क्यों चाहते हो पूर्ण बहुमत की सरकार? मैं चाहता हूँ तलवार की धार पर लटकती सरकार! !

राजनैतिक विचारक मसीहुज़्ज़मा अंसारी कहते हैं याद रखिए, एक नागरिक के तौर पर हमारा और आप का काम किसी पार्टी को मज़बूत बनाना नहीं होना चाहिए बल्कि ऐसी सरकार का गठन होना चाहिए जो हर फैसले से पहले महात्मा गाँधी के उस बेबस और बिचारा आदमी के बारे में जरूर सोचे। ऐसी ही सरकार सही मायने में लोकतांत्रिक एवं जनता के कल्याण के प्रति समर्पित होती हैं। 

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उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव का युद्धघोष हो चुका है पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी दुबारा सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होने के लिए कमर कस चुकी है वहीं मुख्य विरोधी दल समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में आगामी सरकार बनाने का आत्मविश्वास लिए मैदान में डटी है।

हालांकि मैदान में कई और राजनीतिक पार्टियां हैं जो धरातल पर मज़बूत हैं और सरकार बनाने का दावा कर रही हैं। तकरीबन सभी विपक्षी पार्टियां सत्ताधारी भाजपा को अलोकतांत्रिक बताते हुए बदलाव चाहती हैं। कई बड़ी पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं. कुछ नई पार्टियां भी हैं जो चुनावी मैदान में हैं और राज्य में परिवर्तन चाहती हैं।

मैं इन सब को बहुत सकारात्मक तरीके से देख रहा हूँ और चाहता हूँ कि कोई भी पार्टी पूर्ण बहुमत से सरकार न बना पाए। चाहे अखिलेश हों, मायावती हों या कोई अन्य गठबंधन। ऐसा इसलिए क्योंकि जब भी देश या राज्य में सरकारें मज़बूत होती हैं तो न्यायपालिका कमज़ोर हो जाती हैं, हम भारत के लोग कमजोर हो जाते हैं । मज़बूत और पूर्ण बहुमत की सरकारें अपने साथ तानाशाही स्वरूप लेकर आती हैं। बसपा सरकार हो, सपा की सरकार हो या फिर भाजपा की सरकार। जब भी पूर्ण बहुमत में आई है तो उग्र रूप लेकर आई हैं।

जब छोटे-छोटे दलों से समर्थन लेकर कोई पार्टी राज्य में सरकार बनाती है तो ज़्यादा विनम्र होती हैं ज़्यादा लोकतांत्रिक होती है और अधिक जनकल्याणकारी सिद्ध होती है। ऐसा भारत की विविधता के स्वरूप को ध्यान में रखकर भी सोचना चाहिये। जहां कोस कोस पर पानी और चार कोस पर बानी बदल जाती हो वहां एक पार्टी को पूर्ण बहुमत देना सही नहीं है। सभी वर्गों को न्यायपूर्ण और समान प्रतिनिधित्व मिलने के लिए भी ये ज़रूरी है कि गठबंधन की सरकार बने जिसमें सभी की भागीदारी सुनिश्चित हो।

जब हम किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत देते हैं तो वह व्यक्ति, जाति और पार्टी विशेष की सरकार बनकर रह जाती है और जनता के हाथ में कुछ नहीं रहता लेकिन जब छोटी-छोटी पार्टियों के गठबंधन से सरकार बनती है तो वही सही मायने में जनता की सरकार होती है क्योंकि वो तलवार की धार पर चलती है और जनता के अधीन रहती है जिसमें  प्रतिनिधित्व के साथ साथ जनकल्याणकारी प्रतिबद्धता होती है।

इसलिए किसी पार्टी के सामाजिक परिवर्तन के नारों से भावुक न हों, जो कल तक भाजपा सरकार में मंत्री थे वो बहुरुपिये आज सामाजिक न्याय के पुरोधा बन कर समाजवादी पार्टी के साथ हैं। इसीलिए कहता हूं कभी भी सिर्फ भाजपा को हराना लोकतांत्रिक सरकार बनने की गारंटी नहीं हो सकती। हां, छोटी छोटी पार्टियों के गठबंधन से जनता की सरकार ज़रूर बनाई जा सकती है।

याद रखिए, एक नागरिक के तौर पर हमारा और आप का काम किसी पार्टी को मज़बूत बनाना नहीं होना चाहिए बल्कि ऐसी सरकार का गठन होना चाहिए जो हर फैसले से पहले महात्मा गाँधी के उस बेबस और बिचारा आदमी के बारे में जरूर सोचे। ऐसी ही सरकार सही मायने में लोकतांत्रिक एवं जनता के कल्याण के प्रति समर्पित होती हैं।

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