीया नहीं जलाया”

कुछ लोग ये भी कह रहे थे कि “मुसलमानों ने #भी दीया जलाया” उन्होंने कहा, भाईयों मेरे पड़ोस में रहने वाले मुसलमानों ने दीया जलाया मैं खुद गवाह हूँ। 

तभी वहां से शोर उठती है और उस उठती हुई शोर में आवाज आती है, अबे तू प्रशांत अग्रहरि है या परवेज अंसारी? 

इतना कहकर प्रशांत हंस पड़ा लेकिन मैं सोचता रहा कि, चलो प्रशांत ने तो उन लोगों को आईना दिखाया, अब मेरी भी जिम्मेदारी है ना कि इन लोगों को आईना दिखाऊँ, तो आईये चलते हैं उस दौर में जिस दौर को जीने की जद्दोजहद में #साद और उस जैसे लोगों ने मुसलमानों को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा है।

दौर है पैग़म्बर मुहम्मद का,

स्थान है मदीना की मस्जिद ए नबवी

और मकसद है, मक्का विजय

आप सब को ये बताने की जरूरत नहीं कि उस दौर में या पैदल या ऊंट से या खच्चर से या घोड़े पर सवार होकर मंजिल का सफर तय किया जाता था, जब मक्का विजय के लिए रणनीति तैयार हो रही थी तो पैग़म्बर मुहम्मद ने अपने वारियर्स के मनोबल बढ़ाने के लिए बहुत सारी टिप्स दीं लेकिन एक वो बात कही जो सीधे तौर पर युद्ध के किसी औजार से मेल नहीं खाता था बल्कि वो संसाधनों की बर्बादी ज्यादा लगता था उन्होंने कहा था जब आप को मक्का नजर आने लगे तब अपने दोनों हाथों में एक एक मशाल उठा कर चलना और उनके वारियर्स ने ऐसा ही किया और बिना किसी जंग के ही मक्का फतह हो गया।मै 

अब भी सोच रहा हूँ क्या

कोरोना फ्रंट लाइन वारियर्स को सम्मान देने के लिए ताली बजाना मूर्खता और देशवासियों के मनोबल को ऊंचा बनाये रखने के लिए दीया जलाना, संसाधनों का दुरुपयोग है तो पैग़म्बर मुहम्मद की उस सलाह को क्या कहेंगे ?

हम कोरोना से आज नहीं तो कल इंशाअल्लाह आजाद हो जायेंगे लेकिन आप सोचिए कि “मुसलमानों ने #भी दीया जलाया” इस सेंटेस के #भी से कैसे और कब आजाद होंगे

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