सियासत में चाचाओं का जलवा! अखिलेश, अजित और चिराग को पछाड़ कर चाचा 3-0 से आगे

मामले ने एक अलग ही रूप ले लिया है। वह अपने चाचा को मनाने उनके घर भी गए। लेकिन घर पर आए अपने ही भतीजे से मिलने से भी चाचा पशुपति पारस ने इनकार कर दिया। चिराग दरवाजे पर खड़े रहे लेकिन दरवाजा नहीं खुला और चिराग को खाली हाथ घर वापस लौटना पड़ा

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लखनऊ / पटना । उत्तर प्रदेश के ‘मुलायम परिवार’ की तरह इन दिनों बिहार के ‘पासवान कुनबे’ में सियासी वर्चस्व को लेकर चाचा-भतीजे के बीच सियासी जंग छिड़ी हुई है। अपने पिता रामविलास पासवान की बनाई पार्टी एलजेपी (LJP) में ही चिराग पासवान के खिलाफ मोर्चा खुल गया है। 

मामला यह है कि चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस अपने खुद के भतीजे के विरोधी के रूप में खड़े हो गए हैं। इन्ही कुछ कारणों की वजह चिराग पासवान को पार्टी के अध्यक्ष पद से भी हटा दिया गया है। लोक जनशक्ति पार्टी को टूटने से बचाने के लिए चिराग पासवान हरसंभव कोशिश करने में लगे है। जिससे उनके परिवार में जो मतभेद हो रहे है वो ना हों। 

लेकिन मामले ने एक अलग ही रूप ले लिया है। वह अपने चाचा को मनाने उनके घर भी गए। लेकिन घर पर आए अपने ही भतीजे से मिलने से भी चाचा पशुपति पारस ने इनकार कर दिया। चिराग दरवाजे पर खड़े रहे लेकिन दरवाजा नहीं खुला और चिराग को खाली हाथ घर वापस लौटना पड़ा। अब चिराग पासवान और पशुपति पारस दोनों का एक दूसरे की ओर से हमला जारी हैं।

बता दें कि चिराग से पहले अखिलेश यादव की अपने चाचा शिवपाल से और अजित की अपने चाचा शरद पवार से भिड़ंत हो चुकी है। अखिलेश परिवार की यह लड़ाई चर्चा का विषय बन चुकी थी। जिससे अखिलेश परिवार की काफ़ी बदनामी भी हुई थी। 2016 में अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल के बीच जोरदार झगड़ा हुआ था। अखिलेश ने अपने चाचा को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था।

अखिलेश और शिवपाल का तो आलम ये था कि एक बार मंच पर ही दोनों भिड़ गए और एक दूसरे से माइक छीनते भी देखे गए।इस पारिवारिक कलह के बाद जब चुनाव हुए तो उसमें अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी को तगड़ा झटका लगा और उन्हें सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। 

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव

फिलहाल अब शिवपाल यादव ने अपनी अलग पार्टी बना ली है।वहीं बिहार के चाचा – भतीजा मामले में अब पशुपति पारस ने पार्टी के छह में से पांच सांसदों को अपने साथ मिलाकर चिराग पासवान से संसदीय दल के पद और पार्टी की कमान दोनों ही छीन ली है।और अब चिराग अपने पिता की इस विरासत को वापस पाने के लिए बहुत मेहनत कर रहे हैं।

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