लखनऊ / जालौन। पारस पत्थर यानि कि एक ऐसा पत्थर जिसे लोहे से छुला दो तो वह लोहे को सोना बना देता है। मौजूदा दौर का एक ऐसे ही पारस पत्थर को हम आपसे मिलवा रहे है जो यथा नाम तथा गुण की कहावत को शत प्रतिशत सच साबित कर रहा है और प्रतिभाओं के सम्पर्क में आ कागजों में दफन प्रतिभाओं को जिन्दा करने को प्रयासरत है और सिर्फ इतना ही नहीं स्वार्थ की इस दुनिया में घुट-घुट कर जी रही इंसानियत को भी एक नई संजीवनी प्रदान करने का कार्य कर रहा है।
लग्भग आधा सैकड़ा मंचों पर सम्मान पा चुके है। बुन्देलखण्ड के जनपद जालौन की नगर पंचायत नदीगॉव में जन्में पारसमणि अग्रवाल, जो वर्तमान में सूबे की राजधानी से मीडिया स्टडीज में परास्नातक कर रहे है। छोटी सी उम्र में ही एक कामयाब मंजिल को छू लेने वाले पारस प्रतिभाओं के हित के लिए निरन्तर अग्रसर रहते है। लखनऊ आने से पहले जालौन की तहसील कोंच में स्नातक के दौरान उन्होनें छात्र राजनीति की परिभाषा को बदलते हुए न सिर्फ अधिकतर छात्र/छात्राओं के दिल पर गहरी छाप छोोड़ी बल्कि विद्यार्थिओं के अभिभावकों को भी अपनी ओर आकर्षित करने का काम कर चुके हैं।
इसके साथ ही विभिन्न संगठनों एवं सस्थाओं की गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी के साथ-साथ इप्टा से जुड़े और निःशुल्क बाल एवं युवा रंगकर्मी नाट्य कार्यशाला में भी प्रमुख भूमिका निभाई है। बाल्यकाल से ही पारस लेखन में अपना हुनर रखते है जिसे निखारने एवं मुकम्मल मंजिल तक ले जाने के लिए एक मुकम्मल मंच एवं उचित मार्गदर्शन का आभाव सदैव सताता रहा।
मुख्यतः यही कारण है कि एक उचित मुकाम पर पहुचने के बाद पारस संसाधनों एवं मार्गदर्शन के अभाव में किताबों में दफन प्रतिभाओं को पुर्नजीवित कर एक कामयाब मंजिल तक पहुचाने की कोशिश में लगे है। इन्होंने अपनी भले ही अभी तक एक भी डिजिटल किताब न बनाई हो लेकिन अन्य प्रतिभाओं की अभिव्यक्ति से ओज-प्रोत लगभग 2 दर्जन डिजिटल पुस्तकों को प्रकाशित कर चुके है।
फेसबुक के माध्यम से पारस से जुड़ने वाली अर्पिता निरंजन पारस का आभार व्यक्त करते हुए अपने ब्लाग पर 6 मई 2017 को लिखती है कि भले ही दुनिया को स्वार्थ की बेरहम जंजीरों ने क्यूं न जकड़ लिया हो? भले ही रिश्ते, ईमान, सम्मान, स्वाभिमान पर अर्थ का वचर्स्व क्यूं न हो गया हो ? पर वक्त वक्त पर अनूभूति हो ही जाती है कि इंसानियत अभी दफन नहीं हुई है। मेरा बचपन से एक सपना था कि हम एक लेखिका बने मगर इस बारे में मुझे कुछ पता नहीं था। हम अपने शब्दों को अपनी डायरी में कैद करके रखे हुए थे । मेरा हुनर मेरे तक ही सीमित था। हम अपनी अभिव्यक्ति को दूसरे तक पहुचा नहीं पा रहे थे।
