प्रेसिडेंट बाइडन ने कहा अमेरिकी सेना की तैनाती अफगानिस्तान समस्या का समाधान नहीं

ईरान की राजधानी तेहरान में हुई बैठक में अफगान के राजनेताओं और तालिबान के प्रतिनिधियों के बीच इस बात पर सहमति बनी कि युद्ध अफगान समस्या का समाधान नहीं है। बैठक के बाद दोनों पक्षों ने एक छह सूत्री बयान जारी किया, जिसमें शांतिपूर्ण समाधान तक पहुंचने की जरूरत पर जोर दिया गया

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तालिबान के एक प्रतिनिधिमंडल ने गुरुवार को रूस की राजधानी मास्को में अफगानिस्तान के लिए रूस के विशेष दूत जमीर काबुलोव से बातचीत की। खबरों के मुताबिक इस बैठक में काबुलोव ने अफगानिस्तान में तेज हो रही लड़ाई पर रूस की चिंता तालिबान प्रतिनिधिमंडल को बताई।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के ये साफ कर देने के बाद अब अमेरिकी फौज की अफगानिस्तान में तैनाती की अवधि किसी सूरत में नहीं बढ़ाई जाएगी, अफगानिस्तान की भावी व्यवस्था को लेकर आशंकाएं और गहरा गई हैं। बाइडन ने गुरुवार को राष्ट्र के नाम संबोधन में दो टूक कह दिया कि सारे अमेरिकी फौजी 31 अगस्त तक अफगानिस्तान से चले जाएंगे। बाइडन ने बेलाग ढंग से ये बात मानी कि अमेरिकी सेना की तैनाती अफगानिस्तान की समस्या का समाधान नहीं है। उन्होंने कहा कि तकरीबन 20 साल के अनुभव से ये साफ है कि अगर अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान में एक साल और रह जाएं, तब भी उससे वहां की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आएगा।

ये स्थिति साफ होने के बाद अब अफगानिस्तान में क्षेत्रीय शक्तियों की भूमिका और बढ़ती नजर आ रही है। खुद अमेरिका भी इसके लिए अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों को प्रोत्साहित कर रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने एक प्रेस कांफ्रेंस में अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों से कहा कि वे अफगान शांति वार्ता में रचनात्मक भूमिका निभाएं, ताकि वहां ‘न्यायपूर्ण और टिकाऊ शांति’ कायम हो सके। उन्होंने इस सिलसिले में अमेरिका के विरोधी माने जाने वाले ईरान की भूमिका की भी सराहना की। गौरतलब है कि ईरान ने अपने यहां अफगानिस्तान से जुड़े पक्षों की एक-दो दिन की बैठक बुधवार और गुरुवार को आयोजित की।

ईरान की राजधानी तेहरान में हुई बैठक में अफगान के राजनेताओं और तालिबान के प्रतिनिधियों के बीच इस बात पर सहमति बनी कि युद्ध अफगान समस्या का समाधान नहीं है। बैठक के बाद दोनों पक्षों ने एक छह सूत्री बयान जारी किया, जिसमें शांतिपूर्ण समाधान तक पहुंचने की जरूरत पर जोर दिया गया। इस बयान के मुताबिक दोनों पक्षों में इस बात पर सहमति बनी कि अफगानिस्तान में इस्लामी व्यवस्था लागू की जाएगी। साथ ही एक ऐसी व्यवस्था बनाई जाएगी, जिससे युद्ध जैसे हालात से देश को निकाल कर वहां स्थायी शांति कायम की जा सके।

पर्यवेक्षक इस सहमति को महत्वपूर्ण मान रहे हैं। इसका मतलब यह समझा गया है कि अफगानिस्तान के राजनेता तालिबान की इस मांग से सहमत हो गए हैं कि अफगानिस्तान में नई व्यवस्था इस्लामी प्रणाली से चलेगी। बैठक में अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति युनूस कानूनी, पूर्व राष्ट्रपति हमीद करजई के चीफ ऑफ स्टाफ रहे अरशाद अहमदी, राष्ट्रपति अशरफ ग़नी के सलाहकार सलाम रहीमी, हिज्ब-ए-वहदात पारटी के नेता जहीर वहदात और जुनबिश पार्टी के नेता मोहम्मदुल्लाह बताश शामिल हुए। बैठक के बाद जारी बयान में आम लोगों के घरों, स्कूलों, मस्जिदों, अस्पतालों आदि पर हमले और नागरिकों को निशाना बनाने की घटनाओं की कड़े शब्दों में निंदा की गई।

बुधवार को दो दिन की ये बैठक ईरान के विदेश मंत्री जवाद जरीफ के संबोधन से शुरू हुई थी। इसमें तालिबान के दल के नेतृत्व इस संगठन के मुख्य वार्ताकार मोहम्मद अब्बास स्तनिकजई ने किया। उधर कतर का एक विशेष दूत गुरुवार को काबुल पहुंचा। वहां उसने वरिष्ठ अफगान नेताओं के साथ दोहा वार्ता को आगे बढ़ाने की संभावनाओं पर चर्चा की।

इस बीच तालिबान के एक प्रतिनिधिमंडल ने गुरुवार को रूस की राजधानी मास्को में अफगानिस्तान के लिए रूस के विशेष दूत जमीर काबुलोव से बातचीत की। खबरों के मुताबिक इस बैठक में काबुलोव ने अफगानिस्तान में तेज हो रही लड़ाई पर रूस की चिंता तालिबान प्रतिनिधिमंडल को बताई। रूसी एजेंसी तास के मुताबिक तालिबान ने रूस को आश्वासन दिया कि तालिबान मध्य एशियाई देशों की सीमा का उल्लंघन नहीं करेगा।

इन घटनाक्रमों से साफ है कि जिस समय अमेरिका ने अफगानिस्तान को उसकी जनता के भरोसे छोड़ कर अपनी फौज लौटाने का अटल फैसला कर लिया है, अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों ने अगस्त के बाद अफगानिस्तान में बनने वाली व्यवस्था को लेकर अपनी सक्रियता तेज कर दी है। इन गतिविधियों पर अब सारी दुनिया की नजर है। 

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