लखनऊ / दिल्ली । सौरभ कृपाल को दिल्ली हाईकोर्ट का जज बनाने की सिफारिश की गई हैसमलैंगिकता को अवैध बताने वाली धारा 377 खत्म करवाने का केस लड़ा था देश को जल्द पहला गे (समलैंगिक) जज मिल सकता है। सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने सीनियर वकील सौरभ कृपाल (49) को दिल्ली हाईकोर्ट का जज बनाने की सिफारिश की है।
चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम की 11 नवंबर की बैठक में यह सिफारिश की गई है। खास बात ये है कि केंद्र की तरफ से चार बार कृपाल के नाम को लेकर आपत्ति जताने के बावजूद कॉलेजियिम ने अपनी सिफारिश दी है। हालांकि, ये साफ नहीं है कि कृपाल की नियुक्ति होती है तो कब तक हो पाएगी, क्योंकि केंद्र सरकार कॉलेजियम को रिव्यू के लिए भी कह सकती है।
देश में यह पहली बार हुआ है जब खुले तौर पर खुद को समलैंगिक स्वीकार करने वाले न्यायिक क्षेत्र के व्यक्ति को जज बनाने की सुप्रीम कोर्ट ने सिफारिश की है। अक्टूबर 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट कॉलेजियम ने सर्वसम्मति से जज के लिए उनके नाम की सिफारिश की थी। इसके बाद से सुप्रीम कोर्ट चार बार उनकी सिफारिश का फैसला टाल चुका था। आखिरी बार अगस्त 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सिफारिश का फैसला टाल दिया था।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने जब केंद्र से कृपाल के बैकग्राउंड के बारे में इनपुट मांगा था तो सरकार ने इंटेलीजेंस ब्यूरो (IB) की रिपोर्ट का हवाला दिया था। IB ने कृपाल के कुछ फेसबुक पोस्ट का हवाला दिया, जिनमें उनके विदेशी पार्टनर भी शामिल थे।
कृपाल के विदेशी पार्टनर को लेकर केंद्र को आपत्ति है इस साल मार्च में तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने केंद्र से कृपाल को हाईकोर्ट का जज बनाने के बारे में रुख जानना चाहा था, लेकिन केंद्र ने एक बार फिर इस पर आपत्ति जाहिर की थी। केंद्र ने कृपाल के विदेशी पुरुष साथी को लेकर चिंता जताई थी।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कृपाल के पार्टनर ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट निकोलस जर्मेन बाकमैन हैं और स्विट्जरलैंड के रहने वाले हैं। इसलिए केंद्र को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं हैं। पिछले साल एक इंटरव्यू में कृपाल ने कहा था कि शायद उनके सेक्शुअल ओरिएंटेशन की वजह से ही उन्हें जज बनाने की सिफारिश का फैसला टाला गया है। निकोलस जर्मेन बाकमैन 20 साल से कृपाल के पार्टनर हैं।
सौरभ कृपाल सीनियर वकील और पूर्व चीफ जस्टिस बीएन कृपाल के बेटे हैं। सौरभ पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के साथ बतौर जूनियर काम कर चुके हैं, वे कमर्शियल लॉ के एक्सपर्ट भी हैं। सौरभ कृपाल ने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन की है, वहीं लॉ की डिग्री ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पूरी की है। वहीं कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से लॉ में मास्टर्स डिग्री की पढ़ाई की है।
आपको बता दें वे सुप्रीम कोर्ट में करीब 20 साल प्रैक्टिस कर चुके हैं। साथ ही यूनाइटेड नेशंस के साथ जेनेवा में भी काम कर चुके हैं। वे समलैंगिक हैं और LGBTQ के अधिकारों के लिए मुखर रहे हैं। उन्होंने ‘सेक्स एंड द सुप्रीम कोर्ट’ किताब को एडिट भी किया है।
धारा 377 खत्म करवाने का केस लड़कर चर्चा में आए थेसुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2018 में समलैंगिकता को अवैध बताने वाली IPC की धारा 377 पर अहम फैसला दिया था। कोर्ट ने कहा था कि समलैंगिक संबंध अपराध नहीं हैं। इसके साथ ही अदालत ने सहमति से समलैंगिक यौन संबंध बनाने को अपराध के दायरे से बाहर कर धारा 377 को रद्द कर दिया था। इस मामले में सौरभ कृपाल ने पिटीशनर की तरफ से पैरवी की थी
समलैंगिकता का मतलब होता है किसी भी व्यक्ति का समान लिंग के व्यक्ति के प्रति यौन आकर्षण। साधारण भाषा में किसी पुरुष का पुरुष के प्रति या महिला का महिला के प्रति आकर्षण। ऐसे लोगों को अंग्रेजी में ‘गे’ या ‘लेस्बियन’ कहा जाता है।
कॉलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के अलावा चार सीनियर मोस्ट जजों का पैनल होता है। यह कॉलेजियम ही सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों के अप्वाइंटमेंट और ट्रांसफर की सिफारिशें करता है। ये सिफारिश मंजूरी के लिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजी जाती हैं। इसके बाद अप्वाइंटमेंट कर दिया जाता है।
केंद्र सरकार रिव्यू के लिए भी कह सकती है कॉलेजियम की तरफ से भेजे गए नामों पर केंद्र फिर से विचार करने के लिए भी कह सकता है, लेकिन अगर कॉलेजियम फिर से अपनी बात दोहराए तो केंद्र इनकार नहीं कर सकता। हालांकि, नियुक्ति में देरी की जा सकती है।
अमेरिका, ब्रिटेन में भी समलैंगिक जज हैं रॉबिन्सन को इसी महीने की 3 तारीख को अमेरिका के फेडरल सर्किट कोर्ट की जज नियुक्त किया गया है। वे फेडरल अपील कोर्ट की पहली लेस्बियन महिला जज हैं। ईथरटन ने सितंबर 2008 लॉर्ड जस्टिस ऑफ अपील की शपथ ली थी। वे ब्रिटेन के पहले घोषित समलैंगिक लॉर्ड जस्टिस ऑफ अपील हैं।