24 जनवरी को बिहार के फकीर मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की जयंती होती है। जनता के बीच लोकप्रिय इतने कि 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे। सादगी ऐसी कि जब वो स्वर्ग सिधारे, तो परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था। कर्पूरी ठाकुर का जन्म ब्रिटिश भारत में समस्तीपुर के एक गांव पितौंझिया में हुआ था जिसे अब कर्पूरीग्राम कहा जाता है, वो जाति से नाई थे। उनके पिता का नाम गोकुल ठाकुर तथा माता का नाम रामदुलारी देवी था। इनके पिता गांव के सीमांत किसान थे तथा अपने पारंपरिक पेशा नाई का काम करते थे।
1952 की पहली विधानसभा के बाद वो लगातार चुनाव जीतते रहे लोग बताते हैं कि जब वो मुख्यमंत्री बने तो उनके क्षेत्र के कुछ यादव जमींदारों ने उनके पिता को सेवा के लिये बुलाया। जब वे बीमार होने के नाते नहीं पहुंच सके तो जमींदार यादव ने अपने लठैतों से मारपीट कर लाने का आदेश दिया। जिसकी सूचना किसी प्रकार जिला प्रशाशन को हो गयी तो तुरन्त जिला प्रशासन कर्पूरी जी के घर पहुंच गया और उधर लठैत पहुंचे ही थे कि लठैतो को बंदी बना लिया गया किन्तु कर्पूरी ठाकुर ने सभी लठैतों को जिला प्रशाशन से बिना शर्त छोडने का आग्रह किया तो अधिकारियों ने कहा कि इन लोगों ने मुख्यमंत्री के पिता को प्रताडित करने का कार्य किया है इन्हे हम किसी शर्त पर नही छोड़ सकते।
कर्पूरी ठाकुर ने कहा इस प्रकार के पता नही कितने असहाय लाचार एवं शोषित लोग प्रतिदिन लाठियां खाकर दम तोडते है कहां तक, किस किस को बचाओगे। क्या सभी मुख्यमंत्री के मां बाप हैं? इनको इसलिये दंडित किया जा रहा है कि इन्होने मुख्यमंत्री के पिता को उत्पीड़ित किया है सामान्य जनता को कौन बचायेगा। जाओ प्रदेश के कोने कोने मे शोषण उत्पीड़न के खिलाफ अभियान चलाओ और सुनिश्चित करो कि एक भी परिवार सामंतों के जुल्मो सितम का शिकार न होने पाये।
आज के बेईमान बेज़मीर नेताओं को देख कर ये विश्वास नहीं होता कि कभी कर्पूरी जैसे नेता भी हुए होंगे उनकी ईमानदारी के कई किस्से आज भी बिहार में आपको सुनने को मिलते हैं। उनसे जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो उनके रिश्ते में उनके बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गए और कहीं सिफारिश से नौकरी लगवाने के लिए कहा। उनकी बात सुनकर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गए। उसके बाद अपनी जेब से पचास रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा जाइए, उस्तरा आदि ख़रीद लीजिए और अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए।
उनके बेटे रामनाथ ठाकुर बताते हैं कि बिहार के उपमुख्यमंत्री एवं मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने मुझे चिट्ठी लिखी थी चिट्ठी में सिर्फ तीन ही बातें लिखी थीं तुम इससे प्रभावित नहीं होना कि तुम्हारे पिता क्या हैं । कोई लोभ लालच देगा तो उस लोभ में मत आना इससे मेरी बदनामी होगी।
उनकी सादगी और ईमानदारी के कई किस्से मशहूर हैं कर्पूरी ठाकुर ऐसे मुख्यमंत्री थे जो रिक्शे से चलते थे। ठाकुर साहब पहली बार विधायक बने तो उन्हीं दिनों उनका ऑस्ट्रिया जाने वाले एक प्रतिनिधिमंडल में चयन हुआ था। उनके पास कोट नहीं था, तो एक दोस्त से मांगा, वह भी फटा हुआ था। वहां यूगोस्लाविया के शासक मार्शल टीटो ने देखा कि कर्पूरी जी का कोट फटा हुआ है, तो उन्हें नया कोट गिफ्ट किया।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा जी ने अपने संस्मरण में लिखा है कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी को देखते हुए देवीलाल ने पटना में अपने एक हरियाणवी मित्र से कहा था, कर्पूरी जी कभी आपसे पांच-दस हज़ार रुपये मांगें तो आप उन्हें दे देना वह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा। बाद में देवीलाल ने अपने मित्र से कई बार पूछा- भई कर्पूरीजी ने कुछ मांगा? हर बार मित्र का जवाब होता नहीं साहब, वे तो कुछ मांगते ही नहीं।
17 फरवरी 1988 को जननायक कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया उनके निधन के बाद यूपी के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा उनके गांव गए थे। लोग बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर की पुश्तैनी झोपड़ी देख कर बहुगुणा रो पड़े थे।
भारत के महान सपूत को न्यूज़ डॉन की विनम्र श्रद्धांजलि।