फिर एक दिन फेसबुक के जरिए मेरी बात पारस सर से हुई जो एक अच्छे इंसान के साथ बेहतर लेखक है। इनकी लिखावट इनका हुनर बहुत जगह प्रसिद्ध है। जब हमने इन्हें अपने हुनर के बारे में बताया तो इन्होनें मेरी अभिव्यक्ति पढ़ी, मेरी कहानी पढ़ी तो इन्हें अच्छी लगी। मेरी जिंदगी में एक नई किरण लेके आए। इनका स्वभाव बहुत ही अच्छा है। ये मेरे गुरू होने के साथ-साथ अच्छे मित्र भी है। इन्होंने मेरे हुनर को दूसरों तक पहुचाया, हमें एक उम्मीद दी। हम बहुत बहुत आभार प्रकट करते है सर का जिन्होनें हमें एक लेखिका के काबिल समझा ऐसे लोग दुनिया में बहुत कम होते है।
धन्यवाद सर, आपने मेरे सपने को पूरा करनेमें मेरी बहुत मद्द की। मेरी जिंदगी में आपकी बेहतर जगह है। जब जब मेरे सपनों की बात होगी तब तब आपका जिक्र जरूर होगा।
वहीं एक ओर विद्यार्थी रोली मिश्रा लिखती है कि पारसमणि भाई मेरे जीवन में एक प्रेरणा बनके आए हैं पहले मैं केवल आम लेखिका थी। परन्तु जब मेरे एक अध्यापक के जरिए मेरी मुलाकात पारस भाई से हुई। ये हमेशा बिना किसी स्वार्थ के हमारी मदद के लिए अग्रसर हुए और मेरी बहुत सारी रचनाओं को प्रकाशित किया एवं अभी भी मेरे सम्पर्क में है तथा समाज के कई लोगों की निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे है। मेरी ईश्वर से यही कामना है कि पारस भाई जीवन में बहुत तरक्की करें एवं मेरे जैसे कई लोगों का भविष्य बनाने में सहायता करते रहे।
जब अपनी जॉब अपने जूनियर को दे दी
युवाओं को हमेशा प्रोत्साहित कर आगे बढ़ाने की पारस की मंशा इस बात से साफ दिखती है कि लोकसभा चुनाव 2019 के एक प्रत्याशी के चुनावी मैनेंजमैंट का काम पारस के एक सीनियर को मिला था जिसमें पारस भी जॉव कर मीडिया रिलेशन का जिम्मा संभाल रहे थे लेकिन उस ओर अपने सुपर जूनियर की दिलचस्पी को देखते हुए उन्होंने अपनी जॉव अपने सीनियरों को मना उसे थमा दी और खुद हाल फिलहाल में बेरोजगार हो गए। चूकिं घर से दूर राजधानी में पारस आई. आई. एस. ई. कल्याणपुर में अध्ययनरत है और यही हॉस्टल में रहता है। संस्थान का लगभग हर व्यक्ति पारस के व्यवहार से प्रसन्न है ।
पारस सर को ‘यूज एंड थ्रो’ करते हैं लोग
पारस के बाारे में कॉलेज के सीनियर और जूनियर स्टूूूडेंट्स की राय थोड़ी जुदा जुदा है। कालेज में पहले दिन मिलने वाली बीएससी की छात्रा मंजू गुप्ता से भी बात हुई तो उन्होंने बताया कि कॉलेज में पहले दिन पारस सर की मुलाकात हमसे हुई वह इतने सादगी और सरल स्वभाव है कि ये दो दिन बाद जाकर पता चला जिन्हें हम क्लासमेट समझ रहे थे वो सीनियर है। पारस सर हमेशा सक्रिय रहते है सबकी सहायता के लिए निरन्तर प्रयास करते रहते है। उनके स्वभाव और भोलेपन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लोग उन्हें यूज कर अपना काम निकाल ले जाते है और उन्हें पता तक नहीं चलता।
वहीं एक सीनियर स्टूडेंट अनुप्रिया अग्रहरि ने बताया कि पारस हमेशा से एक मेहनती लड़का रहा है। सीनियर्स की रिस्पेक्ट करना जूनियर से अच्छे से व्यवहार करना हमेशा से ही उसकी आदत में शुमार रहा है। अपनी परेशानियों को कैसे हैडिल करना उसे बखूवी आता है। उम्मीद है वो आगे भी ऐसे ही रहेगा और खुद एक कामयाब इंसान के रूप में उभरेगा।