इकॉनमिक्स केंद्र में रखकर अपनी राजनीति, प्रशासन, विदेश नीति, रणनीति, दोस्त और दुश्मन तय करने की सलाहियत कभी ब्रिटिश ने दिखाई थी, अब चीन दिखा रहा है। उस वक्त दुनिया के सारे बड़े व्यापारिक केंद्रों में ब्रिटिश की मौजूदगी हुआ करती थी, जिसे जोड़ता था उसका शिपिंग फ्लीट। अब दुनिया के हर केंद्र में चीन बैठा है, सीधे या छुपकर.. और उन्हें जोड़ रही है वन बेल्ट वन रोड की परियोजनाएं।
रोम के सुनहरे दौर में कहा जाता था- “आल रोड्स लीड्स टू रोम”। तब रोम दुनिया की राजधानी था। वन बेल्ट वन रोड की चीन की योजना, जो अब तक ठीक चल रही है,.. पूरी होने “आल रोड लीड्स टू बीजिंग” हमारी पीढ़ी देखेगी। एशिया और यूरोप की हर बड़ी रोड बीजिंग ही जाएगी।
इसमें से एक, जो चीन के लिए सबसे जरूरी है, वो पीओके से होकर जाती है। चाइना पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर- सौ बिलियन डॉलर का चाइनीज इन्वेस्टमेंट है। आधा पूरे पाकिस्तान में, और आधा उस कश्मीर में, जो हमारा नही है।
सीपैक सिर्फ ग्वादर पोर्ट नही है, इसके साथ है हाइवे, रेलवे, गैस पाइपलाइन, ताप विद्युतगृह, सोलर विंड और एटॉमिक.. जी हां एटॉमिक पावर प्लांट,। इन प्रोजेक्ट्स का विस्तार है- ग्वादर पोर्ट से लेकर काशगर तक।
काशगर कहां, वही जिनजियांग प्रान्त जिसे वीगर मुसलमानों के उत्पीड़न के नाम से आप मजाक उड़ाते हैं। सी पैक का हब है काशगर। जो काराकोरम हाइवे से होकर ग्वादर से जुड़ता है, कोई 2100 किमी की स्लीक ड्राइव, जो गिलगित बाल्टिस्तान, नीलम वैली से होकर वाया इस्लामाबाद कराची ग्वादर जाता है।
काशगर से आगे बीजिंग कैसे जाएंगे। पहले तिब्बत जाना होगा,उसी सड़क से होकर जो अक्साई चिन से होकर गुजरती है, जिसके कारण 1962 हो चुका है। दुनिया की राजधानी बन रहे देश की राह में हम कांटा हैं, जो अक्साई चिन और पीओके पर छाया डाल रहे हैं।
दरअसल इस प्रोजेक्ट ने चीन और पाकिस्तान को ऐसा जोड़ा है, की फिलहाल पाकिस्तान में पाकिस्तान से ज्यादा स्टेक चीन का है। फिलहाल चीन जान दे देगा पीओके और अक्साई चिन के लिए। तो समाधान केवल दो हैं। आज कीजिये या 100 साल बाद।
पहला तो अचानक बड़ा हमला कीजिये, और एक हफ्ते में पीओके, अक्साई चिन, डोकलाम, अलना फलना घाटी.. जीत लीजिए। फिर जो होगा, देखा जाएगा। या दूसरा- नेगोशिएशन करके ले- देकर निपटाइये। कुछ पहाड़ियां उनको दे दीजिए, कुछ रख लीजिए। परमानेंट सेटल कीजिये।
ये दोनो ही चीजें करने के लिए मोदी जी सक्षम हैं। आज पीएम की बात को दुनिया मे कोई नेता नही काट सकता। ट्रम्प से लेकर जिनपिंग या सऊदी प्रिंस, सारे उनका सम्मान करते हैं। उनके नाम का विदेशों में डंका बजता है। वे जीनियस है, रणनीतिक भी, लोकप्रिय भी।
या एक रास्ता यह है कि जो कांग्रेस और नेहरू का रास्ता अपनाए रखा जाए, अर्थात हां भी और ना भी। अभी वही चल रहा है। यह तो वही कांग्रेसी कुत्तनीति है। इसमें समाधान कहां ?? मेरे मन का तो पहला रास्ता है। रातोरात भूम भाम धूम धडाम।