जितना ज्यादा हम पढ़े हैं उतना ज्यादा हम बेईमान बने हैं!

दरअसल गांव के लोग जितने खुशहाल दिखते हैं उतने नहीं हैं, जमीनों का मुकदमा, पानी का मसला, खेत-मेढ के केस, रास्ते के केस, मुआवजे के केस, व्याह शादी के झगड़े, दीवार के केस,आपसी मनमुटाव और चुनावी रंजिशों ने समाज को खोखला कर दिया है। गॉव की बदली हुई तस्वीर की पड़ताल की हमारी रिपोर्टर मुस्कान ने, पढिये ये रिपोर्ट

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लखनऊ / गाजीपुर । ये  तस्वीर महज़ वो दो भाइयों के बीच बंटवारे की तस्वीर नहीं है बल्कि बाप -दादा के घर की देहरी को जिस तरह बांटा गया है उससे पहले दिल के बंटवारे की दर्दनाक दास्तान बयान कर रहा है , अब हर गांव हर घर की ये सच्चाई है ये तस्वीर उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में स्थित गाजीपुर जिले के गॉव चोचकपुर की है।

दरअसल गांव के लोग जितने खुशहाल दिखते हैं उतने नहीं हैं, जमीनों का मुकदमा, पानी का मसला, खेत-मेढ के केस, रास्ते के केस, मुआवजे के केस, व्याह शादी के झगड़े, दीवार के केस,आपसी मनमुटाव और चुनावी रंजिशों ने समाज को खोखला कर दिया है। 

अब गांव वो नहीं रहे कि गॉव की भीड़ भरी बस में गांव की लडकी को देखते ही सीट खाली कर देते थे, गॉव के बच्चे गॉव के स्वाभिमान माने जाते थे उनकी गलती पर दो चार थप्पड  किसी बुजुर्ग या ताऊ ने टेक दिए तो इश्यू नहीं बनता था। अब गॉव पूरी तरह बंटे हुए लोग हैं। गांव में अब एक दूसरे के उपलब्धियों का सम्मान करने वाले, प्यार से सिर पर हाथ रखने वाले लोग संभवत अब मिलने मुश्किल हो गये हैं।

हालात इस कदर खराब है कि अगर पडोसी फलां व्यक्ति को वोट देगा तो हम नहीं देंगे। गॉव के लोगों में इतनी नफरत कहां से आई है ये सोचने और चिंतन का विषय है। गांवों में कितने मर्डर होते हैं, कितने झगडे होते हैं और कितने केस अदालतों व संवैधानिक संस्थाओं में लंबित है इसकी कल्पना भी भयावह है। 

गांवों में अब एकल परिवार का चलन बढ़ रहा है एक आध ही संयुक्त परिवार बचे हैं, लस्सी-दूध जगह वहां भी डयू कोका पेप्सी पिलाई जाने लगी है। 1947 म बंटवारा केवल भारत का नहीं हुआ था, आजादी के बाद हमारा समाज भी बंटा है और शायद अब हम भरपाई की सीमाओं से भी अब दूर आ गए हैं। अब तो वक्त ही तय करेगा कि हम और कितना बंटेंगे।

एक दिन यूं ही गॉव के चौपाल में बातों बातों में एक मित्र ने कहा कि जितना हम पढे हैं दरअसल हम उतने ही बेईमान बने हैं। गहराई से सोचें तो ये बात सही लगती है कि पढे लिखे लोग हर चीज को मुनाफे से तोलते हैं और ये बात समाज को अंदर ही अंदर तोड रही है।

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