Broadcasting Day : रेडियो को गॉधी ने क्यों कहा अद्भुत चमत्कार और मोदी ने क्यों चुना ये औज़ार!

भारतीय रेडियो प्रसारण की शुरुआत 23 जुलाई 1927 को 'इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी' के बंबई केंद्र से हुई थी। 1930 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने इस माध्यम के महत्व को समझते हुए इसे अपने नियंत्रण में लेकर 'इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस' का नाम दिया जो 1936 से ऑल इंडिया रेडियो के रूप में जाना जाने लगा। आजादी के बाद सूचना प्रसारण मंत्रालय ने इस एकमात्र सार्वजनिक सरकारी प्रसारण माध्यम का नाम आकाशवाणी कर दिया।

1
585

लखनऊ / दिल्ली । भारत विभाजन के वक्त जब दुनिया के आबादी की सबसे बड़ी अदला-बदली चल रही थी उस वक्त प्रस्तावित पाकिस्तान से शरणार्थियों का एक समूह दिल्ली से सटे कुरुक्षेत्र में पड़ाव डाले हुए था उनके मन में अपने जीवन अपने परिवार के भविष्य को लेकर तमाम तरह की आशंकाएं घर बना रहीं थीं ऐसे कठिन समय में उन्हें दिलासा और विश्वास दिलाने के लिए बापू से रेडियो के जरिए उन्हें संदेश देने की अपील की गई पहले तो महात्मा गाँधी को कुछ झिझक हुई लेकिन संदेश प्रसारित होने के बाद उन्होंने रेडियो के बारे में कहा, ये तो अद्भुत चमत्कार है। 

रेडियो की महत्ता हमारे देश के नायकों ने बहुत पहले ही पहचान लिया था आजादी से बहुत पहले की बात है आल इंडिया रेडियो का सर्वेसर्वा अंग्रेज़ हुआ करते थे, 1935 में आल इंडिया रेडियो के कंट्रोलर लायनेल फिल्डन ने कहा था, निश्चय ही भारत जैसे विशाल देश में, प्रसारण जितनी शिक्षा दे सकता है जितनी एकता ला सकता है जितना निर्देश दे सकता है उतना कोई और माध्यम नहीं कर सकता। 

इसीलिये देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ‘मन की बात ‘देश की जनता से साझा करने के लिए जनसंचार के तमाम दूसरे माध्यम रहते हुए भी रेडियो का चयन किया जो इसकी महत्ता को रेखांकित करता है।

भारतीय रेडियो प्रसारण की शुरुआत 23 जुलाई 1927 को ‘इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी’ के बंबई केंद्र से हुई थी। 1930 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने इस माध्यम के महत्व को समझते हुए इसे अपने नियंत्रण में लेकर ‘इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस’ का नाम दिया जो 1936 से ऑल इंडिया रेडियो के रूप में जाना जाने लगा। आजादी के बाद सूचना प्रसारण मंत्रालय ने इस एकमात्र सार्वजनिक सरकारी प्रसारण माध्यम का नाम आकाशवाणी कर दिया।

संचार के इस सुलभ और प्रभावी माध्यम रेडियो ने बीते नौ दशक से महानगरों के ड्रॉइंग-रूम से लेकर गांव की चौपालों और किसानों के खेतों तक का सफ़र तय किया है। पिछले ढाई दशक में मनोरंजन के विस्फोटक-संसाधनों के विस्तार के बावजूद आज भी रेडियो देश की लगभग 99 प्रतिशत जनता तक सीधी पहुंच रखता है इसलिए रेडियो जनसंचार का सबसे प्रभावी माध्यम है। 

समय बदला आवाज़ बदली ज़्यादातर लोगों के हाथों में मोबाइल आ गया इस के बावजूद ऑल इंडिया रेडियो की महत्ता कम नहीं हुई, रेडियो ने टेक्नोलॉजी को अपनाते हुए डिजिटल टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया के सहारे एक बार फिर नई ऊर्जा और नये अंदाज़ के साथ श्रोताओं के दिलों में अपनी जगह बनाई।

आकाशवाणी के 94 साल के सफर पर न्यूज़ डॉन ने आकाशवाणी के लखनऊ केंद्र का सफर किया और वहां के ब्रॉडकास्टर्स से बात की, 

