तन समर्पित मन समर्पित और यह जीवन समर्पित, चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं । दोनों पैरों से विकलांग मिथलेश जायसवाल पर्यावरण प्रेमी है उन्हें वन के साथ-साथ वन्य जीवों और पर्यावरण से बेहद लगाव है। मिथलेश जायसवाल विगत 7 वर्षों से वन्य जीव एवं गौरैया संरक्षण में लगे हुए है। बचपन से ही दोनों पैरों से दिव्यांग मिथलेश के जज्बें ने विकलांगता को ही अपने जीवन का मूल मंत्र बना लिया, उन्होंने कभी हार नहीं मानी न ही अपनी विकलांगता को अपने जीवन के किसी मोड़ पर बाधा बनने दिया। दोनों पैरों से दिव्यांग होने के बावजूद उनका जोश, उनका हौसला हम जैसे युवाओं को अपने जीवन में कुछ कर गुजरने का साहस प्रदान करता है।
मिथलेश लगातार गांव-गांव एवं विधालयों में जाकर वन्य जीवन संरक्षण एवं गौरैया संरक्षण का संदेश दे रहे है। उनका कहना है कि पर्यावरण एवं वन्य जीव एक दूसरे के पूरक है यदि यही नहीं रहेंगे तो मानवों का क्या होगा। यह जीवन चक्र चलना मुश्किल हो जायेगा। इसलिए अपनी आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ पर्यावरण एवं गौरैया की चहचहाहट देना चाहते है तो अभी से इनके संरक्षण में जुट जाना चाहिए।
मिथलेश कहते है कि आधुनिकता के इस दौर में लोग इतना आधुनिक हो गये है कि उनका रहन-सहन जीवन शैली सब कुछ बदल गया है। कच्चें खपरैल एवं झोपड़ी नुमा मकानों की जगह आलीशान घरों ने ले लिया है ऐसे में गौरैया जो इन्हीं स्थानों पर अपने घोसलें बनाती थी उनके लिए जीवन संकट खड़ा हो गया है। गौरैया के संरक्षण के लिए मिथलेश उनको वैसा ही महौल देने का प्रयास कर रहें है उन्होंने अपने मकानों के आस-पास लगभग 1 दर्जन से ज्याद़ा घोसलें-नुमा बाक्स लगा रखा है जिसमे गौरैया अपना घोसला बनाकर रह रही है।
इसके अतिरिक्त वह लोगों को गौरैया संरक्षण का संदेश देते हुए बाॅक्स बनवाकर लोगों में वितरित भी कर रहे है। मिथलेश बताते है कि अब तक उन्होंने 100 से ज्याद़ा बाॅक्स लोगों में वितरित किया है जिसमे साधारण वर्ग से लेकर उच्चाधिकारी एवं गणमान्य व्यक्ति भी सम्मलित है इसके लिए उन्हें राज्य पुरस्कार समेत विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है। वही मिथलेश का कहना है कि सुबह उठकर गौरैया की चहचहाहट जब सुनता हूं तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे प्रकृति के साथ जीवन का आनंद ही जीवन की सार्थकता है।