इस्लामी रिसर्च फाउंडेशन के संस्थापक और इस्लामी उपदेशक डॉ. ज़ाकिर नाइक के समर्थक ये कह सकते हैं कि बांग्लादेश की राजधानी ढाका में ईद से पहले हुए धमाकों में नाइक को आतंकवाद से जोड़ने की भारतीय मीडिया के एक हिस्से में कोशिश की गई है लेकिन उनके समर्थक इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ सकते कि ढाका बम धमाकों में शामिल एक आतंकवादी ने उन्हें अपना वैचारिक प्रेरक बताया था जिसके आधार पर ज़ाकिर नाइक को मीडिया ने निशाने पर लिया था।
जब ये खबर बांग्लादेश के अखबार डेली स्टार में छपी थी उसी का संदर्भ लेते हुए भारतीय मीडिया के एक हिस्से में उन्हें आतंकवाद का समर्थन करने वाला बताया गया तब तक तो ज़ाकिर नाइक ने खामोशी की चादर ओढ रखी थी। जब मामले ने तूल पकड़ लिया और देश की सरकार ने इस खबर का संज्ञान लिया तो नाइक ने बांग्लादेश सरकार से उस अखबार के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर की तब वहाँ के अखबार डेली स्टार ने अपनी गलती के लिए माफी मांगी मगर तब तक काफी देर हो चुकी थी और नाइक जांच एजेंसियों के शिकंजे में आ गए थे। वैसे भी उन्हें अपनी गुस्ताख़ ज़ुबान की जुर्रत का जुर्माना तो भरना ही था। अक्सर उन्हें बेतुके बोल बोलते सुना गया। पहले तो उन्होंने पैगम्बर मुहम्मद साहब के नवासे हुसैन के क़ातिल यज़ीद की शान में कसीदे गढ़े और हद तो तब हो गई जब उन्होंने कहा ‘ हर मुसलमान को आतंकी होना चाहिए’।
ऐसे ही संदिग्ध बयानों और संदिग्ध विदेशी फंडिंग का संज्ञान लेते हुए भारत सरकार ने उनकी संस्था इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन पर पांच साल के लिए पाबंदी लगा दी है और अब उनके खिलाफ सुबूतों को जुटाने में जांच एजेंसियां लगी हुई हैं। इसी सिलसिले में मुम्बई स्थित नाइक के ठिकानों पर मुम्बई पुलिस की मौजूदगी में राष्ट्रीय जांच एजेंसी एन आई ए की छापेमारी की गयी है।
छापेमारी में जांच एजेंसी ने नकदी और दस्तावेज बरामद करने का दावा किया है। ये सुबूत अदालत में क्या गुल खिलायेंगें ये तो वक्त बतायेगा लेकिन बड़ा सवाल ये, क्या ऐसे समय में जब ज़ाकिर नाइक जांच एजेंसियों के राडार पर हैं उन्हें देश में रह कर अपनी बेगुनाही का सुबूत नहीं देना चाहिए? आखिर ऐसे वक्त में वो देश के बाहर क्यों ?
अब्राहम मिएराज
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