भूखी गर्भवती हथिनी को इंसानों ने खिलाया पटाखा बम,बारुद की तपिश नहीं बर्दाश्त कर सकी तो तीन दिन तालाब में खड़े खड़े हथिनी ने तोड़ा दम

प्रकृति को विनाशकारी और रौद्र रुप दिखाने के लिए मनुष्यों ने ही विवश किया है। यह प्रलयकारी आपदा इंसान को इंसानियत का पाठ पढ़ाने के लिए ही है ताकि इंसान पुनः अपनी रचनाधर्मिता, और मनुष्यता को अपने चक्षुओं से देख सके एवं मनुष्यता का संदेश का वाहक बन सकें

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वर्तमान दौर में जब पूरा विश्व वैश्विक महामारी कोविड़-19 कोरोना वायरस से पीड़ित है, कोरोना ने जहां एक ओर समग्र विश्व को आंतरिक गृह युद्ध में झोक दिया है। पूरा विश्व इस महामारी से कराह रहा है, सड़कों पर लाशों के ढ़ेर दिखाई दे रहे है, वही इंसान ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कोरोना वायरस जैसी बीमारी की ही इंसान को अवश्यकता है। क्योंकि जिस तरह से मनुष्यों‌ ने अपने निजी स्वार्थ के लिए प्रकृति का दोहन किया है। मासूम निःसक्त और असहाय मासूम जानवरों का कत्लेआम किया है, अपनी व्यक्तिगत रचनात्मकता को छोड़कर पूरे पेट को कब्रिस्तान बना दिया है, इसलिए यह तो एक दिन होना ही था। 

हैवानियत का ताजा मामला देश के सबसे अधिक पढ़े-लिखे राज्य केरल के मलाप्पुरम इलाके के एक गाँव में — एक हथिनी भोजन की तलाश में आ गई। गाँव के कुछ लोगों ने उसे बड़े प्यार से अनानास खाने को दिया। हथिनी ने अपनी सूंड में पकड़ अनानास को मुँह में रखा ही था कि उसमें विस्फोट हो गया।

गाँव वालों ने अनानास में आतिशबाज़ी वाला बम रख हथिनी को दिया था। हथिनी की जीभ और मुँह बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए। वह दर्द से तड़पती हुई इधर-उधर भागने लगी… लेकिन उसने इतने दर्द में भी किसी इंसान या घर को नुक्सान नहीं पहुँचाया।

भागते-भागते जब हथिनी को दर्द से छुटकारा नहीं मिला तो आखिर में वह जाकर एक नदी में खड़ी हो गई… उसने अपना मुँह पानी में डुबो लिया (शायद इसलिए ताकि मक्खियाँ उसके ज़ख़्मों पर न बैठें)… इसी तरह पानी में खड़े-खड़े और दर्द सहते हथिनी की मृत्यु हो गई।

वन अधिकारियों ने हथिनी के शरीर को पानी से निकाला और उसके अंतिम संस्कार के लिए जंगल में ले गए… वहाँ हथिनी के शरीर को जला दिया गया। पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर ने बस इतना कहा, “वह अकेली नहीं थी” वह हथिनी गर्भवती थी

प्रकृति को विनाशकारी और रौद्र रुप दिखाने के लिए मनुष्यों ने ही विवश किया है। यह प्रलयकारी आपदा इंसान को इंसानियत का पाठ पढ़ाने के लिए ही है ताकि इंसान पुनः अपनी रचनाधर्मिता, और मनुष्यता को अपने चक्षुओं से देख सके एवं मनुष्यता का संदेश का वाहक बन सकें। किन्तु इंसान जितना स्वार्थी और विधर्मी जन्तु मैंने नहीं देखा, जन्तु इसलिए कि निरीह जन्तुओं से भी बद्तर इंसान है। जिस स्वार्थ सिद्धी ने कोरोना जैसे भयावाह महामारी को जन्म दिया है, उसी स्वार्थ सिद्धी के लिए मनुष्य, आज़ अपनी मनुष्यता को त्यागकर विधर्मी बन गया है। यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं जब पूरा विश्व इस महामारी की चपेट में है, इंसानी सभ्यता खतरें में पड़ गयी है, इस समय पूरे विश्व का एकमात्र लक्ष्य इस महामारी से निपटना ही नहीं वरन् मानव सभ्यता को बचाना भी है।

