क्या आज भी बरक़रार है पुरुष-आश्रिता का अभिशाप !

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दुनिया चाँद पर पहुँच गई है। पुरुषों के साथ महिलाएं भी चाँद और अंतरिक्ष में अपनी पहुंच दर्ज करा चुकी हैं। मगर समाज में अभी भी कई जगहों पर पुरुष की प्रधानता नजर आती है। भारत में राजा राम मोहन रॉय की स्त्री विमर्श को प्रधानता दिलाने की सोच ने सती प्रथा जैसे अपराध को तो नियंत्रित किया है। इसके बाद स्वतंत्रता के पूर्व और पश्चात महिलाओं के अधिकारों के पैरोकारों की सूची लम्बी होती चली गई है और महिलाओं के अधिकारों को लेकर बहुत से कानूनों का निर्माण किया गया है लेकिन पुरुष आश्रिता के अभिशाप से आज भी स्त्री को बाहर नहीं निकला जा सका है।

स्मार्ट फ़ोन के दौर में जब दुनिया ग्लोबल विलेज में तब्दील हो रही है। इतने उत्तम परिवेश में भी मुस्लिम समाज में महिलाओं के वैवाहिक जीवन की डोर पुरुष आश्रित नजर आती है। बात तीन तलाक की है जो पल भर में किसी भी मुस्लिम विवाहिता को बेसहारा कर देती है। हाल ही में केंद्रीय सरकार ने पर्सनल लॉ के इस कानून में परिवर्तन की पैरवी की है। केंद्रीय सरकार ने तीन तलाक को महिलाओं के अधिकार का हनन मानते हुए इसमें परिवर्तन के लिए कानून बनाने की ओर कदम बढ़ाया है। इस पहल को समर्थन देने और तीन तलाक की व्यवस्था को खत्म करने के लिए एक ऑनलाइन याचिका पर 50 हजार से ज्यादा मुस्लिम महिलाओं ने अपनी सहमति जताते हुए हस्ताक्षर किए हैं।

भारत की कुल आबादी का 14.2 प्रतिशत भाग मुस्लिम आबादी का है। इसमें यदि बात करें तो लगभग साढ़े सात करोड़ महिलाएं हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में मुस्लिम महिलाओं को दिए जाने वाले तलाकों में 80 फीसदी ‘तलाक मौखिक तलाक’ हैं| स्वाभिमान से अपने आप को स्वतंत्र और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का हिस्सा मानने वाली भारत की ये महिलाएं निकाह की डोर में बंधने के बाद पुरुष के रहमों करम तक सीमित नजर आने लगाती हैं। यहां ये एक बड़ा सवाल है कि क्या सिर्फ पुरुष के तीन बार तलाक कह देने मात्र से सम्बंध को खत्म माना जा सकता है। दूसरा सवाल यह है कि क्या महिला को पुरुष बिना किसी कारण के सिर्फ तीन बार तलाक कह कर छोड़ सकता है। साथ ही क्या महिलाओं को सिर्फ कुबूल कहने का हक मात्र है।

तीन तलाक पर विश्व के लगभग 12 इस्लामिक देश विनियमन कर चुके हैं जिसमें पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान भी शामिल है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा तीन तलाक के विनियमन पर कानून बनाने की प्रक्रिया पर विरोध दर्ज कराया गया है और विधि आयोग के समान नागरिक संहिता कानून के प्रस्ताव को शरियत के खिलाफ बताया जा रहा है। इस पर मुस्लिम महिलाओं का यह कहना है कि जब विश्व में बड़े इस्लामिक मुल्क इस पर कानून का विनियमन कर सकते हैं और उसे शरियत के विरुद्ध नहीं पाया गया है तो भारत में भी इस पर कानून बनाया जा सकता है। केंद्रीय सरकार भी कुछ इस तरह ही ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के विरोध का जवाब दे रही है।

वर्तमान में जेंडर जस्टिस भी एक बड़ा मुद्दा है। जोकि वैश्वीकरण के दौर में सामजिक संतुलन का विकास रथ माना जा रहा है। विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर वेबसाइट के जरिए 16 सवालों के माध्यम से लोगों की राय मांगी है। यदि एक बार देश में समान नागरिक संहिता कानून लागू हो जाता है तो तीन तलाक का विनियमन होना तय है। 

सुशोभिता शर्मा

शोध छात्रा, पत्रकारिता एवं जनसंचार

 


4 COMMENTS

  1. धन्यवाद। न्यूज़ डॉन ने जेंडर इक्वालिटी पर अच्छा विचार व्यक्त किया है।

  2. महिलाओं की ‘सुरक्षा, अधिकार और स्वाभिमान’ को तरजीह देने के लिए DON Views कदम सराहनीय है|

  3. विचार को मूर्त रूप दिलाने में मीडिया की सक्रिय भूमिका रहेगी| न्यूज़डॉन.इन भी इसी कड़ी का हिस्सा बन गया है| आर्टिकल बहुत अच्छा लिखा है|

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