सुभाष खन्ना, कार्यक्रम अधिशासी

कार्यक्रम अधिशासी सुभाष खन्ना ने बताया कि रेडियो आज 94 साल का हो गया है 1927 को 23 जुलाई के दिन भारत में रेडियो प्रसारण का आग़ाज़ हुआ था। एक अद्भुत उपकरण एक अद्भुत तकनीक रेडियो ने सबके जीवन पर अपना गहरा असर डाला। प्रसारण के उस शुरूआती रूप से लेकर आज तक रेडियो ने लंबा सफर तय किया है। भारत में रेडियो का मतलब ही रहा है आकाशवाणी। उसकी सिग्‍नेचर ट्यून के क्या कहने, वाह अदभुत और रोमांचक।

आकाशवाणी के गौरवशाली सफर को याद करते हुए सहायक निदेशक रश्मि चौधरी ने बताया देशवासियों ने अनगिनत ऐतिहासिक पल जिये हैं हमे वो दौर आता है जब ओलंपिक और क्रिकेट विश्व कप की लाइव कॉमेन्‍ट्रीज़ हम आकाशवाणी के जरिये सुनते थे भारत का हॉकी ओलंपिक विजेता बनना और क्रिकेट विश्व कप जीतने का जश्न हमने आकाशवाणी की आवाज़ों के साथ ही मनाना सीखा। इतना ही नहीं हम राकेश शर्मा की अंतरिक्ष यात्रा, आज़ादी की रात प्रधानमंत्री नेहरू का ट्रिस्‍ट विथ डेस्टिनी वाला भाषण भी आकाशवाणी के जरिये ही सुना।  

रश्मि चौधरी, सहायक निदेशक

रश्मि जी कहती हैं आकाशवाणी ने कभी अपने श्रोताओं के साथ भेदभाव नहीं किया उसने बच्‍चों के लिए बाल जगत कार्यक्रम बनाया तो युवाओं के लिए युववाणी, किसानों के लिए खेती किसानी कार्यक्रम बनाये तो वहीं गीत संगीत में रुचि रखने वालों के लिए फिल्मी और शास्‍त्रीय संगीत के कार्यक्रम। देश दुनिया की घटनाओं से समाज को अपडेट करने के लिए समाचारों का प्रसारण तो आकाशवाणी का अभिन्न अंग है ही।

उन्होंने बताया कि फिल्मी गीत संगीत और कलाकारों की जिंदगी से रुबरु कराने के लिए रेडियो सीलोन का महत्वपूर्ण योगदान है फिर रेडियो सीलोन की टक्‍कर में आकाशवाणी ने विविध भारती का प्रसारण शुरू किया और भारतीय प्रसारण सेवा का पूरा आयाम ही बदल कर रख दिया।

प्रसारण दिवस के अवसर पर एक सवाल करते हुए वरिष्ठ कार्यक्रम अधिशासी अवधेश प्रताप सिंह कहते हैं कया आपको याद है, मरफी का वॉल्‍व वाला रेडियो? उस रेडियो को याद कीजिए, जिसे शुरू होने में वक्‍त लगता था अब रेडियो मोबाइल में है, एप्‍लीकेशन के रूप में है, नेट स्‍ट्रीमिंग के ज़रिये दुनिया के कोने कोने में सुना जा रहा है।

उन्होंने बताया कि रेडियो ने मनोरंजन की परिभाषा को बदला है। रेडियो ने आपको ये इजाज़त दी है कि आप अपने काम में रहते हुए भी उससे जुड़े रह सकते हैं रेडियो ने लंबे सफर को आसान किया है। जाने कितनी यूनिवर्सिटीज़ के अनगिनत हॉस्‍टल के कमरों में गूंजता रहा है रेडियो, और उसकी बैकग्राउंड की आवाज सुनते हुए ना जाने कितने स्टूडेंट्स ने मैथ्स के प्रोब्लम्स सॉल्व किये हैं! । 

अवधेश प्रताप सिंह, वरिष्ठ कार्यक्रम अधिशासी

अवधेश प्रताप सिंह कहते हैं, दरअसल रेडियो हमसफर है, दुख बांटने वाला है, हिम्‍मत बंधाने वाला है, मुसीबत के दौर का साथी है। रेडियो की उंगली पकड़कर हमने एक श्रोता से एक ब्रॉडकास्‍टर होने तक का सफर तय किया है। आज रेडियो प्रसारण के 94 बरस पूरे होने पर हम रेडियो को सलाम करते हैं।

1 COMMENT

  1. सीधे सादे शब्दों में शोधपरक जानकारी के लिए रिपोर्टर को धन्यवाद

LEAVE A REPLY