तुम हार गए। तुम कल भी हारे थे और आज फिर हार गए। तुम्हारे बच्चे कल भी गुलामी और ज़ुल्म के शिकार थे और आगे भी होंगे। फलां बाग़ वालों ये जो स्टेज तुम ने बनाया, ये जो महफ़िल तुम ने सजाई, ये जो बिगुल तुम ने फूंका, ये जो शमा तुम ने जलाई, ये सब बेमानी हो गया। तुम गरम तवे पर पड़े पानी की तरह उड़ गए और सिर्फ तवा रह गया। तुम्हारा वजूद ख़तम हो गया। तुम्हारा मुस्तकबिल अंधेरे कोह में रस्ता भटक गया। तुम समझ नहीं पाए तुम्हारे साथ एक बार फिर धोखा हुआ। तुम्हे छला गया। तुम्हे तुम्हारी औकात बताई गई। तुम्हे ज़लिल किया गया। और सब से अफसोसनाक बात ये है के तुम्हे ये ना महसूस हुआ और ना महसूस हो रहा है।
तुम्हारे ईहतेजाज को सीढ़ी बना कर वो रांची पटना दिल्ली पहुंच जाएगा और तुम वही गली कूचों में उस की चापलूसी में लगे रहोगे। तुम्हारे ईहतेजाज का वो चेहरा बन जाएगा खुद को पार्टी आलाकमानों के सामने रखेगा खुद को तुम्हारा रहबर कहेगा और सत्ता की मलाई चाटेगा। बदले में तुम्हे क्या मिलेगा? 313 का लॉलीपॉप। गुलामी को जन्नत का रास्ता। लेकिन एक बात जान लो ये लोग ना तुम्हे 313 का हिस्सा मानते हैं और ना तुम्हे जन्नत के लायक समझते हैं। ऐसा इस लिए नहीं के तुम मुसलमान नहीं हो। तुम हो तो मुसलमान लेकिन तुम उन में से नहीं हो जिन से वो खुद को बताते हैं। तुम वहां से नहीं आते हो जहां से वो आता है। तुम्हारी सफेद दाढ़ियों पर मेहंदी नहीं फब्ती। तुम्हारे जिस्म पर जुब्बा नहीं जंचता। तुम्हारे हाथों का फातिहा काबिल ए कबूल नहीं होता। तुम्हारे हाथों की बनाई शिर्नी मकरूह है। हत्ता के बाज़ जगह तुम्हारे अलग कब्रिस्तान हैं और शायद तुम्हारे पीछे जमात भी जायज़ ना हो। तुम्हारे इतिहास की कड़ियां वहां नहीं जुड़ती हैं जहां से वो खुद को जोड़ते हैं।और तुम्हारे इतिहास को मिटा देते हैं।
पार्टी के लिए काम तुम करोगे वोट तुम मांगोगे लेकिन तुम्हे राज्य सभा का उम्मीदवार नहीं बनाया जाएगा। राज्य सभा का उम्मीदवार उन को बनाया जाएगा भले ही उन की औकात आम चुनाव जीतने की ना हो। तुम 95 फ़ीसद हो कर भी अपना नुमाइंदा नहीं चुन पाओगे क्यों के तुम वो नहीं हो जो ये हैं। तुम अपना नेता नहीं पैदा कर सकते क्यों की तुम्हे जहन्नुम का डर है क्यूं के तुम्हे सामाजिक बहिष्कार का डर है क्यों के तुम्हे फलां साहब का डर है क्यों के तुम चापलूस हो गए हो क्यों के तुम ने अपने जन नायकों को नहीं पढ़ा है ना उन की कुर्बानियों को पढ़ा है और ना उन के ताऊन को जाना है। तुम ने अपने पुरखे के नाम से मंसूब स्कूल तक को ना संभाल पाए और उन लोगों ने हमेशा ये चाहा के तुम्हारे आब ओ अजदाद के नाम से मंसूब चीज़ें ख़तम हो जाएं। वो तुम्हारा और तुम्हारे आब आे अजदाद का मज़ाक तुम्हारे मुंह पर बनाते रहे और तुम ने उस में हिस्सेदारी की।
