ये बहस बेकार है कि इस महामारी काल में ज्यादा जरूरी 20,000 हजार करोड़ रुपये खर्च कर हमारे भाग्य विधाताओं ड्रीम सेन्ट्रल विज़्टा प्रोजेक्ट है या कोविड-19 से लड़ने की तैयारी। कोविड-19 की दूसरी लहर ने भारत में कोहराम मचा रखा है। महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्था एक बुरे स्तर पर पहुंच चुकी है। अस्पतालों में मरीजों के लिए पर्याप्त मात्रा में बेड नहीं मौजूद हैं और यदि परिजन मरीज को घर पर ही रख कर इलाज करना चाहें तो उन्हें पर्याप्त मात्रा में ना ही दवाइयां मिल पा रहीं और ना ही ऑक्सीजन की कमी को पूरा किया जा पा रहा है।
देश में रोज हजारों की मात्रा में मरीजों की मृत्यु हो रही है। लाखों की संख्या में कोविड-19 मरीज बढ़ रहे। हर कोई यहां तक स्वास्थ्य कर्मचारी भी बेबस और मजबूर दिख रहे हैं। डॉक्टर्स अपनी आंखों के सामने मरीजों को मरते देख रहे पर कुछ नहीं कर पा रहे हैं। अपनों को बचाने की कोशिश में लगे लोग खुद को भी इस बीमारी की आंच में झोंक दे रहे बावजूद इसके उनके हाथ केवल निराशा और हताशा ही हाथ लग रही।
देश की जनता कोविड महामारी की मार से जूझ रही है, भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था का मजाक बनाती यह महामारी केन्द्र में बैठे पदाधिकारियों पर भी कई सवाल खड़े कर रही है। एक तरफ जहां दूर-दूर तक मरीजों के लिए सुव्यवस्थित और उचित इलाज की व्यव्था में सुधार करने की कोई बड़ी पहल नजर नहीं आ रही, वहीं दूसरी तरफ केन्द्र सरकार के सेन्ट्रल विज़्टा प्रोजेक्ट पर भी अब प्रश्न उठ रहे हैं।
केन्द्र सरकार अपने सेन्द्रल विज़्टा प्रोजेक्ट पर 20,000 करोड़ की लागत लगा रही है जिसमें दिल्ली में बनने वाला नया संसद भवन भी शामिल है। ऐसे में प्रश्न यह है कि इस महामारी काल में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण क्या है, देश की राजधानी दिल्ली को सजाना या अपने स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार करना और उसे मजबूत करना।
भारत इस वक्त भीषण महामारी से लड़ रहा है जिससे बाहर निकलने का केवल एक मात्र उपाय समझ आ रहा है औऱ वो है स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार। केन्द्र सरकार की छोटी-छोटी पहल महामारी पर उतनी असरकारी साबित नहीं हो रही है।
केन्द्र सरकार द्वारा ही स्वास्थ्य पर गठित कमेटी ने अक्टूबर 2020 में ही सरकार को ऑक्सीजन कमी की चेतावनी दी थी, तो फिर यह जानने के बावजूद सरकार पहले से ही इस परिस्थिती से लड़ने के लिए तैयार क्युं नहीं थी। लगभग 14 महीने हो गए है कोविड महामारी को भारत में दस्तक दिए और 7 महीने हो गए हैं विशेषज्ञों द्वारा ऑक्सीजन की कमी के बारे मे बताए हुए, परन्तु उसके बाद सितम्बर 2020 सेन्ट्रल विज़्टा प्रोजेक्ट को प्रस्तुत किया जाता है जिसका काम जनवरी 2021 से शुरू भी हुआ।
बजट में कोविड महामारी के नाम पर 3500 करोड़ का बजट रखा गया जो कि केवल टीकाकरण के लिए आवंटित था। बजट में कहीं भी ऑक्सीजन कंटेनर, कंसंनट्रेटर्स, वेंटिलेटर या फिर कहें कि ऐसे किसी भी व्यवस्था का जिक्र नहीं किया गया जिससे कि लोगों को कोविड महामारी से लड़नें में सहायता मिले। यदि हम व्यवस्था को देखें तो हमें किसी भी योजना की पहले से तैयारी नजर नहीं आती। अभी तीसरे कोविड वेव के आने की संभावनाएं भी बनीं हुई हैं।
14 महीने में एक भी हॉस्पिटल का निर्माण नहीं किया गया जो कि इस महामारी से लड़ने में मदद करे। सेन्ट्रल विज़्टा प्रोजेक्ट का काम दो साल में पूरा हो जाएगा जबकि एम्स को बनने में छ साल का समय लगता है। ऐसे में हमें यह समझने की जरूरत है कि हमारे लिए ज्यादा जरूरी क्या है।
14 महीने के कोविड महामारी में 25 अप्रैल 2021 को मोदी सरकार 551 जीएसए आक्सीजन प्लांट को और एक मई 2021 को 61000 वेंटिलेटर्स को मंजूरी देती है। यह सोचने वाली बात है कि खतरे का अन्दाजा पहले से होने के बावजूद हमने खुद को बचाना तब शुरू किया जब खतरा हमारे में घुस आया जिसमें हमारे कई अपनों की जान चली गई और कई चाहने वालों को हमने खो दिया।
अच्छा विश्लेषण
वाह