सुप्रीम कोर्ट की मार : मामा के राज में 1120 डॉक्टर भांजे हुये बीमार

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By, अब्राहम Meraj

सुप्रीम कोर्ट ने व्यापमं मामले में एक बड़ा फैसला सुनाते हुए 634 स्टूडेंट्स का एडमिशन निरस्त कर दिया है। इनमें करीब 450 ऐसे स्टूडेंट्स हैं, जो एमबीबीएस की डिग्री भी हासिल कर चुके थे। लेकिन सु्प्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह डिग्री अमान्य हो गई है। हालांकि इन स्टूडेंट्स को व्यापमं पहले ही अयोग्य घोषित कर चुका था। यह छात्र इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए थे, जहां आज यह फैसला सुनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से 1120 स्टूडेंट्स प्रभावित हुए हैं। व्यापमं ने अपनी जांच के दौरान इन सभी को अमान्य करार दिया था और उनके प्रवेश को निरस्त कर दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट तक सिर्फ 634 स्टूडेंट्स ही गए थे।

सोमवार चीफ जस्टिस जेएस केहर की अध्यक्षता वाली बेंच ने फैसला सुनाया। बेंच में जस्टिस कुरियन जोसफ और जस्टिस अरुण मिश्रा भी थे। सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले की सुनवाई पहले ही पूरी कर ली थी और इस पर इस बेंच को सिर्फ फैसला सुनाना था। कोर्ट ने साफ कर दिया कि वह ऐसे स्टूडेंट्स को कोई भी राहत देने को तैयार नहीं है। जिसके चलते 634 स्टूडेंट्स का एडमिशन निरस्त किया जाता है। यह एडमिशन 2008 से 2013 के बीच हुए थे। इससे 1120 स्टूडेंट्स के भविष्य पर संकट खड़ा हो गया है।

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दरअसल, मध्यप्रदेश में दो साल पहले तक पीएमटी की परीक्षा का आयोजन व्यापमं आयोजित करता था। व्यापमं की परीक्षाओं के में गड़बड़ी उजागर होने के बाद जब जांच हुई तो पाया गया कि 2008 से 2013 के बीच के इन स्टूडेंट्स ने सॉल्वरों की मदद से नकल कर परीक्षा पास की है। इन्हें व्यापमं ने जांच के बाद अयोग्य करार दे दिया। इसके खिलाफ यह स्टूडेंट्स पहले हाईकोर्ट और वहां से मदद नहीं मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट गए। सुप्रीम कोर्ट में भी यह मामला डबल बेंच में गया, जहां फैसले को लेकर विवाद होने पर कोर्ट ने मामले को चीफ जस्टिस की बेंच को भेज दिया।

सुप्रीम कोर्ट में निर्णय पर यह क्या था विवाद

दरअसल, इस केस की सुनवाई जो जजों की बेंच कर रही थी। केस की सुनवाई पूरी होने के बाद इसके फैसले की बारी आई तो दोनों जजों ने अलग—अलग फैसला दिया। हालांकि दोनों जजों ने अपने फैसले में इन स्टूडेंट्स को दोषी माना, लेकिन सजा को लेकर एक राय नहीं बनी। जस्टिस जे चेलामेश्वर ने इन स्टूडेंट्स को आर्मी हॉस्पिटल में बिना किसी वेतन के काम करने के आदेश जारी किए थे। उन्होंने अपने आदेश में कहा था कि इन्हें वहां पर पांच साल निशुल्क काम करने के बाद ही डिग्री दी जाए। जबकि बेंच के दूसरे जज जस्टिस अभय मनोहर सप्रे ने हाईकोर्ट का दाखिला रद्द करने का फैसला बरकरार रखते हुए स्टूडेंट्स की अपील को खारिज कर दिया। दोनों जजों की राय भिन्न होने के बाद खुद इस बेंच ने मामले को चीफ जस्टिस की बेंच में भेज दिया था। जिस पर आज फैसला आया है।

कैसे सामने आया था घोटाला?

शीर्ष अदालत ने जिस मामले में मेडिकल की एडमिशन प्रॉसेस रद्द करने का फैसला सुनाया है, वह व्यापमं के तहत हुआ सबसे बड़ा घोटाला था। व्यापमं की ओर से हुई प्री-मेडिकल टेस्ट में गड़बड़ी के सिलसिले में कई एफआईआर दर्ज की जा चुकी थीं। लेकिन जुलाई 2013 में यह घोटाला बड़े रूप में तब सामने आया जब इंदौर क्राइम ब्रांच ने डॉ. जगदीश सगर की गिरफ्तारी की। उसे मुंबई के पॉश होटल से गिरफ्तार किया गया था। उसके इंदौर स्थित घर से कई करोड़ रुपए का कैश बरामद हुआ था। पुलिस के मुताबिक, एमबीबीएस डिग्री रखने वाले सगर ने पूछताछ में कबूल किया कि उसने 3 साल के दौरान 100 से 150 स्टूडेंट्स को मेडिकल कोर्स में गलत तरीके से एडमिशन दिलाया था।

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