शराब की दुकानों पर लाइन लगी है लेकिन लाइब्रेरियां फूंक दी गयीं

कश्मीर के हालात का जायजा ले रहे हैं कश्मीरनामा के लेखक

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अगर मुझसे कोई पूछे कि जमा’त ए इस्लामी के चेलों ने कश्मीर में सबसे बुरा क्या किया तो मैं कहूँगा कि सिनेमा हॉल, बार और लाइब्रेरीज़ जलाकर उन्होंने कश्मीर का सबसे बड़ा नुकसान किया।

अजीब है कि घर घर मे टीवी है, सारे चैनल्स हैं लेकिन सिनेमा घर में फ़िल्म देखना गुनाह है। बुलवार्ड के शराब की दुकानों पर जाइए, चोरों की तरह शराब ख़रीदने वालों की लाइन लगी मिलेगी लेकिन खुल के कोई नहीं पी सकता। गुलशन बुक डिपो और कुछ ऐसी ही दुकाने तो हैं तो लेकिन 1940 के दशक में स्थापित की गईं प्रगतिशील लाइब्रेरीज़ जला दी गईं। कॉलेजेज और स्कूलों में सांस्कृतिक आयोजनों के नाम पर इस्लामी प्लेज़ बचे हैं। कितने ही प्रोग्रेसिव स्कूल्स को बन्द करा दिया गया। नाटकों के दौरान तोड़फोड़ की गई।

नतीज़ा मनोरंजन के लिए अलग से कुछ नहीं है। अखबार से लेकर व्हाट्सएप भरे पड़े हैं मिलिटेंसी और जेहाद की ख़बरों से। हीरोइज्म का ख़्वाब शहादत तक जाता है और जीने के सपने कम हैं। जहाँ है वहाँ टूट के पड़ते हैं युवा। फुटबॉल टीम बनीं तो ग़ज़ब का प्रदर्शन है उनका। ग़ज़ब का उत्साह दिखता है। म्यूजिक बैंड बने। लेकिन एक किस्सा हाल बयां करेगा। एक बैंड में अपनी बेटी का चयन नहीं होने पर हुर्रियत से जुड़े एक जनाब ने म्यूजिक बैंड को ग़ैर इस्लामिक बता कर वबाल करवा दिया, बैंड बन्द हो गया कश्मीर में वह हालांकि उनकी पुत्री बम्बई या किसी और महानगर में किसी बैंड का हिस्सा हैं।बस बता रहे हैं कि युवाओं की आंखों के सपने को धर्म तक सीमित कर देंगे तो समाज धीरे-धीरे नरक में तब्दील होता जाएगा।

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