जज बोले, आडवाणी की कोई साजिश नहीं असामाजिक तत्वों ने गिराया ढांचा

राम जन्मभूमि पक्ष और बाबरी मस्जिद पक्ष के लोगो ने बाबरी मस्जिद -रामजन्म भूमि को लेकर अपने स्वार्थ की राजनीति की और समाज में इतना ज़हर बोया कि वर्तमान में हिन्दू मुस्लिम में समुदायों के बीच एक दीवार खड़ी हो गई है। हम सब को मिल कर अब इस दीवार को गिराना है और आपसी सौहार्द कायम करने की कोशिश करनी है

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पिछले साल राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराना एक आपराधिक कृत्य था उसी मसले पर सीबीआई की विशेष अदालत ने 28 साल बाद फैसला सुनाया है और इसमें पूर्व उप प्रधानमंत्री आडवाणी पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह समेत सभी 32 अभियुक्तों को बरी कर दिया गया है।

इस फै़सले को लेकर समाज के विभिन्न तबकों के लोगों की अलग-अलग की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। बाबरी मस्जिद विध्वंस किसने किया या किसने नहीं किया ये मुद्दा अब बेमानी होगया है क्योंकि उस ज़मीन को सुप्रीकोर्ट ने रामजन्म भूमि ट्रस्ट को दे दिया है। अब इस मुद्दे को लेकर देश में उबाल पैदा करने की कोशिश करना ना देश के हक मै है न ही मुस्लिम समाज के हक़ में है।

राम जन्मभूमि पक्ष और बाबरी मस्जिद पक्ष के लोगो ने बाबरी मस्जिद -रामजन्म भूमि को लेकर अपने स्वार्थ की राजनीति की और समाज में इतना ज़हर बोया कि वर्तमान में हिन्दू मुस्लिम में समुदायों के बीच एक दीवार खड़ी हो गई है। हम सब को मिल कर अब इस दीवार को गिराना है और आपसी सौहार्द कायम करने की कोशिश करनी है ।

मुस्लिम समाज के लोगो को बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले को भूलकर आगे की सोचने की जरूरत है औ धर्म एवं राजनीति के ठेकेदारों को हतोत्साहित करने के लिए समाज को जागरूक करना है ताकि ऐसे लोगो को बैठे बिठाए राजनीति करने के लिए एक और मुद्दा ना मिल जाये।

दूसरी तरफ मथुरा की सिविल जज ने मथुरा की इदगाह के सिलसिले में दायर किए गए मुकदमे को ये कहते हुए खारिज कर दिया कि 1991 के एक्ट मे कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 के status co को बहाल रखा जाएगा। ये मुमकिन है कि आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड  इस मसले को आगे बढ़ाये अगर वो ऐसा करताा है तो मुस्लिम समुदाय को उसका विरोध करना चाहिए।

क्युकी ऐसे मसले आम और गरीब मुसलमानो के हक में नहीं होते है। यहाँ ये भी जान लेना चाहिए कि आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड एक undemocratic ,intrasparent and castiest संस्था है। इसमें पसमांदा मुसलमानों को उनकी आबादी के हिसाब से प्रतिनिधत्व नहीं है।

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