लखनऊ /रांची।झारखंड में ईस्टर्न कोल् फील्ड लिमिटेड के अंतर्गत आने वाले संथाल परगना माइंस चितरा कोलियरी इन दिनों मुश्किल दौर से गुजर रहा है। गुटों के बीच वर्चस्व की लड़ाई को लेकर कभी कोलियरी बंद कभी चालू होता है चितरा कोलियरी गैंग्स ऑफ वासेपुर बन चुका है फ़र्क सिर्फ यही है यहाँ एक दो नहीं बल्कि तीन रामाधीर सिंह है और फैज़ल कोई नहीं?
कोलियरी कुछ लोगों की पर्सनल प्रॉपर्टी बन चुका है इस कोलियरी की बदौलत दो विधायक बन चुके है और वर्तमान विधायक भी इसी चितरा कोलियरी क्षेत्र से आते है देवघर जिले का एक मात्र औद्योगिक क्षेत्र राजनीतिक अखाड़ा बन चुका है।
सवाल ये है कि आखिर ये बंदर बांट कब तक चलेगी? इस सवाल की पड़ताल करने पर हमारे संवाददाता को वहां के निवासी एवं सामाजिक कार्यकर्ता रजाउल हक अंसारी ने बताया, किसी को पता नहीं ये वर्चस्व की लड़ाई कब तक चलेगी ? मेरा गाँव ठाड़ी, चितरा कोलियरी से सटा हुआ इसलिए रोज़ मुझे नई-नई खबरें मिलती रहती है कोलियरी बंद रहे या चालू रहे यहाँ के बहुजन/पसमांदा/आदिवासी को कोई फर्क नहीं पड़ता है। यहां मजदूरों को कोलियरी से बस इतना ही मिलता है जिससे वो दो वक्त की रोटी जुटा सके।
वो स्थानीय पुलिस प्रशासन पर सवाल खड़े करते हुए कहते हैं कि आखिर क्या वजह है सब कुछ जानते हुए भी शासन रामाधीर बंधुओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करता। रजाउल इस बात की आशंका भी जताते हैं कि ऐसा न हो कि जनता का आक्रोश इस कदर उग्र हो जाये कि जन प्रतिनिधियों के ऊपर फूट पड़े।