लखनऊ / दिल्ली । कोविड-19 के दूसरे लहर के बाद अब देश पर कोरोना से जुड़ा दूसरा खतरा मंडरा रहा है। कोरोना की दूसरी की लहर से ना केवल देश में जान माल का भारी नुकसान हुआ है, बल्कि बायोमेडिकल कचरे में भी जबरदस्त इजाफा देखने को मिला है। सरकार और नागरिकों के लिए बड़ी चुनौती मुंह खोले खड़ी है यह चुनौती कोविड-19 कारण इकट्ठा हो रहे कचरे की है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के मुताबिक बायोमेडिकल कचरे का सही मैनेजमेंट इंफेक्शन को फैलने से रोकना है और कोरोना काल में ये और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। बायो मेडिकल कचरे में कैप्स, मास्क, प्लेसेंटा, पैथोलॉजिकल कचरा, प्लास्टर ऑफ पेरिस, ऑपरेट करने के बाद निकाले गए अंग, एक्सपायर हो चुकी दवाई, रेडियोएक्टिव कचड़ा, ब्लड बैंक, डायलिसिस किड्स, आईवी सेट्स, यूरिन बैगस, केमिकल कचरा जैसी कई चीजें शामिल हैं।
साइंटिफिक तरीके से डिस्पोज ना करने पर यह पर्यावरण के साथ ही इंसानों के लिए भी खतरनाक हो सकता है। गौरतलब है कि भारत के सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने देशभर में कोविड कचरे को डिस्पोज करने के लिए गाइडलाइंस बनाई है।
CPCB के मुताबिक, फिलहाल भारत में 198 कॉमन बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटी कोविड कचरे को डिस्पोज करने में लगी है। भारत में 50 लाख सैनिटाइजेशन वर्कर्स है जिनमें से 50 प्रतिशत महिलाएं हैं। इसके अलावा कई गांवों, शहरों में डोर टू डोर कचरा ना उठाने की सुविधा ने भी इंफेक्शन के खतरे को बढ़ाया है।
इनमें इस्तेमाल होने वाले सिंगल यूज़ प्लास्टिकस माइक्रो प्लास्टिक मे तब्दील हो जाते हैं जिन्हें रिसाइकिल करना लगभग नामुमकिन होता है।यह माइक्रोप्लास्टिक्स खेतों से लेकर नदियों में पहुंचते हैं इसके बाद हवा और खाने का हिस्सा बन जाते हैं।
भारत में पिछले कुछ समय से अस्पतालों का इंफ्रास्ट्रक्चर भी बेहतर हुआ है, इसके चलते बायोमेडिकल और प्लास्टिक कचरा भी बढ़ रहा है। ऐसे में मौजूदा समय में कोरोना से जुड़े और अन्य बायोमेडिकल कचरे को डिस्पोज करने के लिए खास सतर्कता बरतने की जरूरत है।