सियासत ने क्या खूब रंग जमाया है, मज़ा तो तब आया है, जब दो बैरियों ने हाथ मिलाया है।
बात है उन दो हस्तियों की जो कभी एक दूसरे को फूटी आंख भी देखना पसंद नहीं करते थे आज राजनीति में एक साथ खड़े होकर सबको भौचक्का कर दिया है।
मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे में मुलायम सिंह यादव ने मायावती से हाथ मिलाकर दो दशक पुरानी दुश्मनी को पल भर में मिटा दिया और कार्यताओं से कहा मायावती ने हमेशा साथ दिया है इनका सम्मान करनाा,
वाह रे सत्ता की सियासत!
2 जून 1995 को लखनऊ के वीआईपी गेस्ट हाउस में इसी सत्ता की भूख ने सुश्री मायावती की सम्मान की लुटिया थाली चम्मच गिलास सब लूटनी चाही तब वो दुशासन के वंशज आप के वो लड़के थे जो ‘महिला को देख कर मचल जाते हैं’ अब 24 साल बाद उन्हीं मायावती के सम्मान की सुरक्षा की नसीहत आप उन्हीं ‘मचलने, फिसलने वाले सज्जन समाजवादी सिपाहियों को दे रहे हैं! वाह समाजवाद वाह।
ख़ैर दिमाग पर ज्यादा जोर ना डालिये ये राजनीति है ये ऐसे ही चलती है, हॉ । इस पूरे एपिसोड से एक बात तो साबित हो गई कि सियासत में चाहे कोई कितना भी दुश्मन क्यों ना हो लेकिन सत्ता के सिंहासन के लिए सब एक हो जाते हैं।
बदलते रहे तिलक तराज़ू और तलवार के मायने

अब आईये आप को लिये चलते हैं उस दौर में जब जातिवादी राजनीति अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश कर रही थी। उस वक्त को याद कीजिए जब कांशीराम और मायावती की रैलियों में ये नारा लगता था
तिलक तराजू और तलवार मारो इनको जूते चार
फिर क्या, पंडित ठाकुर बनिये उठ उठ कर चलते बनते थे
20 साल बाद सत्ता साधने के लिए नारा बदला और पंडित ठाकुर बनिये शंख बजा बजा कर जाप करने लगे
हाथी नहीं गणेश है ब्रह्मा विष्णु महेश है
राम तेरी गंगा मैली हो गई मुलायम के नहाने से
चौंकिए नहीं साहब, ये मैडम मायावती ने ही कहा था मुलायम के गंगा नहाने से गंगा मैली हो गई और अब जरा मैनपुरी में मायावती के भाषण को ठीक से पढिये उसमें फिल्म शोले की तरह एक्शन है इमोशन है ड्रामा है कॉमेडी है और शायद सत्ता की भावुकता है। ऐसी भावुकता कि फिल्मी डॉयलॉग भी फीके पड़ जायें उसी भावुकता में सारी कटुता भुलाते हुए मैडम माया ने जनता से मुलायम के लिए वोट मांगे।
मंच का मजेदार मंज़र

मंच नीली लाल पट्टियों के साथ साथ संस्करों से भी सजाया गया था मंच पर जब मुलायम के भतीजे धर्मेंद्र ने मायावती के पैर छुए लेकिन मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने पैर छूने के बजाय हाथ जोड़कर मुलायम सिंह यादव को सम्मान देने की परंपरा निभाई। ये भले ही चुनावी मंच था लेकिन इस तस्वीर ने पूरे मैनपुरी का मन मोह लिया और उस पल को ऐतिहासिक बना दिया। चलते चलते मन में ये जिज्ञासा बनी हुई है कि ये गठबंधन सिर्फ बीजेपी को हराने और सत्ता सुख की प्राप्ति के लिए हुआ है या ये प्रेम निश्छल निःस्वार्थ और जन कल्याण के लिए हुआ है… क्योंकि फिल्म तो अभी बाकी है दोस्त।
हंसी हंसी में बहुत गहरी बात