आपको पता है! पृथ्वी हमसे क्या चाहती है ? वही जो आज हम लॉकडाउन में कर रहे हैं

कभी ॐ की न सुनाई देने वाली बेहद शांत ध्वनि को महसूस किया है ! नहीं किया है तो आज कीजिए, और महसूस करते वक्त ॐ को किसी धार्मिक शब्द में बांधने की कोशिश मत करिए, क्योंकि आरंभ और अंत दोनों यहीं से है

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आज पृथ्वी दिवस है। साल 1970 में 22 अप्रैल के दिन से मनाया जाने वाला पृथ्वी की खुशहाली के प्रति समर्पित एक पवित्र दिन जो सभी राष्ट्रीय सीमाओं को पार करते हुए समस्त भौगोलिक दीवारों को स्वयं में समाये हुए है। पृथ्वी ब्रह्मांड में सबसे अनमोल वस्तु है, जो जीवन के लिए आवश्यक वस्तुएं, ऑक्सीजन, पेड़-पौधे, जीव-जंतु और पानी को बनाए रखती है। यहाँ पहाड़, झरने, तालाब, नदियां, सागर और महासागर के साथ-साथ इसमें एक ऐसा समय भी शामिल हैं जो पूरी दुनिया के लोगों को एक परम् शक्तिशाली गूंजायमान ध्वनि में बांध देता है।

कभी ॐ की न सुनाई देने वाली बेहद शांत ध्वनि को महसूस किया है ! नहीं किया है तो आज कीजिए, और महसूस करते वक्त ॐ को किसी धार्मिक शब्द में बांधने की कोशिश मत करिए, क्योंकि आरंभ और अंत दोनों यहीं से है। ॐ प्रकृति के संतुलन को बनाये रखने के लिए सतत समर्पित है, जो पृथ्वी पर ही नहीं बल्कि पूरे ब्रह्माण्ड में तकनीक, समय-मापन और तुंरत संचार को प्रवाहित करने की अथाह शक्ति रखता है ! क्योंकि यह जीवन के चक्र के प्रति समर्पित है ! उसके लिए यह सृष्टि की सेवा है। संभव है कि विज्ञान इन बातों से सहमत न हो लेकिन वही विज्ञान कुछ न कर पाने की दशा में आज एक अदृश्य ईश्वरीय शक्ति के सामने हॉंथ जोड़े खड़ा है।

आपको पता है कि पृथ्वी हमसे क्या चाहती है ? वही जो आज हम लॉकडाउन में कर रहे हैं ! सेवाभाव। सभी के प्रति एक सा सेवाभाव, जो हम छोड़ चुके हैं। वही सेवाभाव, जो हमने खो दिया है। क्योंकि वैश्विक स्तर पर चोरी-चकारी, झूठ-मक्कारी, अनैतिकता, अनाचार, अधर्म, गरीब-दरिद्र नारायणों के अधिकारों का हनन, प्रकृति का दोहन, जंगल की कटान, जानवर हैरान परेशान, सर्व शक्तिशाली बनने का दोमुंहा जुनून और अति आधुनिकता की अंधी दौड़, जो आज अपने चरम पर है, जिसकी वजह से पृथ्वी एक बड़े काले बोझ के नीचे दब गई है ! बस, वो अपना बोझ कम करना चाह रही है।

कहते हैं न, कि कोई भी चीज जब चरम पर होती है तो उसका विनाश निश्चित होता है। वही तो हो रहा है। सब साधन संपन्न होने के बाद भी एक दवाई नहीं बना पा रहे हैं। अगर कुछ काम आ रहा है तो उसी धरती की गोद में उगे अनाज, सब्ज़ियों और मसालों के रूप में कुछ औषधिय तत्व। पृथ्वी पर पाए जाने वाले तमाम प्राकृतिक संसाधन दिन प्रतिदिन मानवों के गलत कार्यों के कारण बिगड़ रहे हैं, जिसका खामियाजा भी वो समय-समय पर भुगतते हैं पर अफ़सोस कि समझते नहीं या सर्व शक्तिमान होने के घमंड में समझना नहीं चाहते। इसलिए पूरे विश्वभर के लोगों के बीच में जागरुकता फैलाने के लिए पृथ्वी दिवस हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाता है, पर अफ़सोस कि खानापूर्ति के लिए।

आज नेचर के दिन पर अगर हम अपने नेचर को भी सुधारें तो शायद नेचर हमें माफ कर दे। कुछ ही दिन में नेचर में बदलाव भी आएगा और कोरोना संकट समाप्त होगा, हो सकता है कि तब तक कोरोना की दवाई भी बन जाए और हम भविष्य में इस संकट से लड़ने को तैयार हों ! लेकिन फिर क्या ! क्या पृथ्वी फिर उन्मादियों से जूझेगी या मानवता उन्मादियों से ?

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