लखनऊ /दिल्ली । सुपरटेक द्वारा निर्मित नोएडा के दो संयुक्त टाॅवरों का गिराया जाना अपने आप में एतिहासिक घटना है। पहले भी अदालत के आदेशों और सरकारों के अपने हिसाब से कई इमारतें भारत के विभिन्न प्रांतों में गिराई गई हैं लेकिन जो इमारतें कुतुब मीनार से भी ऊंची हों और जिनमें 7000 लोग रह सकते हों, उनको अदालत के आदेश पर गिराया जाना सारे भारत के भ्रष्टाचारियों के लिए एक कड़वा सबक है।
ऐसी गैर-कानूनी इमारतें सैकड़ों-हजारों की संख्या में सारे भारत में खड़ी कर दी गई हैं। नेताओं और अफसरों को रिश्वतों के दम पर ऐसी गैर-कानूनी इमारतें खड़ी करके मध्यमवर्गीय ग्राहकों को अपने जाल में फंसा लिया जाता है। वे अपना पेट काटकर किश्तें भरते हैं, बैंकों से उधार लेकर प्रारंभिक राशि जमा करवाते हैं और बाद में उन्हें बताया जाता है कि जो फ्लेट उनके नाम किया गया है, अभी उसके तैयार होने में काफी वक्त लगेगा। लोगों को निश्चित अवधि के दस-दस साल बाद तक उनके फ्लेट नहीं मिलते हैं।
इतना ही नहीं, नोएडा में बने कई भवन ऐसे हैं, जिनके फ्लेटों में बेहद घटिया सामान लगाया गया है। ये भवन ऐसे हैं कि जिन्हें गिराने की भी जरुरत नहीं है। वे अपने आप ढह जाते हैं, जैसे कि गुड़गांव का एक बहुमंजिला भवन कुछ दिन पहले ढह गया था।
नोएडा के ये संयुक्त टावर सफलतापूर्वक गिरा दिए गए हैं लेकिन भ्रष्टाचार के जिन टाॅवरों के दम पर ये टाॅवर खड़े किए गए हैं, उन टाॅवरों को गिराने का कोई समाचार अभी तक सामने नहीं आया है। जिन नेताओं और अफसरों ने ये गैर-कानूनी निर्माण होने दिए हैं, उनके नामों की सूची उ.प्र. की योगी सरकार द्वारा तुरंत जारी की जानी चाहिए। उन नेताओं और अफसरों को अविलंब दंडित किया जाना चाहिए। उनकी पारिवारिक संपत्तियों को जब्त किया जाना चाहिए। जो नौकरी में हैं, उन्हें बर्खास्त किया जाना चाहिए। जो सेवा-निवृत्त हो गए हैं, उनकी पेंशन बंद की जानी चाहिए।
अदालतों को चाहिए कि उनमें से जो भी दोषी पाए जाएं, उन अधिकारियों को तुरंत जेल भेजा जाए। कुछ नेताओं और अफसरों को चैराहों पर खड़े करके हंटरों से उनकी चमड़ी भी उधेड़ दी जाए ताकि भावी भ्रष्टाचारियों के रोंगटे खड़े हो जाएं। यदि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यदि यह करतब करके दिखा सकें तो उनकी छवि ‘भारत के महानायक’ की बन जाएगी।
इन 30-30 मंजिला भवनों को बनाने की इजाजत देनेवाली ‘नोएडा अथाॅरिटी’ को सर्वोच्च न्यायालय ने ‘भ्रष्ट संगठन’ की उपाधि से विभूषित किया है। यदि केंद्र और उप्र सरकार इस मुद्दे पर चुप्पी मारे रखे तो मैं अपने पत्रकार बंधुओं से आशा करुंगा कि इन गैर-काूननी भवनों के निर्माण-काल में जो भी मुख्यमंत्री, मंत्री और अधिकारी रहे हों, वे उनकी सूची जारी करें और उनके भ्रष्टाचार का भांडा फोड़ करें।
अदालतों में बरसों तक माथाफोड़ी करने की बजाय लोकतंत्र के चौथे स्तंभ याने खबरपालिका को इस समय सक्रिय होने की जरुरत है। ईंट-चूने के गैर-कानूनी भवनों को गिराना तो बहुत सराहनीय है, लेकिन उससे भी ज्यादा जरुरी है- भ्रष्टाचार के भवन को गिराना! किसकी हिम्मत है, जो इसको गिराएगा?