Pulitzer Prize पर मुबारकवाद दें कि माथा पीट लें!

पुलित्जर पुरस्कारों के संबंध में उसकी रीति नीति का विश्लेषण कर रहे हैं डॉ अरविंद कुमार सिंह, अब यह समय आ गया है कि हम ऐसे पुरस्कार आदि पर किसी प्रकार की ध्यान ही ना दें और उस उसी तरह से इंकार कर दें जैसे उसके कोई कीमत ही नहीं है

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पिछले दिनों कश्मीर में भारतीय सेना और सुरक्षाबलों की तस्वीर को गलत तरीके से पेश करती हुई तस्वीरों पर जम्मू कश्मीर में काम करने वाले कुछ पत्रकारों को फोटोग्राफी के क्षेत्र में पुलित्जर पुरस्कार दिया गया है उन फोटोज में कुछ ऐसे फोटो भी थे जो भारत के सुरक्षा बलों की छवि को गलत तरीके से प्रस्तुत कर रहे हैं , लेकिन बहुत सी ऐसी भी तस्वीरें हैं जो कि आतंकवादियों के कारनामों के कारण से समाज में जो दुख दर्द फैला है, उसको बहुत ही सटीक तरीके से व्यक्त करती हैं किंतु उसके फोटोग्राफर को कोई पुरस्कार नहीं दिया गया है  ।

प्रश्न यह है कि हम उन लोगों से इस प्रकार के सहानुभूति पाने अथवा प्रोत्साहन पाने की उम्मीद ही क्यों करें, जो हमारे देश  के खिलाफ प्रचार प्रसार के लिए ही कार्य करते हैं। वो नहीं चाहते कि भारत की एक सकारात्मक तस्वीर दुनिया के सामने जाये अपने इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्हें जहां कहीं भी मौका मिलता है, वे इस अवसर का भरपूर उपयोग करते हैं। पश्चिमी देशों और अमेरिका में बहुत से ऐसे संगठन हैं जो कि पर्यावरण मानवाधिकार पत्रकारिता और इस प्रकार के ना जाने कितने प्रकार के संगठन बना करके अपना धंधा कर रहे हैं और अपने निहित स्वार्थों को पूरा करने के लिए वह इसका उपयोग करते हैंl चाहे वह भारत सरकार के संबंध में हो अथवा भारतीय पुलिस के संदर्भ में हो या फिर भारत के किसी भी अन्य क्षेत्र में काम कर रहे इकाइयों के संदर्भ में l

यह तो बहुत बड़ी गनीमत है की वर्तमान में मोदी सरकार इस प्रकार के सर्टिफिकेट देने वाले विभिन्न संगठनों की कोई परवाह ही नहीं करती , अन्यथा इस तरह के संगठनों का क्रियाकलाप कई दशक पहले से भारत विरोधी एजेंडे पर ही चल रहा है और यदि पीछे का शोध किया जाए तो 70 के दशक से बीबीसी, वॉइस आफ अमेरिका एवं इस प्रकार के अन्य जनमाध्यम भारत के खिलाफ विभिन्न प्रकार के क्रियाकलापों में बहुत ही जबरदस्त तरीके से दुष्प्रचार करने का काम ही किए हैं और यह दुष्प्रचार वे सत्य खबर देने के नाम पर करते हैं l

उस समय भले ही लोग इस बात को पहचान न सके, किंतु यदि आज उस दौर के कंटेंट को विश्लेषण किया जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि उन्होंने भारतीय समाज के उन खबरों को चुन चुन कर के सामने रखा जिससे कि सरकार की छवि दुनिया में खराब हो और सरकार को किसी न किसी प्रकार से विरोध का सामना करना पड़े। आज हम जब विकास के रास्ते में बहुत आगे बढ़ चुके हैं तो हमारे अंदर इतना आत्मविश्वास होना चाहिए कि इस प्रकार के संगठनों द्वारा दिए जाने वाले किसी भी सर्टिफिकेट की कोई परवाह न करेंl

वैसे भी कोई भी संगठन जिस देश में होता है, उस देश के नीति रणनीति को ध्यान में रखकर के ही अपने सारे क्रियाकलाप और एजेंडा तय करता है यह बात दुनिया के हर देश के संदर्भ में लागू होता हैl यह बात यह अलग बात है कि पश्चिम देशों में इस संगठन का प्रसार दुनिया भर में हुआ है lइसलिए उसकी चर्चा दुनियाभर में होती हैl लेकिन अब यह समय आ गया है कि हम ऐसे पुरस्कार आदि पर किसी प्रकार की ध्यान ही ना दें और उस उसी तरह से इंकार कर दें जैसे उसके कोई कीमत ही नहीं है l क्या ही अच्छा हो कि भारत में भी इस तरह के पुरस्कार बनाए जाए जो कि भारतीय नीति रणनीति को ध्यान में रखकर के दुनियाभर में पुरस्कार दे भले ही कोई निंदा करें अथवा प्रशंसा l लेकिन कम से कम हम अपने स्तर से तो स्वयं को प्रचारित करते रहेंगेl

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