Film Review : सांड की आंख

कुल मिला कर फिल्म अच्छी है। जिसमें तापसी और भूमि का बेजोड़ अभिनय से अच्छी पटकथा, सामजिक सच्चाइयों और रोजमर्रा की ज़िन्दगी की परेशानियों से निचोड़ा हुआ हुमूर इस बात के मायने बताएगा कि 'ज़िन्दगी करीब से चाहे दुखद नाट्य है, लेकिन दूर से एक हास्य। ' चार्ली चैपलिन के यह कथन भारत की नारी की आम ज़िन्दगी का निष्कर्ष है।

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यह फिल्म भारत की सबसे उम्रदराज शार्पशूटर्स चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर की बायॉग्रफी है जो दर्शकों को एक अच्छा और प्रेरक संदेश देती है। फिल्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण परिवेश की है तो आपको फिल्म में गांव का माहौल और सामाजिक संरचना भी देखने को मिलेगी।

गांव की पितृसत्तातमक संरचना और उसे झेलती महिलाओं की परेशानियां भी देखने को मिलेंगी। तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर स्टारर फिल्म सांड की आंख हरियाणा की शूटर दादियों की जिंदगी पर आधारित है। फिल्म देखें तो ऐसा लगता है कि इस का निशाना एकदम सही जगह जाकर लगा है।

क्यों देखें-नारी सशक्तिकरण, मोटिवेशनल और ग्रामीण परिवेश की फिल्में पसंद हों तो पूरे परिवार के साथ इस फिल्म को देख सकते हैं। दरअसल, डायरेक्टर तुषार हीरानंदानी ने फिल्म के शुरू से ही दर्शकों को गांव के समाज की संरचना ठीक से समझाई है।

एक सीन में भूमि नई-नई ब्याह कर आईं तापसी को खास रंग का घूंघट घर में भी पहनने को कहती हैं ताकि घर के मर्द औरतों के बीच में कन्फ्यूज न हों। शूटर दादियों के तौर पर तापसी और भूमि अच्छी लगी हैं जो अपनी नातिनों और पोतियों के लिए कुछ भी कर सकती हैं।

फिल्ममेकर प्रकाश झा ने फिल्म में विलन का किरदार निभाया है और इस किरदार में वह जमे भी हैं। फिल्म के गाने ‘वूमनिया’ और ‘उड़ता तीतर’ पहले से ही पॉप्युलर है और अच्छे बन पड़े हैं। सबसे ज्यादा आपको तापसी और भूमि का प्रोस्थेटिक मेकअप अखर सकता है।

क्यों न देखें –फिल्म का फर्स्ट हाफ थोड़ा स्लो है। लेकिन सेकंड हाफ दर्शकों को अच्छे से बांधे रखता है। साथ ही, फिल्म में डायलॉग्स वैसे तो काफ़ी चुभने वाले है पर उनकी और तीखा और मार्मिक बनाया जा सकता था। फिल्म के गाने बेहतरीन तरीके से फिल्माए गए हैं लेकिन इनसे भी बेहतर गानों का चयन शायद मुमकिन था।

कुल मिला कर फिल्म अच्छी है। जिसमें तापसी और भूमि का बेजोड़ अभिनय से अच्छी पटकथा, सामजिक सच्चाइयों और रोजमर्रा की ज़िन्दगी की परेशानियों से निचोड़ा हुआ हुमूर इस बात के मायने बताएगा कि ‘ज़िन्दगी करीब से चाहे दुखद नाट्य है, लेकिन दूर से एक हास्य। ‘ चार्ली चैपलिन के यह कथन भारत की नारी की आम ज़िन्दगी का निष्कर्ष है।

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