पार्टी और वो तुम्हे बस वोटर की हैसियत से देखता है क्यूं के तुम्हारे अंदर ये हिम्मत नहीं है के तुम पार्टी या उन से ये नहीं कह पाते के नेता हमारे हमारे बीच का होगा तो वोट देंगे। तुम्हारे इसी डर की वजह से नेता बनाना तो दूर तुम्हे पार्टी में पोस्ट नहीं मिलती ना ज़िला के सतह पर और ना की शोबे की सतह पर। तुम बेवकूफ हो। तुम सिर्फ दहाड़ी कमाने में लगे रहे और उस ने तुम से तुम्हारा सब कुछ छीन लिया। तुम अपने घरों में दुबके रहे तुम ने सड़क छोड़ दी उस ने तुम से तुम्हारी ज़मीनें छीन ली तुम्हारी राजनीतिक हिस्सेदारी खा गए। तुम कुमार सानू के गाने सुनते रह गए जब की उस ने सामाजिक परिवर्तन को भांप लिया और अपनी नस्लों का इंतज़ाम कर लिया। तुम आज भी अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतराते हो जब की उस ने अपने बच्चों को आला तालीम दी और तुम पर मुसल्लत करने का रास्ता बना लिया। तुम चौक चौराहों पर बैठ कर खैनी खाते रहे और उस ने तुम्हारी सामाजिक हैसियत ख़त्म कर दी।
वो पार्टी बदल बदल कर चुनाव लड़ते रहे और तुम बस वोट देते रहे। तुम ने ये सवाल नहीं किया के पार्टी क्यों बदल रहे हो। वो इलाक़े बदल बदल कर चुनाव लड़ते रहे और वहीं से जहां तुम हो लेकिन तुम ने फिर भी नहीं पूछा इलाक़े क्यों बदल रहे हो। तुम ने कभी ये नहीं पूछा के तुम्हे क्यों वोट दें। तुम ने उस से कभी ये नहीं कहा के हम 95 फ़ीसद हैं तुम हमें वोट दो हम अपनी कयादत खुद करेंगे तुम हमारे साथ चलो। ये बाज़ी पलटने वाली बात होती अगर तुम ने किया होता। अगर वो अपनी उम्मीदवारी पेश करता है तो सिर्फ तुम्हारे बूते वरना वो एक वार्ड का इलेक्शन ना जीत पाएं। वो अपनी जीत का दावा तुम्हारी वजह से करता है लेकिन तुम्हे अपनी ताकत का अंदाज़ा नहीं है और ना तुम्हारे अंदर सामाजिक और राजनीतिक शहूर मौजूद है। तुम बस 313 का गाना गाने में मशरूफ हो। तुम ताज महल की खूबसूरती और शौचालय की बदसूरती का बखान करने में उलझे हुए हो। तुम सऊदी हुकूमत को इस बात पर गालियां देने में मशरूफ हो के उस ने फलां की दुश्मनी की वजह से तवाफ रोक दिया है। तुम मजारों मकबरों की ज़ियारत और उस की धुलाई में बिज़ी हो और मज़ेदार ये है के उन मजारों से होने वाली कमाई वो ले जाता है और तुम्हारे हिस्से में तवर रुख के तौर पर अगरबत्ती धागे और शकर पाले आते हैं जिन को चूम चूम कर तुम फूले नहीं समाते हो। तुम मशरूफ हो ये बताने में के कहां की होर्डिंग हवा से उड़ गई। वो तुम्हारी इन हरकतों को देखता है और तुम्हारी तारीफ करता है ताकि तुम यही करते रहो और बंद कमरे में तुम्हे तुम्हारे असल नाम से संबोधित कर के तुम पर हंसता है और चाहता है के तुम यही बने रहो।
फलां बाग़ वालों तुम हार गए। तुमने अपनी आने वाली नस्लों को हरा दिया। तुमने उन को विरासत में फिर से गुलामी दे दी। तुम्हारे बच्चे फिर किसी की दुकान किसी की कबाड़ किसी के घर किसी के दरगाह पर मुलाज़मत करते नज़र आयेंगे। तुम ने अपनी आने वाली नस्लों के सामाजिक तिरस्कार की ज़मीन तैयार कर दी है। तुम दिहाड़ी मज़दूर ही बन कर रह जाओगे और वो अपनी नस्लों को वकील जज पुलिस नेता टीचर बना कर तुम पर सामाजिक बढ़त हासिल किए रहेगा। वो तुम से सड़क पर भी आगे रहेगा क्यूं के तुम अराजक भी तो नहीं हो।