ऐसे वक्त में भी इंसान अपनी वीभत्सता से बाज नहीं आ रहा है, यह वक्त एक दूसरे का साथ देना का है, अपनी स्वार्थ सिद्धी को छोड़कर अपनी सरकारों के साथ अपने राष्ट्र के साथ कंधें से कंधा मिलाकर चलने का है। ऐसे समय में भी इंसान हैवानियत पर उतर आया है, जब्कि उसको भी पता है कि यह महामारी किसी का जाति, धर्म देखकर नहीं आती है, न ही किसी से पूछकर आती है। क्या? लेकर आये थे क्या? लेकर जाओगे, फिर भी इंसान नहीं चेता है।

आज़ मैंने अपनी आंखों से जो देखा है वह मंजर बहुत ही भयावाह और मन में रुग्णता पैदा करने वाला है। मनुष्य अपनी मुष्यता को त्यागकर लूट-खसोट में लग गया है, जैसे लगता है उसे अमरत्व का वरदान प्रात्त है, पूरी दुनिया समात्र हो जायेगी किन्तु वही बच जायेंगे अपने संसाधनों और लूट-खरोट की कमाई का उपभोग करने के लिए। आज़ जब मनुष्य को उदार होने की‌ अवश्यकता थी तब इंसान हैवान बना फिर रहा है, मुझे लगता है पूरे विश्व को कोरोना जैसी महामारी से कम इंसान रुपी कोरोना से निपटने की अवश्यकता है।

मैं ऐसा इसलिए भी कह पा रहा हूं कि ऐसी मुसीबत की खड़ी में भी इंसान, इंसान के साथ नहीं खड़ा है। बाजार में 10 रुपये में बिकने वाले मास्क की कालाबाजारी हो रही है उसे 150 रुपयें में बेचा जा रहा है‌। हैण्ड सैनिटाइजर की कीमतों में भारी उछाल आ गयी है अमूमन 90 रुपयें में बिकने वाला सैनिटाइजर आज़ बाजारों में 400 रुपयें में बिक रहा है। दैनिक उपयोग की चीजों में अचानक उछाल आ गया है सब्जियों के दाम बढ़ गये, आलू की बोरी अचानक सोने के भाव बिकने लगी। राशन बाजार से गायब हो गये‌। मुझे समझ नहीं आ रहा है इंसान और कितना गिरेगा?

यह भारत देश है वासुधैव कुटुम्बकम का संदेश देने वाला देश है जो पूरे विश्व को अपना परिवार मानता है वहां के नागरिक अपने पड़ोसी को‌ भी भाई मनाने भी तैयार नहीं है। वह नाजुक धड़ी अपनों के साथ लूट-खरोट करने की नहीं अपनों के साथ खड़े होने की है। उस गरीब परिवार की तरफ़ भी झाककर देख‌ लो जिनके धरों में चूल्हें नहीं जलें होंगे, दैनिक मजदूरी करने वाला व्यक्ति अपने बच्चों को लेकर भूखा सो गया होगा। इसलिए कहता हूं पुकारती मां भारती-मनुष्यता पुकारती इंसान बनों हैवान नहीं। अपने मातृभूमि के कर्ज को उतारने के लिए इससे सटीक अलभ्य अवसर कभी जीवन में नहीं मिलेगा। नहीं तो‌ इतिहास सदैव मनुष्यता और मनुष्य की प्रकृति पर सवाल उठायेगा। तुम्हारी हैवानियत को इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों से लिखा जायेगा।

जब-जब विश्व एवं राष्ट्र खतरें में होगा तुम्हे कोशा जायेगा। वर्तमान समय कोरोना से लड़ने के साथ मनुष्य में देवत्व का उदय करने का समय है। मानव सभ्यता को बचाने का‌ जितना भार वैज्ञानिकों, सेना के जवानों, पुलिस प्रशासन, पत्रकारों और डाक्टर्स के कंधों पर है उतना ही भार पूरे विश्व के प्रत्येक नागरिकों और प्रत्येक राष्ट्र के एक एक स्वयंसेवकों का भी है। अपने राष्ट्र के प्रति नैतिक कर्तव्यों का पालन करो. एक सभ्य नागरिक होने की जिम्मेदारी का निर्वहन करो एवं राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को सुनिश्चित करते हुए मनुष्य होने और मनुष्यता के साथ उदार होने का परिचय दे। नहीं तो हमारी आनी वाली पीढ़ियां यही संदेश देंगी की कोरोना तूने ठीक किया।। 

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