कोरोना सिर्फ एक वायरस नहीं बल्कि….

डॉ स्कंद शुक्ला ने कोरोना को लेकर समाज में फैली भ्रांतियों के बारे में जानकारी दी है पढिये ये लेख ऐसी कोई सटीक दवा निश्चित तौर पर उपलब्ध नहीं , जिसे विषाणु या उसके रोग को नष्ट करने में कारगर कहा जा सके। विश्व स्वास्थ्य संगठन ऐसी किसी दवा की पुष्टि नहीं करता। शोधों के बाद ही किसी दवा को डॉक्टर की सलाह से लेना चाहिए

0
1339

लखनऊ । हमने तो जीवविज्ञान की किसी पुस्तक में पढ़ा है कि कोरोना-विषाणु पुराना है ? अगर यह विषाणु पुराना है , तब इससे इतना अधिक ख़तरा मनुष्यों को क्यों बताया जा रहा है ? एक सज्जन का प्रश्न है।

आपने जीवविज्ञान की पुस्तक में जो पढ़ा है , वह सही किन्तु अधूरा ज्ञान है। जब ज्ञान संक्षिप्त होता है , तब वह अपूर्णता से ग्रस्त रह सकता है। कोरोना विषाणु एक विषाणु नहीं है ; यह अनेक विषाणुओं का समूह है। यह विषाणु-समूह स्तनपाइयों और पक्षियों को संक्रमित करता रहा है। साधारण ज़ुकाम से लेकर न्यूमोनिया जैसे लक्षण इन विषाणुओं के कारण हो सकते हैं। कई पशुओं में कोरोना-विषाणुओं से दस्त-इत्यादि जैसे लक्षण भी पाये गये हैं : यह इस बात को सिद्ध करता है कि अलग-अलग जन्तु-स्पीशीज़ में इसके लक्षण अलग-अलग अंगों को प्रभावित कर सकते हैं।”

“कोविड-19 उत्पन्न करने वाला वर्तमान कोरोना विषाणु नया है। यह चमगादड़ों से किसी अन्य पशु में होता हुआ मनुष्यों में आया है , ऐसा वैज्ञानिक मानते हैं। तदुपरान्त मनुष्यों में आने के बाद भी आनुवंशिक आधार पर दो प्रकारों में बँट गया है : एल स्ट्रेन एवं एस स्ट्रेन। ( यह चीनियों का शोध है। कुछ वैज्ञानिक एल स्ट्रेन को एस स्ट्रेन से निकला हुआ बता रहे हैं। ) एल स्ट्रेन की संक्रामकता अधिक है , ऐसा भी माना जा रहा है।”

“यह तो और भ्रामक और भयानक जान पड़ती स्थिति है !” सज्जन कहते हैं।

“भय-भ्रम की जगह जागरूक और समझदार बने रहना है। विषाणु भी एक होस्ट से दूसरे , दूसरे से तीसरे , तीसरे से चौथे और फिर इस तरह से गुज़रते हुए अपनी आनुवंशिक ( जेनेटिक ) सामग्री में बदलाव करता जाता है। यह एक परस्पर चलता संघर्ष है : मनुष्य और विषाणु के बीच। हम उसे रोक रहे हैं , वह फैलना चाह रहा है। फैलने के लिए उसे हमारी कोशिकीय सामग्री की ज़रूरत है। हमें अपनी कोशिकाओं को यथासम्भव उसकी वृद्धि और विस्तार के लिए देने से बचना है। सामाजिक दूरी बनाकर , हाथ अच्छी तरह धोकर , हाथों से चेहरे-नाक-आँख-मुँह न छूकर हम यही कर रहे हैं।”

“क्या विषाणु बदल सकता है ? यानी इसकी रोग-तीव्रता बढ़ सकती है ?”

“आगे क्या होगा , हम नहीं जानते। वर्तमान में क्या चल रहा है , उसे भी दुनिया-भर के वैज्ञानिक समाज और प्रयोगशालाओं में नित्य समझने में प्रयासरत हैं। ऐसे में भविष्य की अनिश्चितता से डरने की जगह वर्तमान में जितना जानते हैं , उसपर अच्छी तरह सकारात्मक अमल किया जाये। क्या यह सही नहीं होगा ?”

“एक अन्तिम प्रश्न। कुछ ख़बरें मलेरिया-नाशक दवा क्लोरोक्वीन और गठिया-रोगों में इस्तेमाल होने वाली दवा हायड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को इस्तेमाल करने की आ रही हैं। क्या ये दवाएँ इस विषाणु को रोकने में मददगार हैं ?”

“अभी ऐसी कोई सटीक दवा निश्चित तौर पर उपलब्ध नहीं , जिसे विषाणु या उसके रोग को नष्ट करने में कारगर कहा जा सके। विश्व स्वास्थ्य संगठन ऐसी किसी दवा की पुष्टि नहीं करता। शोधों के बाद ही किसी दवा को डॉक्टर की सलाह से लेना चाहिए , अन्यथा उससे हानियाँ भी हो सकती हैं। अपने मन से इन दवाओं को लेना ग़लत और गैरज़रूरी तो है ही , हानिकारक भी हो सकता है। ऐसे में सामाजिक दूरी बनाये रखकर इसकी रोकथाम में योगदान दें। जैसे -जैसे विज्ञान अपने पुष्ट मत रखता जाएगा , वैसे-वैसे कोविड-19 से लड़ने में हम बेहतर सिद्ध होते जाएँगे।”

LEAVE A REPLY