हम कितना बढ़िया सोचने लगे हैं। कितना अच्छा करने लगे हैं। हर वक़्त दूसरों की सेवा-सहायता के लिए तत्पर हैं। जरा सोचकर देखिए कि हम पिछले 25 मार्च से कामवाली बाई हैं, धोबीवाला भैया हैं। अपने घर में हींग वाली पानीपूरी और बिना लाल मिर्च के चाट-मसालों की दुकान लगाने वाले भैया हम ही हैं। वड़ा-पाव वाला भी हम हैं, सूजी के हलवे का केक भी हमने ही बनाया। हम अपने किचन के खानसामा भी बन चुके हैं। और तो और, दारू की जगह हल्दी वाला दूध पीना-पिलाना भी सीख गए। बच्चों के बाल भी हम ही काट रहे हैं, पढ़ा भी रहे हैं। बिजली वाले और प्लम्बर का काम भी कर लिया, पार्लर का काम भी घर पर ही चल रहा है, वो भी शानदार तरीके से। कपड़े भी घर पर बना रहे हैं, फेस मास्क भी हमने खुद ही बना लिया। गुलदस्ते में धनिया-मिर्चा और मेथी के साथ-साथ गमले में काम चलाऊं सब्जी भी ऊगा लिया।
जहाँ रोज सुबह ऑफिस जाने की जल्दी होती थी, आज उसी वक़्त पर अपने घरों में बने प्रार्थना स्थल पर ईश्वर से सबका मंगल करने की कामना करते हैं। कोई किसी से अपना उधार भी नहीं मांग रहा है ! सिर्फ इतना कहता है कि भाई, बस काम चला दो।
शादियां भी हो रही हैं, अंदर का तो पता नहीं पर सामने से कोई ख़ास खर्च नहीं दिख रहा। डॉक्टर्स और पुलिसवाले आजकल आम आदमी से घर जैसा व्यवहार कर रहे हैं। पर कुछ परिवार ऐसे भी हैं जो इस महामारी से कम लेकिन लॉकडाउन की स्थिति में त्रासदी झेल रहे हैं। अगर उनकी त्रासदी न रुकी तो न जाने कितने परिवार इस महामारी के भंवर में डूब जाएंगे। प्रत्येक राज्य के मुखिया को अपने परिवारों (प्रदेश) को बचाने के लिए अभी ठोस कदम उठाने बाकी हैं। जो हुआ वो ठीक था, पर अब जो हो रहा है वो भविष्य बताने के लिए काफी है।
इसी बीच अपने प्रधानमंत्री जी ने प्रकट होकर कहा कि आत्मनिर्भर बनिए। ठीक है, जब सब कुछ बन गए तो ये भी बन जाएँगे। लेकिन किसी की भी जान न जाने की शर्त पर ! सबको सुरक्षित रखने की शर्त पर ! सबको अपने बिछड़े परिवारों से मिलाने की शर्त पर ! वो भी बिना किसी को नुक़सान पहुँचे
सुनने में आया है कि किंगफिशर वाले माल्या साहब को भी अपने परिवार (भारत) की याद आ रही है। उन्हें भी आत्मनिर्भर बनने का मौका मिलना चाहिए। क्योंकि भाई, अगर हम इससे भी ज़्यादा आत्मनिर्भर हुए न, तो आत्म रूपी आत्मा अलग और निर्भर अलग हो जाएगा। इन्हीं सबके साथ सड़क पर सैकड़ों-हजारों किलोमीटर की दुःखद यात्रा कर रहे अलग-थलग परिवारीजनों को ईश्वर में उम्मीद का एक दीपक दिख रहा है, जो उन्हें किसी भी दशा में और किसी न किसी दिशा में मार्गदर्शित कर रहा है।