तिवारी, तबरेज़, अंकित और अखलाक़ से इतर वो दुनिया, जहाँ ज़िन्दगी से जंग है!

मिट्टी और दीवाली की महक और सोंधपन सिर्फ कुम्हार के उस दीपक में ही है, जिसे अचरा से ओईंचकर जलाया जाता है। मिट्टी की दीपक का जलना त्याग, समर्पण, शांति और बलिदान का प्रतिक है। 

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क्या आप को नहीं लगता कि चाइनीज झालरों से दीपावली मनाना सरासर बेईमानी है, धोखा है छल है फरेब है! ये धोखा हम किसी और को नहीं बल्कि खुद को दे रहे हैं पूरे होशो हवास में दे रहे हैं और बार बार दे रहे हैं। मिट्टी और दीवाली की महक और सोंधपन सिर्फ कुम्हार के उस दीपक में ही है, जिसे अचरा से ओईंचकर जलाया जाता है। मिट्टी के दीपक का जलना त्याग, समर्पण, शांति और बलिदान का प्रतीक है।

चाइनीज झालर और उस पर विरोध कब से शुरू करना है का मजाक तो मात्र मानसिक दिवालियापन की निशानी है जिसे पढ़कर कोई इतराता नहीं है बल्कि दो-चार शुद्द गालियां देकर आपकी जाहिलियत को और गहरा करता है। 

कमलेश तिवारी, तबरेज़ अंसारी ,मुहम्मद अखलाख और अंकित सक्सेना से इतर भी एक दुनिया है, जहां पेट की आग बुझाने के लिए परिवार के बच्चों को भी अपने सिर पर बोझ रखना पडता है ताकि शाम को भूखा ना सोना पड़े इसके लिए हर रोज़ जिंदगी को मौत से जंग करनी पड़ती है। हमारी महानता किसी का मजाक बनाने में नहीं है, हमारी महानता बड़े -बड़े इमारतों के बगल में भूखे पेट औंधे मुंह सोने वाले मासूम बच्चों को गले लगाने में हैं। यह दीवाली मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम की दीपावली है। यह दीपावली सड़क पर दीया -घंटी लिए काका को निराश ना करने वाली दीवाली है।

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