अफगानिस्तान में आतंक से आतंकियों का तीन फायदा, आईएस का मकसद इस्लामी खिलाफत तो तालिबान बनाना चाहता है अमीरात अल-कायदा

आतंकी संगठन आईएस का मतलब है इस्लामिक स्टेट। इस आतंकी संगठन का जन्म हुआ था इराक और सीरिया में। 2014 में इराक के मोसुल में कब्जा करने के बाद इस संगठन ने जमकर कहर बरसाया और यूरोप में कई हमलों को अंजाम दिया। 2014 में बेल्जियम से लेकर, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका और फ्रांस तक आतंकी हमलों में इस संगठन का नाम आया।

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लखनऊ / दिल्ली / काबुल । काबुल एयरपोर्ट पर हुए बम धमाकों के बाद कई जगह सवाल है कि आखिर जब तालिबान और आईएस दोनों ही इस्लामी शासन चाहते हैं तो फिर बम धमाके क्यों? आतंकवाद से इस वक्त पूरी दुनिया जूझ रही है  फिलहाल इन आतंकी गतिविधियों का गढ़ बना है अफगानिस्तान। जहां गुरुवार को ही काबुल एयरपोर्ट के बाहर दो बड़े बम धमाके हुए। इनमें अब तक कम से कम 40 लोगों के मारे जाने की खबर है, जबकि सैकड़ों घायल हुए हैं।

इस हमले के पीछे इस्लामिक स्टेट-खोरासान (आईएस-के) को माना जा रहा है, जिसका प्रभाव अमेरिका के अफगानिस्तान से जाने के बाद लगभग तय है। तालिबान ने भी दावा किया है कि एयरपोर्ट की सुरक्षा में खड़े उसके कुछ लड़ाकों को चोटें आई हैं। ऐसे में कई जगह सवाल हैं कि आखिर जब तालिबान और आईएस दोनों ही आतंकी संगठन हैं, तो इन दोनों में क्या फर्क है और इस्लामिक जगत में इनके मकसद कितने अलग हैं।

आतंकी संगठन आईएस का मतलब है इस्लामिक स्टेट। इस आतंकी संगठन का जन्म हुआ था इराक और सीरिया में। 2014 में इराक के मोसुल में कब्जा करने के बाद इस संगठन ने जमकर कहर बरसाया और यूरोप में कई हमलों को अंजाम दिया। 2014 में बेल्जियम से लेकर, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका और फ्रांस तक आतंकी हमलों में इस संगठन का नाम आया। इसलिए इसका शुरुआती नाम इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) पड़ा।

हालांकि, इस संगठन ने पूरे यूरोप से लेकर अमेरिका, ब्रिटेन, एशिया और भारत के करीब अफगानिस्तान से लेकर श्रीलंका तक में दहशत फैलाई। इस संगठन के सरगना आतंकी अबु-बकर अल बगदादी ने संगठन का लक्ष्य इस्लामी जगत में खिलाफत शासन लाना रखा था और खुद को इस्लामिक जगत का खलीफा (सबसे बड़ा नेता) तक घोषित कर लिया था।

बताया जाता है कि 2014 से लेकर 2017 तक अपने चरम के दौरान आईएसआईएस ने अफगानिस्तान में भी कुछ लड़ाके भेजना शुरू कर दिया था। हालांकि, यहां उसकी असली ताकत बने तालिबान के वो खूंखार आतंकी, जो अमेरिका से लड़ाई के दौरान मुल्ला उमर के नेतृत्व वाले संगठन की कमजोरी से तंग आ चुके थे। ऐसे ही कुछ आतंकियों ने मिलकर अफगानिस्तान के खोरासान प्रांत में आईएस की शुरुआत की और पूरे देश में कई आतंकी गतिविधियों को अंजाम दिया। आईएस-खोरासान का अस्तित्व आईएसआईएस के खत्म होने के बाद भी बरकरार है।

इस आतंकी संगठन की विचारधारा सुन्नी इस्लाम की वहाबी-सलाफी परंपरा की मानी जाती है। आईएस ने अफगानिस्तान में ज्यादातर हमले सुसाइड बॉम्बरों यानी आत्मघाती हमलावरों के जरिए कराए हैं, जिनमें सैकड़ों लोग मारे गए हैं। इतना ही नहीं यह संगठन अल-कायदा और तालिबान के उलट सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव रहा है, जिसके चलते दुनियाभर के कट्टरपंथी लोग इस संगठन से जुड़े। अफगानिस्तान में जहां बीते एक दशक में लगातार तालिबान का उदय हुआ, वहीं आईएस ने भी छिपकर बड़े हमलों के जरिए खुद की खतरनाक आतंकी संगठन के तौर पर पहचान बनाई है

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