प्रधानमंत्री का चुनाव आखिरी दौर में हैं.अभी तक पुरे के पुरे चुनाव में लोकतंत्र का गला घोंटने के साथ साथ ज़ो हमारे देश के जरूरी मुद्दों हैं उनको छोड़कर तमाम तरह की उन्मादी बात कही जा रही हैं.किसानों की कोई बात नही हैं, नौजवानो के नौकरी का कही कुछ नही हैं और मीडिया 2014 के चुनाव के थोड़े पहले से आमजन के मुद्दे को लेकर काफी उदासीन हो गई हैं.खेती, मजदूरी, गैरबराबरी, न्याय ,बेरोजगारी, गरीबी, आथिर्क रुप से कमज़ोर या घरेलु महामारी से तंग छात्रों के उच्च शिक्षा की बात, महिलाओं की समस्याएं,नदियां, पानी,और सबसे बढ़ कर अक्षर सह संविधान को ज़मीन पर उतारने की अगर कोई बात करता उसके लिए लड़ता -भिड़ता दिखाई देता हैं तो वो सच में राष्ट्र की आत्मा को बचाने की लड़ाई लड़ रहा हैं.लेकिन ऐसा हो नहीं रहा हैं।
राजनैतिक दल जिस मुद्दे पर चुनाव लड़ते हैं उसको लेकर जनता वोट करती हैं. इससे राजनैतिक बदलाव के साथ साथ समाजिक बदलाव भी होता हैं.इसी चुनाव को देख लीजिए भाईचारे की बात कोई कर भी रहा हैं तो मीडिया खा जा रही हैं. हर तरफ वोट को पोलराईज किया जा रहा हैं. लोगों में खुद देश के मुखिया ही जरूरी और चिंतित करने वाली राष्ट्र की असली समस्याओं को छोड़ कर फर्जी बातें कर रहे हैं. सेना, सुरक्षा के नाम पर धुव्रीकरण किया जा रहा हैं.राष्ट्र की रक्षा करना असली राष्ट्रवाद हैं.लेकिन रक्षा और सुरक्षा के नाम पर उन्मादी, बड़बोलेपन, और ढकोसला करना राष्ट्र के असल समस्याओं को छिपाना हैं.इस देश के लोकतंत्र को दुकान मत बनाईये. इस देश की विचारधारा देश के किसानों, आदिवासियों, महिलाओं और नौजवानों के अंदर बसती हैं. इनकी बात ही देश की बात हैं. कुछ जनता के लिए योजनाएं जरूर चली हैं पांच सालों में लेकिन उसका धरातल पर बहुत असर नहीं हैं. और आप भी उन योजनाओं की बात इस चुनाव में नहीं कर रहे हैं।
नफरत बढ़ी हैं.लेकिन इस देश का मिज़ाज मोहब्बत का हैं. आप चुनाव जितने भर के लिए हमारे राष्ट्र के संस्कृति का गला रेत रहे हैं. अंत में एक बात ये सारी बाते मौजूदा सरकार की नीतियों के ऊपर हैं और एक नागरिक के तौर पर कहीं गई है.आप भी सरकार की नीतियों और कार्यक्रमो पर बात कर सकते हैं।