हिंदी पत्रकारिता दिवस : बिन बैनर बिन आईडी कर सकते हैं पत्रकारिता!

न्यूज़ डॉन, इंडिपेंडस वॉयस की ले-देकर आखिरी संभावना है। जो लोग पत्रकारिता को बदलना चाहते हैं कि उन्हें याद रखना होगा कि सत्य हमारी इच्छा या अनिच्छा से परे होता है और तथ्य से पवित्र कोई और चीज़ पत्रकारिता में नहीं होती है।

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30 मई है। सोशल मीडिया ने याद दिलाया कि आज हिंदी पत्रकारिता दिवस है। निराशा के माहौल में और ज्यादा निराशाजनक बातें नहीं करना चाहता। इसलिए सकारात्मक बातों से शुरूआत करते हैं।

इंटरनेट की वजह से स्वतंत्र पत्रकारिता की जो संभावना इस वक्त है, वह पहले कभी नहीं थी। बिना किसी संस्थान के ठप्पे के बिना, बिना अप्वाइंटमेंट लेटर और आई कार्ड के आप समाज के लिए उपयोगी पत्रकारिता कर सकते हैं। अगर आई कार्ड और पक्की नौकरी हो तो अच्छी पत्रकारिता कर पाएंगे, इस बात की संभावना अब नहीं के बराबर बची हैं।

तथ्यपरक ढंग से अपने गाँव और कस्बों के टूटे स्कूल और बदहाल अस्पताल की कहानियां लाने वाले सभी लोगों को पत्रकारिता दिवस की शुभकामनाएं। जिनके लिए गम-ए-रोजगार है, उनके बारे में क्या कहूं? सिवाय इसके की मेरी हमदर्दी उनके साथ है।

मैंने पत्रकारिता का वह दौर भी देखा है कि जब इंजीनियरिंग और एमबीए डिग्री वाले नौजवान अपने दिल की आवाज़ सुनकर हिंदी पत्रकारिता में आ रहे थे। फिर उन्हें निराश होकर वापस दूसरे काम धंधों की तरफ मुड़ते हुए भी देखा है।

इस सच्चाई से कौन इनकार कर सकता है कि हिंदी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हमारे समय का सबसे बड़ा खलनायक है। इसने परंपरागत प्रिंट मीडिया को भी प्रदूषित किया है जहाँ 15-20 साल पहले वैसी गंदगी नहीं थी, जैसी अब है।

डिजिटल स्पेस में सबसे खराब स्थिति हैं, जहां लाइक और हिट के चक्कर में खबरें मैन्युफैक्चर की जा रही हैं। कई बड़े मीडिया संस्थानों के वेबसाइट को हमने अफवाह फैलाने की मुहिम को व्यवस्थित तरीके से चलाते देखा है।

बावजूद इसके कि राजनेता–मालिक-संपादक गिरोहबंदी ने बहुत से मीडिया संस्थानों को एक तरह से क्रिमिनल सिंडेकेट में बदल लिया है और इस परिस्थिति का बदलना फिलहाल नामुमकिन नज़र आ रहा है फिर भी राजनेताओं के शुभेचछा की जरूरत तो मीडिया को है ही। 

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हिंदी पत्रकारिता दिवस पर बधाई दी

न्यूज डॉन, इंडिपेंडस वॉयस की ले-देकर आना है। जो लोग पत्रकारिता को बदलना चाहते हैं कि उन्हें याद रखना होगा कि सत्य हमारी इच्छा या अनिच्छा से परे होता है और तथ्य से पवित्र कोई और चीज़ पत्रकारिता में नहीं होती है।

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