हमारे मुल्क का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता से शुरू हो कर मध्यकालीन भारत से होता हुआ 1757 में आधुनिक भारत में प्रवेश करता है। यह देश तुर्कों, मंगोलों, मुगल राजाओं और बादशाहो के कब्जे में था उसके बाद ब्रिटिश शासन में रहा।
चूंकि बादशाहों और राजाओं का मिजाज जनता को गुलामी का एहसास कराये रखना था इसलिए वो आम जन के लिए ऐसे प्रोटोकोल बनाते थे जिससे कि उनका स्वाभिमान कभी बुलंद ना हो सके इसलिए जनता को भी उन्हीं तौर तरीकों को फॉलो करने की और उसके कसीदे पढ़ने के लिए अपने मन में गुलामी की भावना रखने और उसकी चाकरी करने की आदत पड़ गई है।
15 अगस्त 1947 को हमेें राजनीतिक आजादी मिली और 26 जनवरी 1950 को हम एक स्वयंभू गणराज्य बन गये हमे लोकतंत्र तो मिला लेकिन हम अभी लोकतन्त्र की मूल भावना जो बराबरी का हक देती है इस को समझने में हम विफल रहे हैं जहाँ तक उसपर अमल करने की बात है तो इसमें नेता और जनता के बीच में साझदारी और बराबरी में एक गहरी खाई जैसी दूरी है जिस कारण हम अपने हक की आवाज उठाने में डरते हैं।
बल्कि ये समझते है की ये वही हमारे मालिक और बादशाह या राजा है जिनके हमारे बाप दादा गुलाम हुआ करते थे ये अब MLA MP, MINISTER , का रूप लेकर जन्मे है तो हमको इनकी जीत पर वैसा ही जश्न मनाना चाहिए जैसे एक गुलाम, किसी बादशाह के विजयी होने पर मनाता है।
अगर आपको इसका तजुर्बा करना हो तो उत्तर प्रदेश में पंचायती चुनाओ और बंगाल में विधान सभा चुनाओं के रिजल्ट पर नेतााओं की जीत पर गुलाम जनता का पागल दीवानों की तरह सड़को पर भौंडा प्र्रदर्शन देखा जा सकता है यहाँ तक कि उसकी झलक आप फेसबुक पर देख सकते है।
चुनाव के रिजल्ट पर कोई अपनी राय देना खुशी का इजहार करना तो समझ आता है लेकिन नेता जी के इतने कसीदे गुलामों की तरह पड़ना तो गुलामों की आदत का हिस्सा है और गुलाम को हमेशा एक मालिक की तलाश होती है जो MLA,MP ,PRADHAN,ZILA PACHANT,BDC , के रूप में उसको मिल जाती है और वो उसको अपने सर रख कर नाचता है और इस खुशी में वो अपनी और अपने बच्चो की जरूरतों को भूल जाता है।
Excellent analysis Mr Thinker