राजस्थान! एक बार फिर CM Vs Dy CM

इंदिरा राजीव के दौर में एक जुमला प्रसिद्ध हुआ करता था कि एक बिजली का बल्ब बदलने के लिए कांग्रेस को तीन मुख्यमंत्री बदलने की जरूरत होती है। दो बल्ब को लगाने के लिए और तीसरा नीचे से स्टूल को ठोकर मारकर गिराने के लिए।

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राजस्थान कांग्रेस में उठापटक का दौर बदस्तूर जारी है।सीमाओं को सील कर दिया गया है। ऐसा कहा जा रहा हैं कि एक बार फिर गहलोत और पायलट आमने सामने है।

राजस्थान में अक्सर कहा जाता है अजगर के लपेटे में आया हुआ आदमी और गहलोत के लपेटे में आया हुआ नेता बच नहीं सकता। सचिन को यह नसीहत सरकार बनने के साथ ही मिल चुकी है सरकार बनने के साथ ही गहलोत और पायलट की अदावत पॉवर सेंटर को लेकर जारी है। सचिन युवा है, भारतीय राजीनीति में लोकप्रिय भी है, बोलने का बेहत्तर सलीका है। अपने पिता की बड़ी राजनीतिक विरासत को संभाल रहे है।

वही गहलोत बुजुर्ग है, लोकप्रिय है। बोलने में कोई महारत हासिल नहीं हैं, न कोई राजनीतिक विरासत न ही जातीय समीकरण लेकिन जितनी पायलट की उम्र है उतना राजनीतिक अनुभव रखते है और टाइमिंग स्ट्रोक के बेहत्तर खिलाड़ी है। देखा जाए तो गहलोत कांग्रेस के सबसे बड़े अपवाद है।अगर कहा जाए कि गहलोत कांग्रेस के ढांचे से ही खारिज है, तो गलत नहीं होगा। गहलोत कांग्रेस के कायदों में फिट नहीं बैठते हैं।

अव्वल तो गहलोत कांग्रेस के ओल्ड गार्ड लॉबी में आते है। दूसरा ग्राउंड कमेंट्री के मझे हुए नेता हैं। इंदिरा राजीव के दौर से ही कांग्रेस में कभी भी बुजुर्ग और लोकप्रिय नेताओ को ढोने की परंपरा नहीं रही है। कांग्रेस में शुरू से आलाकमान कल्चर रहा है। राज्यों को कभी स्वतंत्र नहीं छोड़ा गया। उसमे भी गहलोत हर बार आलाकमान से अपनी बात मनवा कर अपनी शातिर बुद्धि और राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दे देते है।

कांग्रेस में न जाने कितनी ही बार ग्राउंड पर लोकप्रिय,शक्तिशाली और स्वतंत्र होते मुख्यमंत्रियो को कोई न कोई बहाना बनाकर हटा दिया है। हरिदेव जोशी, दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेस ने ऐसे दर्जनों मुख्यमंत्रीयो को बदला है।

इंदिरा राजीव के दौर में एक जुमला प्रसिद्ध हुआ करता था कि एक बिजली का बल्ब बदलने के लिए कांग्रेस को तीन मुख्यमंत्री बदलने की जरूरत होती है। दो बल्ब को लगाने के लिए और तीसरा नीचे से स्टूल को ठोकर मारकर गिराने के लिए। गहलोत की स्टूल को भी बहुत बार ठोकर मारने की कोशिश हुई लेकिन तब तक गहलोत बल्ब बदल आते है।

वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई अपनी किताब 24 अकबर रोड में लिखते है कि कांग्रेस के स्ट्रक्चर में दो तरह के नेता होते है। एक वो जो दरबार पॉलिटिक्स में माहिर होते है यानी कि गांधी परिवार के नजदीक। दूसरे वो जो ग्राउंड पॉलिटिक्स में अच्छे होते है,यानी कि अपने क्षेत्र में लोकप्रिय। लेकिन गहलोत इसके अपवाद है। वो दरबार पॉलिटिक्स भी बेहत्तर ढंग से कर रहे है और ग्राउंड पॉलिटिक्स भी।

सही मायनों में देखा जाए तो आज तक अपने राजनीतिक करियर में गहलोत ने दोनों ही मोर्चो पर बेहत्तर काम किया है। सरकार जाने के बाद जब उनकी 10 जनपथ पर समीकरण गड़बड़ाते है तो दिल्ली डेरा डाल लेते है और जब ग्राउंड समीकरण गड़बड़ाते है तो जयपुर में अकेले गाड़ी लेकर छोटी चौपड़ चाय पीने पहुंच जाते है।

एक बार फिर पायलट और गहलोत आमने सामने है।माना जा रहा है कि पायलट से कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष पद से इस्तीफा मांगा जा रहा है। दूसरा प्रदेश में होने वाली राजनीतिक नियुक्तियों पर पायलट और गहलोत में मनमुटाव है। राजनीतिक सरगर्मियां तेज है,बैठकों का दौर जारी है। पायलट समर्थकों में उनके भाजपा जॉइन करने की भी चर्चा है। कांग्रेस आलाकमान भी अब मैदान में आ चुका है।

देखते है इस बार राजनीति की शतरंज में प्यादों से वजीरो को हराने के माहिर खिलाड़ी गहलोत एक बार फिर अपने चिरपरिचित अंदाज में आलाकमान को अपनी बात मनवा पाते है या फिर ये साबित हो जाएगा कि राजस्थान कांग्रेस में अब गहलोत युग का पटाक्षेप होने वाला है।

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